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बुधवार, 29 मई 2019
1412.. जितना सुलझाना चाहो उतना ही उलझती जाती है..
10 टिप्पणियां:
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शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंचन्द्रिका से उज्जवल आलोक,
मल्लिका-सा मोहन मृदुहास।
बेहतरीन अंक
सादर...
शानदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंभावनाओं के आकाश और अनुभव की ठोस जमीन का संगम है ये अंक। उत्तम .....
जवाब देंहटाएंएक पहेली के जैसी लगती है
ज़िंदगी भी कभी-कभी
जितना सुलझाना चाहो
उतना ही उलझती जाती है ... हर पल शायद हम इस पहलू से रूबरू होते है ..
सुंदर प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी हर लिंक शानदार भुमिका मन मोहक
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।