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सोमवार, 27 मार्च 2017

619....चेहरे दर चेहरे कुछ लाल होते हैं कुछ होते हैं हरे

सादर अभिवादन
सफर की तैय्यारी कर रही हूँ..
सो सीधे चलिए रचनाओं की ओर....



प्राकृतिक अभियंता....आशा सक्सेना
तिनके चुन चुन
घरोंदा बनाया 
आने जाने के लिए
एक द्वार लगाया 
मनोयोग से
घर को सजाया
दरवाजे पर खड़े खड़े 
अपना घर निहार रही 



अपने नज़रिये से
जो "प्रेम" लगता है
वह "प्रेम"
हमेशा "प्रेम" नहीं होता
एकांत लम्हों का
सहयात्री होता है !
सहयात्री सुपात्र हो
ज़रूरी नहीं
कुपात्र भी हो सकता है



खामोशियों में भी
दूरियों में भी
कुछ तड़पता है
कुछ कसकता है
वो न हो कही भी
फिर भी
हर साँस के साथ उनको
महसूस करते है

मेरे मसीहा...
मेरे अज़ीज़, मेरे मसीहा
सोचती हूं
तुम्हें किस किस तरह पुकारूं



कितनी प्यारी थीं वो बचपन की बात पुरानी
जब दादी सुनाया करती हमको एक कहानी
बारिश के पानी में हम थे नाव चलाया करते
गुड्डे-गुड़िया की शादी में खूब मजे करते


तब माँ ने किया तकनीकी इस्तेमाल
फेसबुक पर स्टेटस ठेला और मंगवाया लिंकित ज्ञान
अब दोनों बैठे टकटकी लगाए 
टिपण्णी ताकते,कि कोई कविता-
कविता में  हास्य लेकर आए 
तभी मिला ये अद्भुत ज्ञान कि


बात पते  की....डॉ. सुशील जोशी
चेहरा चेहरे को 
देखता तो है
चेहरे में चेहरा 
दिखाई दे जाता है
चेहरे को चेहरा 
नजर नहीं आता है
चेहरा अपना 
चेहरा देख कर ही
मुस्कुराता है 
खुश हो जाता है

दें इज़ाज़त यशोदा को..







6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संकलन है।👌👌 मेरी रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार आपका🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. यात्रा शुभ हो । सुन्दर सोमवारीय अंक। आभार 'उलूक' का उसके चेहरे को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात...
    सुंदर संकलन...
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर संकलन ,मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार|

    जवाब देंहटाएं

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