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रविवार, 2 अगस्त 2015

मेरे देश की संसद मौन है-15 अंक...

जय मां हाटेशवरी...

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।
----धुमिल...

आज sunday की छुट्टी है....तो समय निकालकर पढ़ेंमेरे द्वारा चुनकर लाई गयी 5 रचनाएं...


तमाम आतताइयों को मारना धर्म है। गीता में वह सभी मारे गए जो अधर्म के साथ खड़े थे। समाज को चलाये रखने के लिए दंड का विधान ज़रूरी है। ये सदा से रहा आया है रहेगा।
वरना समजा एक मिनिट भी नहीं चल सकता


धर्म की रक्षा के लिए दहशदगर्दों को फांसी दी जा सकती है। जो इनकी फांसी का विरोध करते हैं वे अधर्म के साथ खड़े हैं।
फांसी देने वाले ने अपने कर्तव्य कर्म (धर्म )का  पालन ही  किया है।ईद पर जब कसाई बकरा हलाल करता   है (उसके कान में यही
कहता है भैया मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ। कटवाने वाला कोई और है।





तारों से सपने,..
जिन सपनों को
मैं जीती हूं,..
अपने चन्दा को प्यारे
तारों से सपने,..




विडंबना [लघु कथा ]
    देर रात को रीमा अपनी बहनों के साथ
एक कमरे में सुख दुःख बाँट रही थी तभी आशा ने उस कमरे के सामने से निकलते हुए उनकी बाते सुन ली जिसे सुनते ही उसकी आँखों से आंसू छलक आये



कैकेयी का श्रीराम के गुणों को बताकर उनके अभिषेक का समर्थन करना

श्रीराम गुणवान अति हैं, युवराज के योग्य अति वे
पिता की भांति करंगे पालन, भाइयों व भृत्यों का भी
उनके अभिषेक से आखिर, तू इतना क्यों है जलती
सौ वर्षों के बाद निश्चय ही, भरत को राज्य मिलेगा यह



गीत "जग के झंझावातों में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
क चमन में रहते-सहते, जटिल-कुटिल मतभेद हुए,
बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए,
खेल रहे हैं ग्राहक बन कर, दुष्ट-बणिक के हाथों में।
दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।


अब विदा चाहता हूं..
और अंत में...
पर आज जब
अफजल, कसाब
या मेमन  को
फांसी दी गयी
मेरी आत्मा आहत नहीं हुई
क्योंकि वो भी भारतीय है।


[मेरे द्वारा प्रस्तुत अगले अंक   के लिये रचनाएं kuldeepsingpinku@gmail.com पर आमंत्रित हैं...]
धन्यवाद...

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह...
    बहुत शानदार प्रस्तुति...

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. संसद को चलने ही नहीं दिया जा रहा है..अजीब से हालात हो रहे हैं आजकल..पठनीय सूत्रों का संकलन...बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं

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