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शनिवार, 4 जून 2016

323 ..... तु मुझको दर्द भी देजा




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


सुहागिनों का पर्व ..... वट सावित्री .... आज है

सभी को अक्षय शुभकामनायें



यादों के झरोखे से , माटी की कहानी

ह्रदय में लगी आग को
                       ना सहते हुए भी,
                             सहोगे।
                              और
                         ठंडी मौत के,
                      करीब रहकर भी,
                      जिस तरह आज,
                       मुझे गढ़ रहे हो ,
                         उस दिन भी ,
                           किसी को
                         गढ़ते ही रहोगे


तो अच्छा होता


अगर होते तो अच्छा होता,
नहीं हो तो भी अच्छा ही है,
एक पतवार से भी नाव चलती है
दूसरी होती तो अच्छा होता


खला


हर फैसला मुताहिद* होगा ज़िंदगी में, ये उम्मीद ही बेमानी है
है सुबूत कोई, मुखौटे सारे तब भी यूं फसादात नहीं करते?

ज़िंदगी कमील* है इन खलाओं* के ही जानिब*
ख्वाहिश और तकमील* दोनों को, ज़ाहिर* एक साथ नहीं करते


तो क्या बात होती



हर कदम पर होशियार, ज्यादा तमीज़दार बदस्तूर होते चले गए ,
जो अंदर की चीख-ओ-पुकार सुनी होती, तो कुछ और बात होती !

ज़िन्दगी से कदम-दर-कदम, ले हौसला आगे बढ़े,
जो ज़िन्दगी भी साथ होती, तो कुछ और बात होती !



पक्षियों की आत्महत्या



इस गाँव में बड़े-बड़े बाँस के वृक्ष हैं जिनमें फँस कर बहुत से
पक्षी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. पहले तो गाँव वालों ने इन पक्षियों का
मंडराना डरावना लगता था और वो इनको भागने का प्रयास करते थे.
कुछ शोधकर्ताओं ने यह माना है कि इस गाँव के ऊँचे बाँस के
 वृक्ष और रोशनी की तरफ आना मुख्यतः पक्षियों का भटकना है



तु मुझको दर्द भी दे जा



तेरा जो हाथ छोड़ू मैं ,
पकड़ कर तुम बिठा लेना,
गर हूं  नाराज़ मैं तुमसे,
पलट कर तुम मना लेना,
रिश्ते की एहमियत फिर से,
मुझको फ़िर से तुम सिखा देना



कुछ ख्वाहिशों के दावेदार हम भी हैं




दोस्ती न सहि चलो अदावत हि सहि
आपकी खुशी में जलें बारबार हम भी है ।

बहुत बातें कि है बर्बादीयों कि आपने
हर सम्त टूटकर तार तार हम भी हैं




फिर मिलेंगे ..... तब तक  के लिए

आखरी सलाम



विभा रानी  श्रीवास्तव




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