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सोमवार, 13 मई 2019

1396..हम-क़दम का सत्तरवाँ अंक.... गुलमोहर

स्नेहिल अभिवादन....
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★★★★★★
 गुलमोहर के खूबसूरत रंग जुटाने के लिए
आदरणीया यशोदा दी 
का हृदयतल से विशेष आभार।
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गुलमोहर के विषय में मैं क्या कहूँ
बस इतना ही-
आप गुलमोहर के रंग को, उसके मनमोहक छाँव को,उसकी नरम पत्तियों को,कलियों ,दिलकश फूलों को अगर महसूस करना चाहते हैं तो
हमारे रचनाकारों की रची अद्भुत और अनमोल कृतियाँ
अवश्य पढ़े।
एक मंच पर एक विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण
पढ़ना निःसंदेह विस्मयकारी है।
तो चलिए चलें
गुलमोहर की यात्रा पर।
★★★★★

आज के अंक की खासियत..
पहली बार वेबदुनिया से 
फाल्गुनी जी (स्मृति आदित्य पाण्डेय) का 
आलेख आपके समक्ष..
सुनो, गुलमोहर, तुम जिंदा हो...
'क्यों मेरे केसरिया रूप पर शब्दों के अर्घ्य चढ़ाती हो?
सूर्य नहीं, गुलमोहर हूं मैं क्यों मुझसे प्रीत बढ़ाती हो?
आओ, देखें, शहद-चांदनी को चांद पर कुछ बातें गूंथें?
शीतलता के सौम्य उजास में क्यों कच्चे दीप जलाती हो?

मुझे क्षमा कर देना, गुलमोहर। मैं तुम्हें बचा नहीं सकी। किसे दोष दूं अपनी विवशता का? मेरी आंखों के सामने तुम बेरहमी से काट दिए गए और मैं कुछ न कर सकी। हजारों केसरिया पीले पुष्पों से लकदक तुम्हारी सुपुष्ट बाहें काटी गईं, मजबूत शरीर पर निर्मम प्रहार किए गए और फिर, बस कुछ ही पलों में तुम्हारा समूचा अस्तित्व धराशायी हो गया और मैं? मैं, अपनी ही लाचारी के दायरे में सिमटी छलछलाए नेत्रों से तुम्हें देखती रही। अब भी मेरे कलेजे में तुम्हारी आत्मा कांप रही है। तुम पर पड़ने वाली कुल्हाड़ी की हर मार मुझे लहूलुहान कर रही है और मैं अपनी अशक्तता को कोसते हुए तुम्हारी स्मृतियों की किरचें समेट रही हूं। 
★★★★★
आदरणीया सीमा सिंघल जी
माँ, तुलसी और गुलमोहर ...
माँ कहती थी 
आँगन के एक कोने में तुलसी 
और दूसरे में गुलमोहर हो 
तो मन से बसंत कभी नहीं जाता 
तपती धूप में भी 
खिलखिलाता गुलमोहर जैसे 
कह उठता हो कुछ पल गुजारो तो सही 
मेरे सानिध्य में
★★★★★
आदरणीया साधना वैद जी की लिखी
दो रचनाएँ

ज़िंदगी चलती रही ...
हर जगह, हर मोड़, पर इंसान ठहरा ही रहा,
वक्त की रफ़्तार के संग ज़िंदगी चलती रही ! 

खुशनुमां वो गुलमोहर की धूप छाँही जालियाँ

चाँदनी, चम्पा, चमेली की थिरकती डालियाँ
पात झरते ही रहे हर बार सुख की शाख से
मौसमों की बाँह थामे ज़िंदगी चलती रही !
★★
गुलमोहर – मेरा आइना

मेरे सबसे अच्छे दोस्त
मेरे हमदम, मेरे हमराज़,  
मेरे हमनवां, मेरे हमखयाल,
मेरे प्यारे गुलमोहर
हैरान हूँ कि कैसे तुम्हें
मेरे दिल के हर जज़्बात की
खबर हो जाती है
★★★★★★

आदरणीया
 विभारानी श्रीवास्तव जी

गुलमोहर 
बच्चों का बड़ा होना
अब खलने लगा है
मन उबने लगा है
शतरंज खेलना और पेंच लगाना
गुलमोहर के गुल से
नाजुक शाखाओं का
जरा तेज हवा चली कि विछोह निश्चित
महबूब को मानों खजाना मिल जाता था

★★★★★
आदरणीय कुसुम कोठारी जी
कहो तो गुलमोहर


रंगत से अपनी सूरज से
तुम होड़ लेते रहते हो
गर्मी से लड़ने को सुर्खरु
तमतमाऐ से रहते हो।

मस्त हो इतराते रहते हो
गुनगुनाते गीत गाते हो
झूम झूम लहरा कर
पाखियों को न्योता देते हो।
★★★★★

आदरणीया अनीता सैनी जी
गुलमोहर बन मुस्कुराये...
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सुरसरी सी शीतल लहरी 
प्रज्ज्वलित दीप प्रीत 
मधुर आँच में  प्रेम जला, विरह तीव्र मशाल 
 खिला गुलमोहर यादों का प्रीत बनी  मन मीत 

अनंत पथ पर चले कर्म 
जीवन जलती धूप 
साथ तुम्हारा गुलमोहरी छाया 
फूल यादों का रूप |
★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान जी
जब मुस्काता है गुलमोहर ....

गर्मियों के तपते दिन ,
लाल फूलों से लदा गुलमोहर।
हर लेता है मन का संताप,
चटकती बिखरी तेज धूप में,
खिलखिला उठता है मन।
देख उसे लगता है ऐसे,
जैसे किशोरी पर आया यौवन।
★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना जी
गुलमोहर
कच्ची सड़क के दोनो ओर गुलमोहर के वृक्ष लगे
देते छाँव दोपहर में करते बचाव धुप से
 धरा से  हो कर  परावर्तित आदित्य की  किरणे
मिल कर आतीं हरे भरे पत्तों से
खिले फूल लाल लाल देख
ज्यों ही गर्मीं बढ़ती जाती
चिचिलाती धुप में नव पल्लव मखमली अहसास देते
चमकते ऐसे जैसे हों  तेल में तरबतर  
फूलों से लदी डालियाँ  झूल कर अटखेलियाँ करतीं
मंद मंद चलती पवन से
★★★★★
आदरणीया शुभा मेहता जी
गुलमोहर
सडक के  उस पार 
गली के छोर पर 
हुआ करते थे 
दो गुलमोहर ...
बडे़ मनोहर लगते थे मुझे 
जब लद जाया करते थे 
फूलों से .....
एक केसरी 
और दूसरा पीला 
★★★★★
आदरणीया अनुराधा जी
गुलमोहर की व्यथा


बरसों से एक ही भाव लिए
बिन फूलों का श्रृंगार किए
क्यों बदले हैं तेवर तेरे
नहीं खिलते अब फूल घनेरे
किस बात की व्याकुलता लिए
खड़े मखमली छाँव लिए
हरियाली का साथ न छोड़ा
★★★★★
आदरणीया सुधा देवरानी जी
आशान्वित हुआ फिर गुलमोहर


खुशियों की दोपहर अभी ढली नहीं कि -
दुख का अंधकार तूफान बनकर ढा गया,
बेचारे गुलमोहर पे....
लाख जतन के बाद भी---
ना बचा पाया अपनी खूबसूरत शाखा,
भंयकर तूफान से.......
अधरों की वह मुस्कुराहट अधूरी सी ,
रह गयी.....
जब बडी सी शाखा टूटकर जमीं पर ,
ढह गयी...........
★★★★★★
और चलते-चलते बेहद
खूबसूरत सृजन पढ़िये
आदरणीया मीना शर्मा जी
की लेखनी से-
तब गुलमोहर खिलता है


जिद्दी बच्चे सी मचल हवा,

पैरों से धूल उड़ाती है,

तरुओं के तृषित शरीरों से,

लिपटी बेलें अकुलाती हैं,
जब वारिद की विरहाग्नि में,
धरती का तन मन जलता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!

★★★★★

आज का हमक़दम आपको कैसा लगा
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के माध्यम
से अवगत कराने का
कष्ट करें।

हमक़दम का नया विषय लेकर आ रही हैं
कल यशोदा दी।
कृपया कल का अंक पढ़ना न भूले।
★★★

बसंत झरकर पीपल से 
जब राहों में बिछ जाता है
दूब के होंठ जलने लग जाते
तब गुलमोहर मुस्काता है

धूप संटियाँ मारे गुस्से से

स्वेद हाँफता छाँव को तरसे
दिन अजगर-सा अलसाता है
तब गुलमोहर मुस्काता है

#श्वेता सिन्हा

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अंक...
    एक मंच पर एक विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण
    पढ़ना निःसंदेह विस्मयकारी है।
    आभार...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. निःशब्द हूँ छूटकी
    सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी को सुप्रभात और सादर सस्नेह प्रणाम | -- प्रिय श्वेता आज के अंक में इस समय लिखने का समय ना होते हुये भी मंच पर लिखने के लिए मन लालायित हो उठा | गुलमोहर पर इतनी सुंदर रचनाएँ पढ़कर मेरे हौसले पहले ही घ्वस्त हो गए और कुछ भी लिखने का साहस ना जुटा पाई | लेकिन एक बहन द्वारा संयोजित ये अंक सभी बहनों की सहभागिता का अद्भुत उदाहरण है | सभी की खास रचनाएँ गुलमोहर की महिमा में लिखे गये अनूठे शब्द चित्र हैं | जिनमें से एक को कम या ज्यादा करके आंकना अन्याय है | सभी रचनाएँ अपने आप में पूर्ण हैं | नारी शक्ति की अद्भुत मेधा शक्ति के प्रतीक इस सामूहिक अंक के लिए सभी रचनाकारों को हार्दिक स्नेह भरी शुभकामनायें |मुझे अपने जीवन से जुड़ा एक ही गुलमोहर याद आता है वो है मेरे गाँव में मेरे स्कूल यानि कन्या विद्यालय के प्रांगण का गुलमोहर और उसका पक्का चबूतरा -- जो मुझे अपनी स्कूली सखियों की तरह हमेशा याद आता है |उस गोल्मोहर के नीचे सखियों के साथ कितनी बातों और स्नेह का आदान प्रदान हुआ आज याद करने पर भी उनमें से कुछ भी याद नहीं आता सिवाय एक स्नेहिल एहसास के | असल में गुलमोहर जीवन के तपते असहनीय संताप काल में शीतलता से भरी हरियाली का प्रतीक है | सिंदूरी , पीले , लाल फूल मन की उदासियों में आशा का रंग भरते हैं | असहनीय ग्रीष्म कालीन असहनीय तपन के बीच लहराते इसके हरे भरे पत्ते मुझे तो मानो हरियाली की लहरों सरीखे प्रतीत होते है |

    t आज का केसरिया अंक सभी को मुबारक हो | तुम्हारी सुंदर रचना से प्रेरित विषय से सजा ये अंक बहुत अनुपम है | यशोदा दीदी ने मार्मिक रचना के रूप में [ गुलमोहर तुम ज़िंदा हो \] जो नायब मोती वेबदुनिया से ढूंढ निकाला है उसके लिए हार्दिक आभार | गुल्मोहर्सभी के जीवन में प्यार और उम्मीदों के केसरिया रंग भरता रहे यही दुआ और कामना है | तुम्हे मेरा विशेष प्यार इस सुंदर प्रस्तुति के लिये | सस्नेह

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  5. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

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  6. वाह!!श्वेता ,गुलमोहरी रंगों से सजी अद्भुत प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार ।

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  7. वाह बहुत सुंदर अंक।सराहनीय।

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  8. गुलमोहर के सुर्ख फूलों से सजी बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

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  9. बहुत ही सुन्दर गुलमोहर सी सुर्ख प्रस्तुति, बेहतरीन रचनाएँ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता बहन, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. गुलमोहर को बिंब बना कितने भाव रच दिये रचनाकारों ने सुख-दुख, पीड़ा-अनुराग, राग-वैराग्य और भी जाने क्या क्या। असाधारण रचनाकारों को अशेष शुभकामनाएं और बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
    श्वेता कि रचना भी पुरी दी होती तो प्रस्तुति में चार चांद लग जाते।
    बहुत शानदार प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  11. गुलमोहर के सुंदर फूलों जैसी सुंदर रचनाओं से सजा यह अंक जिस वक्त आया है वही समय प्रकृति में गुलमोहर के खिलने का भी है। गुलमोहर प्रकृति के सुंदरतम वृक्षों में से एक है। इसके झालरनुमा पत्तों और जमीन की ओर झुकी डालियों से बनता छतरी सा आकार इसे बहुत आकर्षक बनाते हैं। गुलमोहर मूलतः भारतीय वृक्ष नहीं है। भारत में यह मेडागास्कर से आया था। जहाँ मैं पहले रहती थी वहाँ खिड़की से सड़क के उस पार दो गुलमोहर के और कई अमलतास के वृक्ष दिखते थे जिनका सौंदर्य देखते आँखें थकती नहीं थीं। इस वृक्ष पर मैं एक आलेख ही लिखना चाहती थी किंतु संभव ना हो सका। मेरी रचना को स्वतः ही खोजकर अंक में स्थान देने के लिए मैं प्रिय श्वेता को हृदयपूर्वक धन्यवाद देती हूँ।
    आज के अंक की रचनाएँ ऐसी हैं जिन्हें बार बार पढ़ने को मन चाहेगा। सभी रचनाकारों को बधाई एवं धन्यवाद इन बेहतरीन रचनाओं को साझा करने हेतु।
    सस्नेह।

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  12. शानदार प्रस्तुतिकरण गुलमोहर सी मनभावनी खूबसूरत रचनाओं से सजा संकलन....
    मेरी रचना को विशेषांक में स्थान देने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  13. आज के इस संकलन को बुकमार्क कर लिया है प्रिय श्वेता जी ! दिन भर व्यस्तता के कारण समय ही नहीं मिल सका कि अपना धन्यवाद ज्ञापन ही समय से कर देती ! मेरी दोनों रचनाओं को आज के इस विशेषांक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को हृदय से शुभकामनाएं ! फुर्सत से गुलमोहर पर रची गयी हर रचना को मनोयोग से पढ़ना चाहती हूँ ! मेरा अत्यंत प्रिय वृक्षों में शुमार है गुलमोहर भी ! बाकी रचनाकार इसके साथ इसके बारे में क्या अनुभव करते हैं यह जानना रोचक होगा ! आभार आपका श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  14. सुप्रभात
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद जी |

    जवाब देंहटाएं
  15. शानदार प्रस्तुति...., सभी रचनाएँ अत्यंत सुन्दर ।

    जवाब देंहटाएं

  16. गुलमोहरी सिंदूरी रचनाएं सबके मन के आंगन तक पंहुचाने के लिए विशेष आभार...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दीदी
      सादर नमन
      आह्लादित हूँ
      आपको ब्लॉग मे पाकर
      आभार...
      सादर
      यशोदा

      हटाएं
  17. शानदार संकलन सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  18. एक एक रचना लाज़बाब ,सभी को हार्दिक बधाई ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं

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