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मंगलवार, 3 जनवरी 2017

536....आओ, नूतन वर्ष मनाएं ...आओ, नूतन वर्ष मनाएं ...

जय मां हाटेशवरी...

आज 3 जनवरी है...
नया वर्ष भी अब पुराना हो चला है...
...सोचा था कुछ नया होगा...
...इस नये साल में...
कहाँ तितलियाँ हैं, हुए गुम परिंदे
फिज़ाओं में किसने ज़हर घोल दी है
उधर कोई बस्ती जलायी गई है
धुँआ उठ रहा है, ख़बर सनसनी है
चला छोड़ हमको ये बूढ़ा दिसम्बर
किसी अजनबी सा खड़ा जनवरी है
अब पेश है...पिछले कल की रचनाएं...


आओ, नूतन वर्ष मनाएं ...
अपने तो सदा अपने हैं
गैरों को भी मीत बनाएं
आओ, नूतन वर्ष मनाएं  
नए-नए रंग हों नई उमंगें
नयनों में उल्लास जगाएं
आओ, नूतन वर्ष मनाएं
कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के चर्चित ‘देशभक्ति के गीत’-
चलायें डट कर गोली, खून से खेलें होली।
पीछे कदम न होगा जब तक सांस हमारी
दे दें जान वतन की खातिर भारत भू है प्यारी
अपना नारा हिन्द हमारा सुनें सभी श्रीमान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
एक-एक कतरा खूं का है बारूदी गोला
अरि के निशां मिटा देंगे हम पहन बसंती चोला
अति बलशाली वीरमयी है अपना हिन्दुस्तान
चलायें डटकर गोली, खून से खेलें होली।
नववर्ष का दिनमान
खिड़कियों से झाँकती, नव
भोर की पहली किरण है
और अलसाये नयन में
स्वप्न में चंचल हिरण है।
गंध पत्रों से मिलाने
दिन, नया जजमान आया।
सोचता हूँ...................-
तुम्हें भर दूँ ;
अपने मन की भावों के संग
फिर मैं हो जाऊँगा
पूर्ण
विजय
गत्यावरोध-
दीपक रीता हो चला है
 पर रात अभी बहुत बाक़ी है
महक हरश्रंगार की बता रही है
श्वेत चादर बिछाना बाक़ी है |
धन्यवाद।














5 टिप्‍पणियां:

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