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मंगलवार, 28 मार्च 2017

620...हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत 2074... और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें...

जय मां हाटेशवरी...


पांच लिंकों का आनंद की ओर से...
समस्त पाठकों व चर्चाकारों को...
हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत 2074...
और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें...
और शुभ नवरात्री...
भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नव संवत्सर का आरम्भ होता है । वर्ष प्रतिपदा का मुहूर्त सभी शुभ कार्यो को प्रारंभ करने के लिए उचित माना गया है । भारत वर्ष में अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही कालगणना युधिष्ठिर विक्रम संवत्, शालिवाहन, शक आदि का नव वर्ष प्रतिपदा से ही आरम्भ होता है ।
इस प्रकार हिन्दू राष्ट्र में वर्ष प्रतिपदा का अनन्य महत्व है । भगवान रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक उत्सव वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हुआ था । अत्यंत निग्रह पूर्वक अपने जीवन कार्य को करने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जन्मोत्सव चैत्र नवरात्रि का आरम्भ भी इसी दिन होता है ।

भारतीय समाज में चेतना व संगठन का निर्माण कर विदेशियों को निकाल देने का ऐतिहासिक कार्य भी इसी दिन हुआ था । विक्रमादित्य द्वारा शकों पर प्राप्त विजय तथा शालिवाहन द्वारा उन्हें भारत से बाहर निकालने पर इसी दिन आनंदोत्सव मनाया गया । इसी विजय के कारण प्रतिपदा को घर-घर पर ‘ध्वज पताकाएं’ तथा ‘गुढि़यां’ लगाई जाती है ।

विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत ५७ ई.पू। आरम्भ हुआ। सम्राट विक्रमादित्य ने इसे बनाया था। कालिदास इस महाराजा के एक रत्न माने जाते हैं।
बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।
दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है , यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर ( जो आजकल प्रचलन में है ) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था . इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर ( विक्रम संवत ) में से ही उठा लिया गया था . आइये
जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास। भारतवर्ष में इस समय देशी विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है, किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत यदि कोई है तो वह 'विक्रम संवत' ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विक्रम संवत का भी आरम्भ हुआ था। नये संवत की शुरुआत प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया। भारतीय कालगणना दुनिया में सबसे पहले तारो, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारो , ग्रहों , नक्षत्रो , चाँद , सूरज ,...... आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर ( विक्रम संवत ) तैयार किया , इसके महत्त्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा .
भारतीय महीनों के नाम जिस महीने की पूर्णिया जिस नक्षत्र में पड़ती है उसी के नाम पर पड़ा। जैसे इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं इस लिए इसे चैत्र महीनें का नाम हुआ।





कुछ मुसलमान भी , सीने से लगाने होंगे -सतीश सक्सेना
धन कमाना हो खूब,मीडिया में आ जाएँ
एक राजा के ही बस, ढोल बजाने होंगे !
सोंच में हो मेरे सरकार,तो कह ही डालो
आज भी विषबुझे कुछ वाण चलाने होंगे !

जी करता है
अपने आंसुओं से
शिवालय धोने को
जी करता  है ,
समुन्द्र के रेत से
बनाया था जो आशियाना
उसे समुन्द्र को
सौंपने का
जी करता है ,

कहानी प्रेम की? हाँ ... नहीं ...
समाजवाद की गलियों से गुज़रता
गुलज़ार की नज्मों में उतर आया था
खादी के सफ़ेद कुर्ते ओर नीली जीन के अलावा  
तुम कुछ पहनने भी नहीं देतीं थीं उन दिनों
मेरी बढ़ी हुई दाड़ी ओर मोटे फ्रेम वाले चश्में में
पता नहीं किसको ढूँढती थीं
पढ़ते पढ़ते जब कभी तुम्हें देखता  
दांतों में पेन दबाए मासूम चेहरे को देखता रहता
     
कातर नजरें-
धूल धुआँ भी खुली हवा में
शामिल लगता है
कोलाहल की इस बस्ती में
झूठी हैं  कसमें
अस्त व्यस्त जीवन जीने की
निभा रहे  रसमें 
सपनों की अंधी नगरी में  
धूमिल लगता है

पेड़ों के नीचे "पवित्र कूड़े" का ढेर
देश के चाहे किसी भी हिस्से में निकल जाइए, शहर हो या क़स्बा, आपको किसी न किसी पेड़ के नीचे हमारे भगवानों की भग्न, बदरंग या पुरानी मुर्तिया, टूटे कांच या फ्रेम में जड़ी देवी-देवताओं की कटी-फटी तस्वीरें,
पूजा,  हवन इत्यादि से संबंधित वस्तुएं जरूर दिख जाएंगी। कभी बड़े सम्मान के साथ घर ला कर इनकी पूजा-
अर्चना की गयी होगी। इनमें अपने प्रभू या इष्ट की कल्पना की गयी होगी। पर आज गंदगी के माहौल में जानवरों-कीड़े-मकौड़ों के रहमो-करम पर लावारिस पड़ी, धूल फांक रही हैं। क्यों ऐसा होता है या किया जाता है ? धार्मिक प्रवित्ति के होते हुए भी हम क्यों ऐसा करते हैं ?


आज बस इतना ही...

धन्यवाद।














7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    हिन्दू नववर्ष की शुभ कामनाएँ
    अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ढ़ेरों आशीष संग असीम शुभकामनाएँ
    सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर गीतों के साथ पेश आज की बढ़िया प्रस्तुति कुलदीप जी । सभी को हिन्दू नववर्ष की शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल एवं गीत प्रस्तुति हेतु आभार!
    सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ संध्या
    हिन्दु नववर्ष की बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. जय माता दी ... सुंदर हलचल ..
    आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं

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