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सोमवार, 21 दिसंबर 2015

157....इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन नहीं होगा

सादर अभिवादन स्वीकार करें
अभी सारा जग
आगत-विगत के
स्वागत और विदाई मे जुटा है
नया नहीं है यह
साल दर साल यही होता है

चलिए चलते हैं आज की प्रस्तुति की ओर...


क्यारी में खिलें फूल  
तो खेतों में फसल हो , 
सागर से जो निकले तो  
हो अमृत न गरल हो , 
चिड़ियों की चहक  
फूलों की खुश्बू को बचाएं |


आकर्षण तुझसा चुम्बक में भी न कहीं होगा ॥
सौन्दर्य तेरे आगे आसीन नहीं होगा ॥
आँखों को भाने वाले इतने रँग हैं तुझमें 
इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन नहीं होगा ॥


जब जरा मन उदास हुआ 
इक प्यार भरी 
थपकी सी लगा देती है 
माँ की याद !!


उलूक टाईम्स में
बिना डाक्टर को 
कुछ भी बताये 
कुछ भी दिखाये 
बिना दवाई खाये 
बने रहना पागल 
सीख लेने के बाद 
फिर कहाँ कुछ 
किसी के लिये बचता है 


मन का मंथन में
जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
जनतंत्र ही होगा,


किताबों की दुनिया में
नहीं चुनी मैंने वो ज़मीन जो वतन ठहरी 
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना 
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया 
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया 


और ये है आज की अंतिम कड़ी..

तुम्हारा देव में
पिछले दो घंटों से
ख़त लिखने की कोशिश में
कई कागज़ बेकार कर दिये।
लेकिन तब भी
चार पंक्तियाँ हाथ न लग सकीं।

आज्ञा दीजिए
फिर मिलेंगे
यशोदा
















7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभातं |बहुत ही सुन्दर लिंक्स |पांच लिंकों का आनन्द वाकई अभिभूत करने वाला है |सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लिंकों का संकलन किया है दीदी आपने...
    मुझे भी स्थान दिया आभार आप का...

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत सराहनीय प्रयास, हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार यशोदा जी 'उलूक' को अनुपस्थिति में भी चर्चा में दिखाया देखिये देखने के लिये दौड़ा चला आया ।

    जवाब देंहटाएं

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