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मंगलवार, 28 मई 2019

1411...लेखक पाठक गिनता है पाठक लेखक की गिनती को गिनता है

सादर अभिवादन
कल हंसे कि सरकार आ गई
दूसरे दिन रोए फूट-फूट कर
हमारा भविष्य चला गया
एक दुःखद हादसा..
या सुनियोजित लापरवाही
आना-जाना तो लगा रहता है
पर इस तरह जाना...समझ से परे है
अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन नौनिहालों को
पहली रचना पढ़िए....
वे   वापस  ना आयेंगे 
घर आँगन  में  नौनिहाल
अब ना खिलखिलाएंगे !

गर्म हवा से भी  न कभी 
छूने  दिया था जिन्हें 
सोच ना था  अव्यवस्था के
अग्नि   कुंड  उन्हें  भस्म  कर  जायेंगे !

बिना छुये सपनों को मेरे
जीवित तुम कर जाते हो
निर्धूम सुलगते मन पर
चंदन का लेप लगाते हो
शून्य मन मंदिर में रूनझुन बातें
पाजेब की झंकार
रसीली रसधार-सी मदमाती है।

चिर परिचित से जाने पहचाने चहरे
बेहद प्यारे बेहद अज़ीज़
कोई चन्दा कोई सूरज
तो कोई ध्रुव तारा
जैसे सारा आकाश हमारा
जब दिल भर आता
किसीके भी सामने
दुःख की गगरी खाली कर दी

शर्मा जी अपने काम में मस्त सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे । दुकान में बनते गरमा गरम पोहे जलेबी की खुशबु नथुने में भरकर जिह्वा को ललचा ललचा रही थी। अब खुशबु होती ही है ललचाने के लिए , फिर गरीब हो या अमीर खींचे चले आते है। खाने के शौक़ीन ग्राहकों का हुजूम सुबह सुबह उमड़ने लगता था। खाने के शौक़ीन लोगों के मिजाज भी कुछ अलग ही होते हैं।

साथ है इंसान का गर, हैं समर्पित वंदनायें;
और कलुषित के हनन को, स्वागतम, अभ्यर्थनायें।
लेखनी! संग्राम कर अब, यूँ भला कब तक गलेगी?

हों निरंकुश मूढ़ सारे, जब उनींदी साधना हो;
श्लोक, पन्नों पर नहीं जब, कागज़ों पर वासना हो।
“नाश हो अब सृष्टि का रब”, चीखकर यह कब कहेगी?

तेरी अना से टूट रहा है वह रिश्ता ।
जिसकी ख़ातिर एक ज़माना लगता है ।।

आग से मत खेला करिए चुपके चुपके ।
घर जलने में एक शरारा लगता है ।।

दर्द विसाले यार ने ख़त में है लिक्खा ।
उस पर सुबहो शाम का पहरा लगता है ।।

जितने पल, व्यतीत हुए इस जीवन के, 
उतने ही पल, तुम भी साथ रहे, 
शैशव था छाया, जाने कब ये पतझड़ आया, 
फिर, कैसे याद रहे? 
था श्रृंगार तुम्हारा, या चटकी कलियाँ? 
रंग तुम्हारा, या रंग-रंलियाँ? 
आँचल ही था तेरा, या थी बादल की गलियाँ, 
फिर, कैसे याद रहे? 

सागर की लहरों पर 
सवार होकर तरुवर के 
पर्णों के मध्य से, 
हौले हौले अपनी राह
बनाता चाँद तब , मंथर गति
से, उतर आया था मेरे 
मन के सूने आँगन में, 

तुम्हारी आशिकी शक के दायरे में है …

तुम्हारी आशिकी शक के दायरे में है
नाज़नीन से पिटकर आये नहीं, तो क्या किया?

शादीशुदा के लिए तो तोहफा है बेलन
बीबी से आजतक खाए नहीं, तो क्या किया?

सियासत का दंभ भरते हो, कच्चे हो पर
घोटालों के लिस्ट में आये नहीं, तो क्या किया?

एक खबर उलूकिस्तान से

लिखते लिखते 
कभी अचानक 
महसूस होता है 
लिखा ही नहीं 
जा रहा है 
अब लिखा 
नहीं जा रहा है 
तो किया क्या 
जा रहा है 
अपने ही ऊपर 
अपना ही शक 
गजब की बात 

आज अब बस...
अब बात तिहत्तरवें विषय की
विषय

प्रदूषण
उदाहरण
कोई किसीकी बात नहीं सुनता
अपने ही अंतर के शोर से जैसे
सबके कान सुन्न हो गए हैं !
प्रदूषण की मटियाली आँधी में
न चाँद दिखता है ना सूरज
ना कोई ध्रुव तारा
इसी अंक से
साधना दीदी की रचना

प्रेषण तिथि - 01 जून 2019 (शाम 5 बजे तक)
प्रकाशन तिथि - 03 जून 2019
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा ही

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आज के रचनाकार
सखी रेणुबाला,सखी श्वेता सिन्हा, साधना दीदी, 
शशि पुरवार दीदी, भाई अमित निश्छल,
पण्डित नवीन मणि त्रिपाठी,
भाई पुरुषोत्तम सिन्हा, सखी सुधा सिंह, भाई एम.वर्मा
डॉ. सुशील कुमार जोशी...

हम आभारी हैं आपके...
सादर


16 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    मर्मस्पर्शी भूमिका के साथ बेहतरीन लिंक्स का
    संयोजन । अति सुन्दर ।

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  2. अच्छी रचनाएँँ..
    रेणु बहन ने रुला दिया..
    साधुवाद इस अंक को
    सादर..

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  3. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    शानदार प्रस्तुतिकरण

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  4. खूबसूरत अंक। आभार यशोदा जी 'उलूक' की गिनतियों पर गिनती में ले कर आने के लिये।

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  5. वाह!!सुंदर प्रस्तुति । सभी लिंक लाजवाब!

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  6. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  7. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए ! सभी रचनाएं अनुपम ! सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन ! आपको हृदय से वंदन !

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार प्रस्तुति शानदार लिंकों का चयन सभी रचनाकारों को बधाई।

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  9. बहुत सुन्दर लिंक्स व संयोजन बधाई व शुभकामनाएं हमें शामिल करने हेतु आभार

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  10. अपनी ही लापरवाही, संवेदनहीनता और कायरता को एक दुर्घटना बता कब तक श्रद्दांजलि अर्पित करेंगे हम।
    प्रणाम।

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  11. आदरणीय दीदी -- सादर आभार इस सुंदर भावपूर्ण अंक के लिए | सभी रचनाओं का अवलोकन किया बहुत ही मनभावन हैं | भूमिका बहुत मर्मस्पर्शी रही | किसी का आने जाने के बीच अधखिली कलियों का अव्यवस्थित समाज के प्रचंड अग्नि विस्फोट में स्वाहा हो जाना एक लापरवाह और असंवेदनशील व्यवस्था की भयावह तस्वीर दिखाता है | ईश्वर करे ऐसी दुर्घटनाएं कभी दुबारा न हो |सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें | मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभारी हूँ | सादर

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  12. कल हंसे कि सरकार आ गई
    दूसरे दिन रोए फूट-फूट कर
    हमारा भविष्य चला गया
    सही कहा आपने एक पल में क्या से क्या होगया ,भविष्य के कितने नौनिहाल चले गए ,बेहद दर्दनाक घटना ,आज की बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  13. आह से मत खेला करि चुपके-चुपके ।
    बहुत सुंदर पंक्ति।बेहतरिन रचनाओं का संगम।

    जवाब देंहटाएं

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