---

रविवार, 5 जून 2016

324....कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य

नमस्कार
     सुप्रभात
आज की प्रस्तुति कुछ लम्बी हो गई कारण कुछ लिंक मे ने लि और कुछ प्रस्तुति यशोदा दीदी ने ।
आप आनंद लिजिए आज की हलचलो का ।
 और यह रही वाटचैप से प्रस्तुति

'संबंध' और 'पानी' एक समान होते हैं,

ना कोई रंग, ना कोई रूप, ना कोई खुशबू, और ना ही कोई स्वाद,

पर, फिर भी, जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।।

'सम्बन्ध और पानी' दोनों बचाएं, अपने आने वाले कल के लिए
🙏🏻🏻 आईए अब चलते है आज की प्रस्तुति की ओर....


                      मधुर  गुंजन पर .......
आनत लतिका गुच्छ से, छनकर आती घूप
ज्यों पातें हैं डोलतीं, छाँह बदलती रूप 40
खग मानस अरु पौध को, खुशियाँ बाँटे नित्य
कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य
दुग्ध दन्त की ओट से, आई है मुस्कान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान


एक मान्यता के अनुसार वटसावित्री व्रत के दिन महिलाएं शिव-पार्वती जी से प्रार्थना करती है कि “हे प्रभु, सात जन्मों तक हमें यहीं पति मिलें!” लेकिन अपने पति की खुशी को सर्वोपरी मानने वाली हम महिलाएं इस बात कि ओर ध्यान क्यों नहीं देती कि हमारे पति महोदय क्या चाहते है? पति महोदय की खुशी किस बात में है? ईश्वर से सात जन्मों तक वहीं पति मांग कर, क्या हम महिलाएं उन पर जुर्म नहीं करती? 


  एक आठ साल का लड़का गर्मी की छुट्टियों में अपने दादा जी के पास गाँव घूमने आया। एक दिन वो बड़ा खुश था, उछलते-कूदते वो दादाजी के पास पहुंचा और बड़े गर्व से बोला, ” जब मैं बड़ा होऊंगा तब मैं बहुत सफल आसमी बनूँगा। क्या आप मुझे सफल होने के कुछ टिप्स दे सकते हैं?”

मिजाज  ए इश्क़  को ये  चाँद जब दीदार  करता है ।
निगाहे   हुस्न   पर  परदा  कोई  सौ बार  करता है ।।



दुपट्टा  यूं  सरक  जाना  नही   था  इत्तफाकन यह ।

खबर कुछ तो मुकम्मल थी वो हमसे प्यार करता है।।



समुद्र में एक बारगी 
वो उतरी 
तो उबर ही नहीं पाई समुद्र से।                                                        
(2)
किसी मछली को देखा है 
तट पर तड़पते हुए ?
मैं वो मछली हूँ
जिससे लहरें किनारा कर गई हैं।
(3)
समुद्र में इतना खारापन कहाँ से आया?
मैंने एक बार
एक मीठी नदी को
समुद्र में रोते देखा था।

और अब प्रस्तुत यशोदा दीदी द्वारा लि गई  प्रस्तुति




नक़ल करें
 या बुद्धि का विकास 
घनी दुविधा

आये अव्वल 
दुनिया के सामने 
रहे जाहिल 


सावन बरसा अब आँगन में, चलती मस्त बयार लिखें 
मिलजुल कर अब रहना सीखें प्यारी इक बौछार लिखें 

भीगा  मेरा  तन  मन सारा ,भीगी  मलमल  की चुनरी 
छाये काले बादल नभ पर , बिजुरी अब   उसपार लिखें 

शूर्पणखा एक स्त्री थी,
लक्ष्मण को ऐसा नहीं करना चाहिए था 
जैसे स्वर उभरे 
रावण श्रेष्ठ हुआ 
उसके जैसे भाई की माँग हुई 
बीच की सारी कथा का स्वरुप ही बदल गया !

आज्ञा दीजिए 
सादर

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चर्चा ।

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत सुन्दर सार्थक सूत्र ! मेरी प्रस्तुति 'नकलची यह पौध' को सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार विरम सिंह जी !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।