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सोमवार, 2 जुलाई 2018

1081...हम-क़दम का पच्चीसवां क़दम

सादर अभिवादन..

'मंज़र' 
एक उर्दू अल्फ़ाज़ है जिसका अर्थ है देखने योग्य वस्तु या स्थान; दृश्यावली; दृश्य; नज़ारा..इस अल्फ़ाज़ का प्रयोग अक्सर श़ेर-ओ-श़ायरी में करते हैं....हिन्दी में तुकान्त कविता अथवा नई शैली की अतुकान्त कविता में प्रयोग करते तो हैं पर कठिनाई होती है......कोई भी विषय देने के उपरान्त हम दो-तीन कविताएँ हम अपने पाठकों को अवश्य पढ़वाते हैं....
इस पर रचनाएँ तो लिखी गई है पर 
रचनाकार भूल गए हैं कि हमारे द्वारा इस विषय पर कोई कविता लिखी गई है....
हमारे ख़ोजी दस्ते ने तलाशा और पाया की 
कई छुपे रुस्तम हैं जो इस विषय पर लिखकर भूल चुके हैं.....
यहाँ तक तो ठीक है...........प्रतिदिन के पाठक 
आदरणीय डॉ. सुशील जी जोशी भी......
हम आपको बता दें कि डॉ. सुशील जी जोशी एक बेहतरीन श़ायर भी हैं...आपकी कलम से कई ग़ज़लें व कविताएँ प्रसवित हुई है...
एक ग़ज़ल आज आप पढ़ेंगे यहां पर... 
चलिए इसी बहाने एक लर्निंग क्लास हो गई.....
आज की इस प्रस्तुति का अवलोकन करें पठन करें..सारी रचनाएँ आप ही की लिखी हुई है....जिसे आप भूल चुके हैं....तीन रचनाएं वे हैं जो उदाहरणार्थ प्रकाशित हुई थी......

सखी ऋता शेखर 'मधु'

उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता

दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता

दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता




सखी सुप्रिया पाण्डेय
मैं घूम घाम कर सारा जग,
समेट कर सारा मीठा जल
समाती रहूँ तुम्हारे आगोश में,
खोकर भी अपना अस्तित्व तुमसे मिलकर,
रखूं अपना प्रेम बरकरार,
अनकहे शब्दों में भी,
हो जाये लम्हा हमारे इज़हार का,
ताउम्र रहे खुशनुमा 
मंज़र हमारे प्यार का...


सखी कुसुम कोठारी
चाहत  मे  बस अहसास की छूवन  हो यादो मे
जैसे मौजे छूकर साहिल को लौटती दुआओं मे

हसीं वादियों के मंजर कितने खुशनुमा चमन मे
भीगा दामन धरा का घुमड़ती काली घटाओं मे।।

सखी अभिलाषा चौहान की दो रचनाएँ
याद आता है मुझे जब

वह मंजर
जब चल पड़ा कोई अपना
अनंत यात्रा पर...
देखा आंसुओं का समंदर
टूटती हुई मां बदहवास सी
टूटी पिता की कमर
देखते असहाय से
लुटते हुए खुद को....


हर ओर यही मंजर है

दिल में चुभता कोई खंजर है
मरती हुई इंसानियत से
दिल जार जार रोता है
ऐसे भी भला कोई
 इंसानियत खोता है
जब उठता दर्द का समंदर
हर मंजर याद आता है

सखी अनुराधा चौहान

आज फिर तेरी यादों का
समंदर लहराने लगा
दिल में सोया हुआ
वह खौफनाक मंजर
फिर जगाने लगा
यह भयानक हवाएं
यह काली घटाएं
देख दर्द का सैलाब
मेरी आंखों से आने लगा

आदरणीय लोकेश नदीश जी की दो रचनाएँ

रस्ते तो ज़िन्दगी के साज़गार बहुत थे
खुशियों को मगर हम ही नागवार बहुत थे

बिखरे हुए थे चार सू मंज़र बहार के
बिन तेरे यूँ लगा वो सोगवार बहुत थे

ये जान के भी अहले-जहां में वफ़ा नहीं
दुनिया की मोहब्बत में गिरफ्तार बहुत थे


मकानों के दरम्यान कोई घर नहीं मिला
शहर में तेरे प्यार का मंज़र नहीं मिला

झुकी जाती है पलकें ख़्वाबों के बोझ से
आँखों को मगर नींद का बिस्तर नहीं मिला

सर पे लगा है जिसके इलज़ाम क़त्ल का
हाथों में उसके कोई भी खंज़र नहीं मिला

आदरणीय अमित शर्मा

हो पल भर का विलम्ब उसके आने में,
...तो डराता है इंतज़ार।

रुस्वाई से बेवफ़ाई तक का मंज़र,
दिखलाता है इंतज़ार।

वो ना मिली तो दोजख़ का शगल,
महसूस कराता है इंतज़ार।

आदरणीया शकुन्तला श्रीवास्तव

चला है साथ कभी बादलों में आया है
ये चाँद है कि मेरे साथ तेरा साया है।

ये दर्द मेरा है, जो पत्तियों से टपका है
ये रंग तेरा है, फूलों ने जो चुराया है।

ये भीगी शाम, उदासी, धुँआ, धुँआ, मंज़र
उदास गीत कहाँ, वादियों ने गाया है।


आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी  की दो रचनाएँ

सुरमई सांझ सा धुँधलाता हुआ मंजर,
तन को सहलाता हुआ ये समय का खंजर,
पल पल उतरता हुआ ये यौवन का ज्वर,
दबे कदमों यहीं कहीं, ऊम्र हौले से रही है गुजर।

पड़ने लगी चेहरों पर वक्त की सिलवटें,
धूप सी सुनहरी, होने लगी ये काली सी लटें,
वक्त यूँ ही लेता रहा अनथक करवटें,
हाथ मलती रह गई हैं,  जाने कितनी ही हसरतें।


वो यतीम बच्चा
तभी एक साए ने उसे गोद मे ले
सीने से लगा लिया।
मैंने सोचा शायद वो,
काम में कहीं अटकी होगी,
पर ये क्या? मंजर बदल गया!
अगले ही कुछ पलों मे,
आँखें पोछती वो वापस जा चुकी थी!

भिखारियों के एक झुंड ने मोहवश,
उस बच्चे को गोद ले लिया,
उत्सुकतावश मैंने
उस बच्चे के बारे में पूछा,
जवाब मिला, "यतीम भाई है अपना"
मैं सन्न सा सोचता रह गया ।

सखी पल्लवी गोयल 

आज 'वह' दिख ज़रा सा क्या गया 
तू खुद से खुद को छोड़ चला ?

देखता रहा तू मंज़र आज तक 
राह की रवानगी से बेराह तक। 

आज जाता है तो फिर से सोच ले  
गुमशुदा उदास न लौटे उस ओर  से।

आदरणीय दिगम्बर जी नासवा
कहीं से फ़ैल गयी होगी बात आने की
तभी तो हाथ के कंगन मचल गए होंगे

किसी के ख्वाब में तस्वीर जो बनी होगी
किसी के याद के मंज़र पिघल गए होंगे

ये रौशनी का नहीं फलसफा है रिश्तों का
ढली जो रात सितारे भी ढल गए होंगे

चिर प्रतीक्षित रचना..
आदरणीय डॉ. सुशील जोशी
आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।

आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।

रात की बात करते हो सोच लिया करना
मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता ।

श़ाद रहें आबाद रहें
अगला विषय कल के अँक में

आदेश दीजिए..
यशोदा



19 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष संग शुभ प्रभात
    प्रस्तुतीकरण का मंजर बेहद खूबसूरत

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीया यशोदा जी सादर आभार 🙏 आपने मेरी रचना'भयावह मंजर' के विषय को चर्चा का विषय
    बनाकर इतना खूबसूरत और भावप्रवण संकलन प्रस्तुत
    किया है, उसके लिए तहेदिल से धन्यवाद। सभी रचनाएं मंजर शब्द की सार्थकता को गहराई से
    अभिव्यक्त कर रहीं हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय सखी यशोदा दीदी लाजवाब सुंदर संकलन बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌
    सभी रचनाएँ बेहद उम्दा
    सभी रचनाकारों को खूब बधाई
    सादर नमन सुप्रभात शुभ दिवस 🙇

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार आदरणीया मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए।
    बेहतरीन संकलन
    सभी रचनाकारों की रचनाएं उत्कृष्ट हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की इस सुन्दर प्रस्तुति में अपनी दो रचनाओं को शामिल देखकर मुझे अति प्रसन्नता मिली है। हलचल के तमाम प्रस्तुतकर्ता, आदरणीय यशोदा दी व अपने सम्माननीय पाठकवृन्द का हार्दिक आभार।

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  6. अरे अरे यशोदा जी।
    दिन के उजाले में आँखें फाड़ कर
    रोशनी समझने भर की कोशिश करता है 'उलूक'
    शायरों के शायरी के बीच में बस यूँ ही
    गिरगिट की तरह रंग बदलता है 'उलूक'
    बकवास करने की आदत से मजबूर है
    शायर नहीं है उल्लू जरूर है 'उलूक'
    इतना भी ना चढ़ाइये झाड़ पर गिर पड़ेगा
    बड़ी मुश्किल से एक सूखे पेड़ की डाल पर पर
    बस लटका हुआ सा कुछ रहता है 'उलूक'

    हमकदम के खूबसूरत पच्चीसवें कदम में लाजवाब रचनाओं के जखीरे के बीच 'उलूक' को भी जगह देने के लिये आभार यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं बहुत प्यारा मंजर है यह
    यशोदा जी सादर आभार आपका मेरी रचना को साझा करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संकलन!!
    खोज खोज के विस्मृत रचनाओं का संग्रह साधुवाद का विषय है आदरणीय सखी सभी रचनाऐं बहुत सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मेरी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  9. मंज़र के सभी ख़ूबसूरत मंज़र बेमिसाल हैं ... एक कल्पना एक अहसास कोई रुका हुआ लम्हा जो उभरता है ... वही मंज़र बनता है ...
    आभार मेरी ग़ज़ल को भी जगह देने के लिए आज ....

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  10. वाह!!!बहुत ही खूबसूरत संयोजन । सभी रचनाएँ एक से बढकर एक ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

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  11. आफरीन सखी यशोदा जी ..एक तो शब्द मंजर ....तासीर बहुत रखता है उस पर लगा शायरों के हाथ गजब की तहरीर हो गया ! कभी रवायत कहीं शमशीर हो गया .......
    हर नज़्म बेहतरीन
    हर नज़्म वल्लाह
    गजब संकलन मंजर है
    सब कह उठे वाह वाह ....🙏🙏🙏🙏👏👏👏👏👏👌👌👌👌

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  12. वाह!! बहुत खूबसूरत मंजर..सभी रचनाएँ बढिया
    मंजरों को खोजने के लिए आपकी प्रयत्न सराहनीय है।
    नमन।

    जवाब देंहटाएं
  13. सटीक भूमिका और नयी पुरानी रचनाओं के शानदार मिश्रण से बनी आज की प्रस्तुति दी बेहद सराहनीय है।
    हमक़दम का कारवाँ यूँ ही आगे बढ़त रहे यही दुआ करते है।
    दी बहुत बधाई आज के सुंदर अंक के लिए।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  14. वआआह....
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  16. आदरणीय यशोदा दीदी -- आजके रोचक अंक की भूमिका में लगा कि ताजी रचनाएँ कम आने से कुछ निराशा |रचनाएँ भले खोजी दस्ते ने खोजी पर लाजवाब खोजी ! मैंने हर एक पढ़ी - मन्त्र - मुग्ध कर गया '' मंजर ' पर लेखन का मंजर | आज बहुत कई कदम बाद मिली जुली उपस्थिति रही सबकी | हमकदम से कई हफ्ते से जो अदृश्य थे , वे रचनाकार भी आज उपस्थित हुए बहुत अच्छा लगा | सभी के ब्लॉग पर लिखना संभव हुआ पर अमित जी के ब्लॉग पर लिखना संभव न हो पाया |पता नहीं क्यों ? उन्हें यहीं से मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं | सबसे ज्यादा आश्चर्य मुझे सुशील जी की रचना पर हुआ | मैंने नही सोचा था कि वे इतना गम्भीर लेखन भी करते हैं | सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनायें और आपको हार्दिक बधाई आज की सुंदर सार्थक प्रस्तुती के लिए | सादर

    जवाब देंहटाएं
  17. सुंदर संकलन
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    बहुत बधाई आज के सुंदर अंक के लिए

    जवाब देंहटाएं
  18. आदरणीय यशोदा दी आज का प्यार भरा मंजर बड़ा ही खूबसूरत है
    अतिसुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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