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सोमवार, 2 जनवरी 2017

535.....थोड़े समय में देख भी ले बेवकूफ कौन क्या से क्या हो जा रहा है

सादर अभिवादन
नूतनवर्षाभिनन्दन
नव वर्ष शुभ हो
सहन किया वर्ष सोलह को
इसे भी कर लेंगे
सहनशील होते हैं...हम भारतीय..
काफी से अधिक....सहते रहते हैं...

आज की चुनिन्दा रचनाओं के अंश....

तन-मन में रहे सदा, माटी की सौंधी गंध
कर्मों में गूंजे सदा, भारतीयता के छंद
जन-जन से हो उल्लास, प्रेम के अनुबंध
नववर्ष में महक उठे, घर-घर ये मकरंद

बेईमानी से उसे कोख में पहचाना गया 
फिर किसी जख़्म की मानिंद कुरेदा भी गया 
अनगढ़े हाथों को, पैरों को कुचल काटा गया 
नैनों को, होंठो को, गालों को नोंचा भी गया 

हम काले रंग को कुरुपता का प्रतीक मानते है। इसकी असली वजह 
अलग-अलग रंगों से जुड़ी हमारी भ्रांतियां है। इसी सोच की बदौलत 
“धूप में निकला न करो रुप की रानी...”, “गोरी है कलाइयां...” जैसे गानों की भरमार हैं और “मोहे श्याम रंग दई दे...” 
जैसी कविताएं इक्का-दुक्का ही नजर आती है।

ये जो तेरे दिल में उनकी मोहब्बत है
ये तेरे मेहबूब की इक अमानत  है 
जिसकी हर एक सांस है तेरे खातिर 
ये भी खुदा की इक बड़ी इबादात है 


आज का शीर्षक..
उसकी अपनी खुद 
की बनाई हुई सब 
नजर आती हैं 
किसी ने कभी उसे 
क्यों नहीं टोका कि 
इतने सारे अवतार 
क्यों अपने वो बनाये
जा रहा है 
हर दूसरे को छोड़ 
तीसरा अपने आप को 
उसका ही आदमी 
एक बता रहा है 

आज्ञा दें यशोदा को
सादर





  




6 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लिंक्स चयन
    सस्नेहाशीष शुभ दिवस छोटी बहना

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  2. सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी। आभार 'उलूक' के तीन वर्ष पुराने सूत्र 'थोड़े समय में देख भी ले बेवकूफ कौन क्या से क्या हो जा रहा है' को शीर्षक देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा लिंक्स... मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार ।

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