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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

1383..भले हैं नारद जी, अच्छा ही चाहते हैं

माह अप्रैल का अंतिम दिन
अभिवादन स्वीकारें....
सूचना है कि एक तूफान आ रहा है
नाम है फ़नी
देखें केसे फैलाता है वो सनसनी
जो भी आए या जाए...
आप ज़रूर आइएगा....


ख़त हवा में अध्-जले जलते रहे ...
मील के पत्थर थे ये जलते रहे
कुछ मुसफ़िर यूँ खड़े जलते रहे

पास आ, खुद को निहारा, हो गया
फुरसतों में आईने जलते रहे

कश लिया, एड़ी से रगड़ा ... पर नहीं
“बट” तुम्हारी याद के जलते रहे



निष्ठा और समर्पण ....

निष्ठा और समर्पण 
प्रेम और विश्वास
रिश्तों को रखें बाँध कर
तब बनता है परिवार
स्त्री पुरुष के त्याग से
पुरुष की निष्ठा
परिवार का विकास


तुझमें ही ...

बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना

ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना

हजारों यूँ ही मर जाते हैं .....

रूप तुम्हारा महका महका
जिस्म बना संदल सा 
क्या समा बंधता  है 
जब तुम गुजरती हो उधर  से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो

अधूरा प्रणय बंध ....
My photo
बेजुबान लब्ज
झुकी डाल
ढीठ सी लाज
चीरती जब मधुर भय को
रचती अधलगी महावर
तुम विवश
मैं अवश


एक पैगाम आकाश के नाम .....
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आकाश ! 
कब तक ओढ़ोगे 
परंपरा की पुरानी चादर, 
ढोते रहोगे 
व्यापक होने का झूठा दंभ,

तुम्हारा उद्देश्यहीन विस्तार 
नहीं ढक सका है 
किसी का नंगापन 

एक खबर उलूकिस्तान से
असुर तो 
हमेशा से ही 
अल्पसंख्या 
में पाये जाते हैं

मौका 
मिलता है कभी 
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं 

बेवकूफ 
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं 

समझते हैं 
सारे असुर 
अगर देवताओं के 
साथ चले जायेंगे 

-*-*-*-
 रचनाएँ बस यहीं तक

बारी है हम-क़दम की
उनहत्तरवाँ क़दम
विषय
निष्ठा
उदाहरण
इसी अंक से
पूरी निष्ठा ईमानदारी से
स्त्री बाँध कर रख देती
ख्वाहिशों को अपनी
भूल जाती सपने सारे
कर्त्तव्यों का पालन करने में
निष्ठा से निभाती रिश्ते
बड़ों का सम्मान
पति के लिए समर्पित
रचनाकार है अनुराधा चौहान

अंतिम तिथि- 04 मई 2019
प्रकाशन तिथि - 06 मई 2019

आदेश दें
यशोदा ..








सोमवार, 29 अप्रैल 2019

1382 अड़सठवाँ अंक हमक़दम का ... वेदना

स्नेहिल अभिवादन...
-------
मन या तन की पीड़ा में अंतस से निकली कराह वेदना कहलाती है।
वेदना के विषय म़े मेरे लिखने लयक कुछ बचा नहीं है
हमारे सम्माननीय रचनाकारों के द्वारा
विषय पर अद्भुत रचनाएँ लिखी गयी है।
हर बार किसी भी विषय पर
सृजनशील क़लमकारों के द्वारा
बस क़माल ही लिख जाता है।
इस बार भी कुछ विशेष हैं  
जिसे पढ़कर आप भी अचंभित रह जायेंगे।


यशोदा दी के विशेष सहयोग के लिए
सादर आभार।
★  

चलिये अब देर न करते हुये
आपकी रचनाएँ पढ़ते हैं।

सर्वप्रथम पढ़िये
उदाहरणार्थ दी गयी रचना


भीगे एकांत में  बरबस -
पुकार लेती हूँ  तुम्हे
 सौंप अपनी वेदना -
 सब भार दे देती हूँ तुम्हे !

 जब -तब हो जाती हूँ विचलित
 कहीं  खो ना  दूँ तुम्हे
क्या रहेगा जिन्दगी में
जो हार देती हूँ तुम्हे !
★★★★★
आदरणीया रेणुबाला जी
सुन !ओ वेदना

 आज प्रतीक्षित है  कोई  -
कुछ पग संग चलने के लिए ;
 रीते मन  में   रंग अपनी -
 प्रीत  का  भरने के लिए
 लौटा  लाया  खुशियाँ  मेरी    -
 समझो ना उसे बेगाना तुम

★★★★★

आदरणीया साधना वैद जी

वेदना की राह पर 
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर 
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

थाम कर उँगली तुम्हारी 
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे 
एक अनबुझ प्यास धर !

★★★★★★

आदरणीया  शुभा मेहता जी
वेदना
कह कर गए तो थे 
लौटूंगा ....
बरसों बीते 
व्यर्थ इंतजार 
कहाँ छुपाऊँ 
मन की वेदना ...
शायद ,इसीलिए 
यादों की चादर से 
ढाँप लेती हूँ खुद को ।
★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना जी
मन खिन्न हुआ

गहरे सोच में 
डूब गया
वेदना ने दिये 
ज़ख्म ऐसे 
नासूर बनते 
देर न लगी
अब कोई दवा 
काम नहीं करती 
दुआ बेअसर रहती
अश्रु भी 
सूख गये अब तो 

★★★★★

आदरणीया मीना शर्मा जी
की दो रचनाएँ
सृजन - गीत
वेदना,पीड़ा,व्यथा, को
ईश का उपहार समझो,
तुम बनो शिव,आज परहित
इस हलाहल को पचा लो !
सृजन में संलग्न होकर.....
वेदना के अभाव में
ईश्वर के दूत भटकते हैं धरती पर,
खोजते हैं अश्रुओं के मोती
जो नयनों की सीपियों में पलते
और सिर्फ इसी लोक में मिलते हैं।
★★★★★

आदरणीया अनुराधा चौहान जी
की दो रचनाएँ
मेरी वेदना अकसर आँखों को भिगोती
दर्द दिल का देख दामिनी भी तड़पती
तुझसे मिलने की चाह है अभी जी रही हूँ
तू आकर तो देख असर अपनी बेरुखी का
★★★★★

अकेलेपन की वेदना

सूखी टहनियों को लिए खड़ा
कड़ी धूप में तन्हा पेड़
अकेलेपन की वेदना सहता
ना राही ना पंछी बस राह है देखता
यादों में खोया सोचता यही है
★★★★★

 आदरणीया  कुसुम कोठारी जी
एक गुलाब की वेदना

कांटो में भी हम महफूज़ थे।
खिलखिलाते थे ,सुरभित थे ,
हवाओं से खेलते झुलते थे ,
हम मतवाले कितने खुश थे ।
★★★★

आदरणीया शशि जी
की दो कृत्तियाँ
वेदना से हो अंतिम मिलन

जलती हुई एक चिता हूँ मैं
और भस्म हमारा उसे दे दो

वेदना  से हो  ये अंतिम मिलन
अब अनंत की राह मुझे दे दो
पिछले कुछ दिनों यह विरक्त भाव मुझे कुछ इस तरह से 
मानसिक शांति प्रदान कर रहा है कि मानस पटल पर स्नेह एवं 
वेदना के वे पल चलचित्र की तरह छाये हुये हैं, फिर भी हृदय 
उसे ग्रहण नहीं कर रहा है। मन में यदि कुछ है,तो वह अपने 
आश्रम का सुखद स्मरण एवं गुरु की वाणी-
माया महा ठगनी हम जानी...
★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान जी
की दो रचनाएँ
सुप्त वेदनाएं ,
बंजर होती हृदय की जमीं !!
सूखे अश्रुनिर्झर,
सूखे मन सरोवर !
न बरसे ‌करूणाघन ..
न भीगा मन का आंगन...!
तृषित मानवता..!!


अभिलाषा चौहान
आह!वेदना मुझमें सोती….

जग की पीड़ा देख के रोती।
चुभती है अपनों की घातें,
ये दुख की जो काली रातें।
विरह-व्यथा की कटु कहानी,
कैसै कहूं मैं अनजानी।
बन के कविता हुई प्रस्फुटित,
हृदय भाव जिसमें उर्जस्वित।
आह!वेदना करती व्याकुल,
हृदय मची रहती है हलचल।
★★★★★

आदरणीया अनीता सैनी जी
वेदना जननी प्रीत की
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क्यों  पहनी   मायूसी, ख़ामोशी  में  सिमटा प्यार 
उतरी वेदना अंतर मन में  भाग्य उदय हुआ उस का हर बार 

क्यों  मिटाया  ख़ुद  को  जीवन  पर  कुण्डी  मार 
सुख पीड़ा का  बहुत  बड़ा  कवि  हृदय  का  सार 


-*-*-*-*-*-*-
अंचभित करती 
लेखनी से 
ढेरों कविताएँ लिखी है
इस विषय पर..
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी ने..
कुछेक चुनकर लाए हैं...
आप भी अवश्य पढ़िये..

मौन धरा की वेदना

चाक पर पिसती मौन धरा की वेदना,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

लहरों की तेज हाहाकार, 
है वेदना का प्रकटीकरण सागर का,
मौन वेदना की भाषा का हार,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

गर्जनों की भीषण हुंकार,
है प्रदर्शन बादलों की वेदना का,
परस्पर उलझते बादलों की वेदना,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

सागर की वेदना

तेज लहरों की भीषण हाहाकार, 
है वेदना का प्रकटीकरण सागर का,
मौन वेदना की भाषा का हार,
कौन समझ पाया है इस जग में।

लहरें चूमती सागर तट को बार बार,
पोछ जाती इनके दामन हर बार,
करजोड़ विनती कर जैसे पाँव पकड़ती,
पश्चाताप किस भूल का करती?


वेदना
फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,

फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,

टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,

विदाई

विदाई की वेदना में असह्य से गुजरते हुए ये क्षण!

भर आई हैं आखें, चरमराया सा है ये मन,
भरी सी भीड़ में, तन्हा हो रहा ये बदन,
तपिश ये कैसी, ले आई है वेदना की ये अगन!

निर्झर से बह चले हैं, इन आँखों के कतरे,
बोझिल सा है मन, हम हुए खुद से परे,
मिलन के वे सैकड़ों पल, विदाई में संग रो रहे!

कोई अरुचिकर कथा

कोई अरुचिकर कथा,
अंतस्थ पल रही मन की व्यथा,
शब्दवाण तैयार सदा....
वेदना के आस्वर,
कहथा फिरता,
शब्दों में व्यथा की कथा?
पर क्युँ कोई चुभते तीर छुए,
क्युँ भाव विहीन बहे,
श्रृंगार विहीन सी ये कथा,
रोमांच विहीन, दिशाहीन कथा,
कौन सुने, क्युँ कोई  सुने?
इक व्यथित मन की अरुचिकर कथा!


उद्वेलित हृदय

मेरे हृदय के ताल को,
सदा ही भरती रही भावों की नमीं,
भावस्निग्ध करती रही,
संवेदनाओं की भीगी जमीं.....

तप्त हवाएं भी चली,
सख्त शिलाएँ आकर इसपे गिरी,
वेदनाओं से भी बिधी,
मेरे हृदय की नम सी जमीं.....

★★★★★
आशा है आज का अंक आपको
पसंद आया होगा।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया
अवश्य लिखें।
अगला विषय जानने के लिए
कल के अंक में पढ़िये
यशोदा दी को

#श्वेता सिन्हा


रविवार, 28 अप्रैल 2019

1381.....कृष्ण मुझे क्षमा करना या आशीष देना


जय मां हाटेशवरी.....
हम सब के पास
सबसे बड़ा अधिकार,
वोट देने का है।
आखिर क्युँ करते है कुर्बान
अपना किमती वोट
चंद पैसो के लिए।

सादर अभिवादन......
अब पेश है.....
आज के लिये मेरी पसंद......
  

My Photo
 इसलिए सबकुछ होते हुए भी 
मै यहाँ कंगाल रहा
 कुछ नही होते हुए भी
 हम मालामाल रहा ।

आजादी दिलवाने में सहयोगी रहे, इसलिए उनको मंदिर में स्थापित किया गया... उस समय तो पुष्प चुप्प रह गया क्योंकि गाँव के अनपढ़ सरल-सहज इंसानों को क्या समझाता...
बच्चे की बात समझता कौन... लेकिन आज करीब पचास साल के बाद उसी स्थिति में जनता को पाकर पुरानी बातें याद कर रहा है

उदासी भी
एक पक्का रंग है जीवन का
उदासी के भी तमाम रंग होते हैं
जैसे
फ़क्कड़ जोगिया
पतझरी भूरा
फीका मटमैला
आसमानी नीला
वीरान हरा
बर्फ़ीला सफ़ेद
बुझता लाल
बीमार पीला
कभी-कभी धोखा होता है

थक चुकी हूँ आज इतना
और चल सकती नहीं ,
मंजिलों की राह पर
अब पैर मुड़ सकते नहीं
कल उठूँगी, फिर चलूँगी
पार तो जाना ही है ,
साथ हो कोई, न कोई
इष्ट तो पाना ही है !

केशव,
यह मेरा अभिमान नहीं,
यह तुम ही हो,
जिसने अर्जुन से कहीं अधिक,
अपना विराट स्वरूप दिखाकर
मेरे भव्य स्वरूप को उभारा ।


तुम थे तो,
वो पल था कितना चंचल,
नदियों सा बहता था,
वो पल कल-कल,
हवाओं में,
प्रतिध्वनि सी थी हलचल,


एक दिन किसी लोकगीत में
उसे मिल गई उसकी माँ,
अब वह लड़की हर वक़्त
वही गीत गुनगुनाती है,
लोग उसे पागल समझते हैं.

My Photo
विषधर की रखवाली में चन्दन अछूत हो जाता है
पर कहा नहीं जा सकता
शोलों की आगोश बसा शीतल रह पायेगा चन्दन भी -
***
जब रण मांगे आभूषण शाळा शस्त्र बनाने लगती है
कहा नहीं जा सकता

धन्यवाद।

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

1380... काश


Image result for लगन पर कविता

मेरे शिक्षिका बनने का नियुक्ति का पत्र आया
बहुत खुशी हुई 
बस एक कदम दूर थी ।
मगर पति के चेहरे पर 
खुशी कम 
रूखापन ज्यादा था ।
वजह एक थी 
उन्हे हमारी नौकरी करना पंसद नही था ।
उन्होने बस यही फरमान सुनाया 
बस तुम्हे घर का काम करना
सास ससुर की सेवा करना
मेरी आशा और पिता जी की मेहनत 
सब कुछ मिट्टी मे मिल गया ।
बहुत मिन्नत की 
मगर आज भी जिद् पर अङे है वो 
बस यही जबाब देते 
क्या तुम्हे पैसे की कमी?
सच कहू 
बहुत रूखा इन्सान है

जिसे मेरी काबलियत की परख न थी... Narender Paul

"समय के साथ रूखापन कम हो जाएगा... अगर आप दृढ निश्चयी हों...
खुद के लिए कहते हम तो बड़े तोप थे...
दोष दूसरे को दे लेते हैं...
हममें लगन कम न होता

काश



अब तो कविता-
बिन हाथ ,पैर ,आँख ,कान के हो गयी। 
जो मन चाहा ,लिख दिया। 
सन्दर्भ-व्याख्या-क्या पता ?
रजाई में दुबक कर लिख डाली ,
अँधेरे की कविता। 
नदी में डुबकी लगा ,
लिख डाली रोमानिया की सविता।

काश

काश कि ऐसा होता, काश कि वैसा होता kavita

अल्फ़ाज़ में कहीं कुछ अटक नहीं जाता
रूह को कहीं सुकून हासिल हो जाता
माना की जन्नत से फ़ासला काफ़ी है
पर मन्नत की नि’मत भी यही है
और फिर होता भी तो यही है ना

काश



तुम होते मेरे साथ हमेशा,
जैसे सीप और मोती,
सूरज और रौशनी,
मांग और सिंदूर,
दीपक और ज्योति...

काश

Aakash Parmar

शरमा जाती गर पलकें मेरा नाम सुनकर,
मेरा इश्क़ मुकम्मल हो रहा होता कही,

हर सजदे में दुआ मांगते,
तेरे जुस्तजू-ए-इश्क़ पूरा होने की कही,

काश



ग़म के अंधेरो निकलने की रोशनी चमका जाय
हमे खुशियों मे से खुशी का एक वक्त दे जाय
हम भी रोये किसी की यादो मे , काश कोई ऐसा एहसास दिला जाय
हमे उम्मिदो की नयी रोशनी मिल जाय ,सोते हुए

><
फिर मिलेंगे...


अब आती है बारी
साप्ताहिक विषय की
अड़सठवाँ विषय
वेदना
उदाहरण.....
भीगे एकांत में बरबस -
पुकार लेती हूँ तुम्हे
 सौंप अपनी वेदना -
 सब भार दे देती हूँ तुम्हे !

 जब -तब हो जाती हूँ विचलित
 कहीं  खो ना  दूँ तुम्हे
क्या रहेगा जिन्दगी में
जो हार देती हूँ तुम्हे !



अंतिम तिथि -27 अप्रैल 2019
प्रकाश्य तिथि- 29 अप्रैल 2019

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

1379.....कलम लिखने वाले की खुद ही फितूरी है

स्नेहिल अभिवादन
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सोचती हूँ किसको कहूँ
पत्थर यहाँ भगवान,
तुझको पत्थर कहते हुये
ख़ुद बुत बना इंसान।
हृदय संवेदनहीन है
न धरम कोई न दीन है,
बिक रहा बाज़ार में
 फर्ज़ और ईमान,
सोचती हूँ किसको कहूँ
पत्थर यहाँ भगवान।
★★★★★
आदरणीया शशि पुरवार जी

व्यर्थ कभी होगा नहीं, सैनिक का बलदान
आतंकी को मार कर, देना होगा मान२ 

चैन वहां बसता नहीं, जहाँ झूठ के लाल
सच की छाया में मिली, सुख की रोटी दाल३ 

लगी उदर में आग है, कंठ हुए हलकान
पत्थर तोड़े जिंदगी, हाथ गढ़े मकान४ 
★★★★★
आदरणीया सुधा सिंह "व्याध्र"

मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.
★★★★★★
चंद्रकांत देवताले

यदि मुझे औरतों के बारे में
कुछ कहना हो तो मैं तुम्हें ही पाऊँगा अपने भीतर
जिसे कहता रहूँगा बाहर शब्दों में
जो अपर्याप्त साबित होंगे हमेशा
★★★★★
अनिता सैनी

ज़िंदगी  के  लिए दौड़  रही  दुनिया 
वक्त , ज़िंदगी   का  निगल  गई 
तराजू  से  तौल  रहे  प्रीत 
ज़िंदगी ,  प्रीत   को    तरस  गई |
★★★★★
उलूक के पन्नों से
आदरणीय सुशील सर

कलम
लिखने वाले की
खुद ही फितूरी है

उलझ
लेते हैं फिर भी
पढ़ने पढ़ाने वाले 
★★★★★
आज यह अंक
आप सभी को.कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की
सदैव प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी 
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।