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रविवार, 12 मई 2019

1395....घर में चूल्हे मत बाँटों रे, देती रही दुहाई माँ।

जय मां हाटेशवरी......
'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'
(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)
'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
(अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, 
माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई 
रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।)
'कौन सी है वो चीज जो यहां नहीं मिलती।
सबकुछ मिल जाता है, लेकिन,
हाँ...! 'माँ'  नहीं मिलती।'
आप सभी को मातृ दिवस की शुभकामनाएं......
मां की तबीयत अब ठीक नहीं रहती है......
उन्हे अस्थमा की शिकायत है......
काश मां पुनः स्वस्थ हो पाती......
नाम सभी हैं गुड़ मीठे,
अम्मा, मैया, माई, माँ।
सभी साड़ियाँ छीज गईं पर
कभी नही कह पाई माँ।
अम्मा में से थोड़ी थोड़ी
सबने रोज चुराई माँ।
घर में चूल्हे मत बाँटों रे,
देती रही दुहाई माँ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ साथ मुरझाई माँ।
रोती है लेकिन छुप छुप कर
बड़े सब्र की जाई माँ।
लड़ते लड़ते सहते सहते
रह गई एक तिहाई माँ
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब जेवर दे आई माँ।
अम्मा से घर घर लगता है
घर में घुली समाई माँ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची
पर उसकी ऊँचाई माँ।
घर में शगुन हुए हैं माँ से
है घर की शहनाई माँ।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई माँ।
सभी पराये हो जाते हैं
होती नही पराई माँ।
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद......

गद्य-पद्य "मातृ दिवस
माता शब्द की व्यापकता का अनुमान
इसी बात से लगाया जा सकता है कि
दुख-दर्द के समय अन्तर्मन से
एक ही स्वर वाणी पर अपने आप आ जाता है-
‘हाय-मैया’
कभी विचार किया है कि यदि माँ नही होती
तो हम दुनिया में कैसे आ पाते?
माता के प्रति हमारी कितनी अगाध श्रद्धा और भक्ति है
इसका पता इसी बात से लग जाता है कि
देवी स्वरूपा माता के दर्शनों के लिए
पूरे वर्ष माँ के मन्दिरों में भीड़ लगी रहती है।

वेदना के भार से अंतर कसकता ही रहा
और टूटी तान सी यह ज़िंदगी चलती रही !
चाँद सूरज भाल पर मेरे अँधेरे लिख गये ,
स्वप्न सुंदर नींद में ही तोड़ते दम दिख गये ,
 देवता अभिशाप देके फेर कर मुँह सो गये
दर्द की सौगात देकर ज़िंदगी चलती रही !

स्वारथ है कोई नहीं, ना कोई व्यापार।
माँ का अनुपम प्रेम है, शीतल सुखद बयार।।

जननी को जो पूजता, जग पूजै है सोय।
महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय।।

माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार।
मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार।।

माँ, तुलसी और गुलमोहर ...
 गुलमोहर का पेड़
मेरे आस-पास
पर कुछ यादें आज भी हैं
इसके इर्द-गिर्द
बचपन की, माँ की,
और इसकी झरतीं सुर्ख पत्तियों की
मेरी यादों में गुलमोहर
हमेशा मेरे साथ ही रहेगा
मेरे पीहर की तरह
अपनेपन की छाँव लिये !!
..
 सुरसरी सी शीतल लहरी
प्रज्ज्वलित दीप प्रीत
मधुर आँच में  प्रेम जला, विरह तीव्र मशाल
 खिला गुलमोहर यादों का प्रीत बनी  मन मीत
अनंत पथ पर चले कर्म
जीवन जलती धूप
साथ तुम्हारा गुलमोहरी छाया
फूल यादों का रूप |

जाती है जान
तो जाय
नक्शा दुश्मन को
न मिल पाए
जहाज गिरा दुश्मन का
जमीन पर
वो नभ से
नभतर हो गया।

सन्नाटा....
हर दिन माँ के नाम
           माँ के साथ घर से बाहर घूमना सबकी तरह मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, पर क्या करूँ? हर दिन एक से कहाँ रहते हैं. 
माँ आज घर से बाहर जाने में असमर्थ हैं।  कुछ वर्ष पूर्व जब 
उनके साथ भोजपुर जाना हुआ तो वहीँ एक फोटो मोबाइल से 
खींच ली थी, जिसे अपने ब्लॉग परिवार के साथ शेयर करने 
का मन हुआ तो सोचा थोडा- बहुत लिखती चलूँ, 
इसलिए लिखने बैठ गई। बहुत सोचती हूँ लेकिन उनके सबसे करीब 
जो हूँ, इसलिए  बहुत कुछ लिखने का मन होते हुए भी नहीं 
लिख पाती हूँ। आइए सभी हर माँ के दुःख-दर्द को अपना समझ 
इसे हरपल साझा करते हुए हर दिन माँ को समर्पित कर नमन करें !


सोच रहा हूं.....
क्यों आवश्यकता पड़ गयी मातृ दिवस मनाने की.....
हमारे विद्यालय के एक प्रधानाचार्य कहा करते थे......
जब किसी का महत्व कम होने लगता   है.....
तब समाज को उसका महत्व याद दिलाने के 
लिये दिवस मनाया जाता  हैं.....
मां को एक दिन में सीमित करना मेरी दृष्टि में उचित नहीं है.....
धन्यवाद।

11 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक चिंतनयुकि सराहनीय रचनाओं.से सजा आज का अंक बहुत अच्छा लगा कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक..
    मातृ-दिवस पर अशेष शुभकामनाएं
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. रब की कृपा सदा बनी रहे
    अति सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति। 'माँ' के आते ही हर चीज खूबसूरत हो जाती है ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन
    माँ के स्वरूप का,
    बेहतरीन आकलन।
    सभी रचनाकारों को,
    बार-बार नमन।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
    मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर रचनाओं का संयोजन आज की हलचल में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी!

    जवाब देंहटाएं
  9. मां को एक दिन में सीमित करना मेरी दृष्टि में उचित नहीं है.....
    सही कहा आपने....कहीं सचमुच माँ का महत्व शब्दों तक सीमित तो नहीं हो रहा...???
    शानदार प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं

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