प्रसन्नता अपार....
पर व्यक्त करूँ तो करूँ कैसे
शब्दों का टोटा हो गया अचानक....
आज की प्रस्तुति में हम
सभी चर्चाकारों की पसंद की दो रचनाएँ
..कुलदीप भाई की पसंद..
'वृद्ध-आश्रम' होने चाहिए या नहीं?.. प्रीति अज्ञात
यहाँ न सपने हैं न ख्वाहिशें। उम्मीदों की टूटन, रिश्तों की सघन गर्मी,
मन की उष्णता, ह्रदय की घुटन और इस सबको भुलाने की नाक़ाम कोशिशों में लगे तमाम अनुभवों की ठिठुरन है। अपनी जिम्मेदारियों को निभाकर और कर्तव्यों के आगे स्व की तिलांजलि देने के बाद जो शेष है वही इनका जीवन है. अपनों का दूर जाना
जितना आसान है
"हाँ हम शर्मिंदा हैं"...प्रीती राजपूत शर्मा
ना जाने कब ये शर्मिंदगी दूर होगी।
न जाने कब बेटी के जन्म पे फिर से दीवाली होगी।
हम सच में शर्मिंदा हैं की हम 125 करोड़ के इस युवा प्रधान देश में भी
सुरक्षा के नाम पर हर रोज बलत्कार के शिकार हो रहे है ।
हम शर्मिंदा हैं क्योंकि ये सब देख कर भी हम जिन्दा हैं ।
विभा दीदी की पसंदीदा रचनाएँ
मधुर मधुर हो अपना जीवन....अशोक व्यास
पीढ़ी दर पीढ़ी
अनुस्यूत
एक भाव
एक सात्विक सातत्य
सहेजता
सम्बन्ध समग्रता से
खिल जाता सौंदर्य शाश्वत का
नीड़ का निर्माण फिर-फिर.......राजीव के. सक्सेना
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अंधेरा
धूल धूसर बादलों न
भूमि को एस भांति घेरा
रात सा दिन हो गया फिर
पम्मी सिंह जी की पसंद
ग़ज़ल..पूनम मटिया
हैफ़ ! कितना बदल गई हूँ मैं
शम्अ जैसे पिघल गई हूँ मैं
क्या यही मैं थी, क्या वही हूँ मैं
किसके पैकर में ढल गई हूँ मैं
कैसी चले रहे हो तुम चाल साहब....राज कानपुरी
कैसी चले रहे हो तुम चाल साहब
कर रहे हो इंसां को हलाल साहब
चूस कर के खून इन गरीबों का
हो रहे हो और मालामाल साहब
हमारा ८०० वां अंक, शुक्र है यहाँ रचनायें शामिल करने के लिए रचनाकारों का किसी नामी -ग्रामी रचनाकारों का शागिर्द अथवा पिछलग्गू होना आवश्यक नहीं। जो सत्य है अजेय है ,'सार्वभौमिक' एवं सत्य कभी छुपता नहीं ,अपने तेज को चारों ओर बिखेरता है। इसी सत्य को हम साकार करने की चेष्टा इस ब्लॉग "पाँच लिंकों का आनंद'' परिवार की ओर से कर रहे हैं, आप सब का सहयोग अपेक्षित है। इसी क्रम में इस विशेषांक पर मेरी पसंद की दो रचनायें हमारे युवाकवि आदरणीय "पुरुषोत्तम सिन्हा" एवं
आदरणीय राकेशश्रीवास्तव"राही" द्वारा "एकलव्य"
मैं किस खेत की मूली हूँ।
अब हम दोनों की पसंदीदा रचनाओं की बारी..
मुझ तक पहुँच जाओगे...!!!...सुषमा वर्मा
मैं आज किसी सुकून की तलाश में,
उन जगहों पर जा कर,
पहरों बिता आती हूँ,
जिस जगह तुम घंटो बैठा करते थे..
तुम्हारी खुशबू हर तरफ महसूस करती हूं,
गालों का गुलाल...आनन्द द्विवेदी
एक दिन जब
मुस्कराता हुआ ईश्वर
मेरी रूह पर वैधानिक चेतावनी सा
गोद रहा था ..प्रेम
मैं उसके हाथ से फिसल कर गिरा तुम्हारी मुंडेर पर
दीपा....एम. रंगराज अय्यंगर
उसने दीपा की हालत देखी थी, तो कुछ कह नहीं पाया था.
जब पति के साथ दीपा उतरने लगी गाड़ी से -
तब लड़के ने सिर्फ इतना कहा - दीदी - "आई एम सॉरी दीदी."
दीपा अभी अभी शांत हो पायी थी. लड़के की बात सुनकर
उसकी आँखों की कोरें फिर भीग गई. दीपा ने ममता भरा
हाथ उसके सिर पर फेरा और आगे बढ़ गई.
और अब ये हमारी पसंद की अंतिम रचना..
मेरी चचेरी बहन दिव्या...लगभग पूरे पितृ-पक्ष में हमारे घर पर ही थी
वो बिगड़ गई थी..गरम कहानियाँ लिखती थी..हमारी समझाईश व पितरों के आशिर्वाद से अब वह ठीक हो गई है.. किसी संत ने ठीक ही कहा है
निंदक नियरे राखिए,आँगन कुटी छवाए
साबुन पानी के बिना मन निर्मल करे सुहाए
कूड़ा 'औ' कचरा सबसे ज्यादा पढ़ी गई..
उसी की लिखी एक कविता..
कूड़ा 'औ' कचरा...दिव्या अग्रवाल
लिखती थी मैं
कूड़ा 'औ' कचरा
आती थी बदबू
दिखाई पड़ती थी
दिव्या के कूड़ेदान पर,
इस कविता को श्रीमति मीना शर्मा जी ने समझा...
उनकी प्रतिक्रिया...
Meena Sharma19 September 2017 at 22:59
हैरान हूँ मैं तो दिव्याजी, ये देखकर कि आपने इतनी निर्भीकता, इतने बडप्पन से अपनी गलतियों को न केवल मान लिया है, बल्कि सभी के सामने मान लिया है !!!
दिव्याजी,लेखक समाज में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने लेखन पर स्वयं ऐसी टिप्पणी कर सकें जैसी आपने की है । ईश्वर आपको सुंदर लेखन के उपहार से नवाजे,इसी शुभकामना और बहुत सारे स्नेह के साथ....
‘उलूक’ के पन्ने से साभार..
तो आईये
‘आठ सौवीं’
'पाँच लिंको
की हलचल’
के लिये पकाते हैं
आसपास हो रही
हलचल को लेकर
दिमाग के गोबर
के कुछ कंडे
यूँ ही सोच
में लाकर
रंग में सरोबार
कन्हैया भक्त
बरसाने के
डंडे बरसाते
बस....
मैं ये समझती हूँ.... इससे ज़ियादा
हमारे पाठक नहीं झेल सकते
इति..आठ सौवां अंक
यशोदा ..
जवाब देंहटाएंऊषा स्वस्ति।
आज मन प्रसन्नता से भर गया 800 वें अंक की प्रस्तुति से।
आदरणीया यशोदा बहन जी को सादर नमन और बधाई सृजनात्मक श्रम और समर्पण के लिए।
आपने एक सुन्दर ,संग्रहणीय अंक तैयार किया है।
आज का दिन हमारे लिए विशेष है और जल्द ही एक और विशेष दिन आने वाला है जब हम 200,000 पृष्ठ दृश्य (आज 5 :59 प्रातः 179,960) के आँकड़े को छूएंगे जिसके लिए आप सभी सुधि जन बधाई के पात्र हैं।
आज के विशेषांक में सभी चयनित रचनाकारों ,चर्चाकारों को बधाई एवं मंगलकामनाऐं।
दिव्या अग्रवाल जी का परिचय आज आदरणीया बहन जी ने रोचक ढंग से कराया ,उन्हें सुनहरे भविष्य की शुभकामनाऐं।
आपका सानिध्य मिलना सौभाग्य की बात है।
आभार सादर।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंयादगार अंक बन गया आज का
श्रम को सलाम
सादर
वाह!दी..बहुत बढिया, स्मरणीय अंक,
जवाब देंहटाएंमेहनत तो रंग लाती है.. आहिस्ता ही सही
आज के विशेषांक में सभी चयनित रचनाकारों ,चर्चाकारों को बधाई एवं मंगलकामनाऐं।
वाह! अद्भुत!!! बधाई! बधाई!! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात दी:)
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह...अति सुंदर गुलदस्ता सजा है आज के 800वें अंक विशेषांक के लिए।विविधता पूर्ण रचनाओं के इस गुलिस्तां में मेरी रचना को शीर्ष मान देने के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार मन विभोर है। संग्रहनीय अंक बना है दी।
पाँच लिंकों के सभी सदस्यों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ
सभी रचनाकारों को भी बधाई एवं शुभकामनाएँ।
चंद पंक्तियाँ मेरी शुभकामनाओं से भरी-
जननी 'यशोदा' लिंकों की
'विभा' सुवासित चहुँओर है
'रवींद्र' सा दैदीप्यमान लगे
'ध्रुव' तारा सा चमके नभ में
'दिग्विजयज' कीर्ति मान रहे
इस'कुलदीप'जग सुरभित हो
'हलचल' मचे ब्लॉग जगत में
साथ 'पम्मी' के सहयोग से।
आभार,
सादर।
eautifully written. Very realistic. Gave me chills…
हटाएंयानी कि jabardast 👍☺
*Beautifully
हटाएंआभार आभार शुक्रिया आपका जी
हटाएंThanku so much.
क्या बात है ।
हटाएंइससे सुन्दर आत्मीयता से परिपूर्ण तोहफ़ा आज के दिन और क्या हो सकता है ? जोकि आभासी दुनिया में अमिट रहेगा ...... !
हटाएंहार्दिक आभार एवं शुक्रिया आदरणीय श्वेता जी।
यों ही "पाँच लिंकों का आनंद" को आपका स्नेह ,समर्थन और सहयोग मिलता रहे हम ऐसी आकांक्षा रखते हैं और आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
माफी चाहेंगे टंकन त्रुटि, सर के नाम में एक अक्षर ज्यादा लिख गये।
जवाब देंहटाएंआपने दिग्विजयजी लिखना चाहा था
हटाएंइतना तो समझते हैं हम
इज़्ज़तअफ़जाई का शुक्रिया
सादर
जी दी:))
हटाएंमेरे हृदय का नेह और असीम , अनंत शुभकामनाएँ आप सब के प्रति स्वीकार करे।
हमें तो आनन्द आ गया । जय हो हलचल के श्री श्री आठ सौ बाबा जी की। सभी चर्चाकारों चिट्ठाकारों पाठको को शुभकामनाएं। लिखते रहें और हलचल करते करते हलचल में छपते रहें पढते रहें । 'उलूक' शुक्रगुजार है आप सभी का उसको भी उत्कृष्ट रचनाओं के स्वादों के बीच कुछ कड़वे कुछ खट्टे की तरह आप हमेशा से झेलते रहे ।
जवाब देंहटाएंप्यारी दीदी को नमन
जवाब देंहटाएंएक संग्रहणीय संयोजन...
आभार मीना दीदी को
हौसलाअफ़ज़ाइ के लिए
एक आप ही हैं मीना दी
जो मेरे आत्मकथ्य का मर्म समझ पाई
बाकी सब तो उस रचना को
स्वच्छता अभियान से जोड़ रहे थे
सादर
लेखक अपनी सोच से लिखता है लिखते रहिये
हटाएंपाठक अपनी सोच से पढ़ता है पढ़ने दीजिए
रिश्ता बना रहे इसी तरह लिखना पढ़ना कीजिये ।
शुभकामनाएं।
प्रिय दिव्या, आपने बड़ों की बात मान ली और इतना मान मुझे दिया, मेरा मन अभिभूत है । कभी कभी मैं सोचती हूँ कि ये अंतर्जाल की दुनिया भी कितनी अजीब है । जाने कहाँ कहाँ के वासी हम लोग किस तरह यहाँ जुड़ जाते हैं आपस में । यशोदा दीदी के साथ रही हो,ये विनम्रता और अपनापन तो आना ही था स्वभाव में... शब्द सब कुछ कह देते हैं दिव्या, मिलने और चेहरा देखने की भी जरूरत नहीं होती । खुश रहें, अच्छा लिखती रहें, जुड़ी रहें सबसे ।
हटाएंसस्नेह ।
एक शानदार सुंदर अंक। प्रथम अनुभव लेकिन सुखद अनुभव। सभी सुधि सदस्यों एवम रचनाकारों को बहुत बहुत बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंआज सच में आनंद आ रहा है सोच रहा हूं हम कहां से चले थे और कहां पहुंच गई आज जहां हमारी कुछ नियमित पाठक हैं वही प्रतिदिन नई चर्चा कार द्वारा चर्चा प्रस्तुत किया जाना बहुत ही आनंद दायक है मैं समस्त पाठ को एवं चर्चाकार को इस महान पर्व पर शुभकामनाएं देता हूं और आशा भी करता हूं कि आप सब इसी तरह हमसे यह अटूट स्नेह बनाए रखें धन्यवाद
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
800वें अंक की बहुत बहुत बधाई...बहुत ही मजेदार रही आज की प्रस्तुति....सभी लिंक्स बहुत ही लाजवाब....
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं पूरे हलचल परिवार को...
आज का अंक बहुत ही सुंदर ! विशेषांक में चुना जाना अत्यंत हर्ष की बात है मेरे लिए । सभी चयनकर्ताओं का सादर आभार ! विशेष आभार !
जवाब देंहटाएंचुने गए रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएँ ।
सबसे पहले इस अनूठे प्रयास के लिए यशोदा बहन को बधाई . इस अंक को पढ़ कर ऐसा लगा कि "पांच लिंकों का आनंद" एक विचार-धारा है रचनाएँ अलग-अलग परन्तु संदेश एक है- भाईचारे की, प्यार की, सद्भावना की,आत्म-मंथन की अथार्त एक सुंदर समाज के निर्माण में सभी की योगदान की . इस चर्चा में सम्मलित सभी सारगर्भित रचनाओं के रचनाकार एवं संकलनकर्ताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंरचना "दीपा" को आपके विशिष्ट 800 वें अंक में स्थान देने हेतु विशेष आभार.
जवाब देंहटाएंविनम्रता स्वीकारें.
सादर,
अयंगर.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविशेष 800 वाँ अंक विशिष्ट ही रहा और सुखद अनुभव कि मुझे इसका अंश बनाया गया.रचनाओं को खोजकर निकालने में जो मेहनत संकलनकर्ताओं ने की उसके लिए उन सबका विशेष आभार.
हटाएंदेर से मेरी उपस्थिति सफाई देने के लिए कुछ है नहीं
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनायें 8000वें पोस्ट पर हम मिलें