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शनिवार, 1 अगस्त 2015

अगस्त सावन--अंक 14...




अगस्त ऋषि तो अगस्त वृक्ष जिसके फूलो का पकौड़ा मुझे बहुत पसंद है ...... शायद आपलोगों को भी होगा
तो अगस्त में सावन मनभावन तो मेरा जन्मदिन भी।छोटी बहना का प्यार और विश्वास कि मैं फिर आपलोगों के समक्ष उपस्थित हूँ
सुबह के यथायोग्य प्रणामाशीष के साथ
पहली अगस्त को सावन की पहली तिथि को अपनी पहली कोशिश के साथ
आपलोगों का पाने को साथ
क्या कोई साथ देता है ..... समय पर मुश्किल काम है

मेरी बहन की लेखनी


सावन महीने को धर्म शास्त्रों में श्रावण भी कहा गया है. श्रावण का अर्थ है सुनना. इसलिए यह भी कहा जाता है कि इस महीने में सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश सुनने से विशेष फल मिलता है. लेकिन धैर्य कहाँ कि सुनना हो सके


सखी की लेखनी


शिव को सावन ही क्यों प्रिय है ?
महादेव को श्रावण मास वर्ष का सबसे प्रिय महीना लगता है। क्योंकि श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार रहते है, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती एंव हमारी कृषि के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है


भाई की लेखनी


आम आदमी होने के नाते उसके ख़ास हक है. देश के हुक्मरान उस पर नज़रे-करम रखते हैं और उसी को ध्यान में रख कर देश चलाने की नीतियाँ बनाते हैं. उसे सब साथ लेकर चलना चाहते हैं. कोई अपना हाथ पकडाता है तो कोई खुद ही उस जैसा होने का दावा करता है. नारों-पोस्टरों में सिर्फ उसी के कल्याण की बात होती है और उनपर जो चेहरा आम-आदमी बता कर चिपका होता है, हू-ब-हू उसी का होता है

भाई की लेखनी


 गुमसुम बैठी ही थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई।  अब कौन आया ! देखा, बरसों पुरानी दोस्त "कीर्ति" खड़ी थी, हर पहली बारिश,  सावन की तरह झूम के  दरवाज़े पर आ जाती थी, घर के कड़े पहरे और काम काज सबके बीच से गोटियां जमाती ऐसे उड़ा ले जाती कि कोई चूँ  भी न करे , गांधी हॉल के झूलों, सराफे की चाट, और 'रीगल' की एक मूवी के बीच , हर पहली बारिश का पहला दिन यादगार बना लेते थे हम दोनों और कम्बख़्त गाजर मूली की तरह झूठ बोल, मुझे वापिस दादी अम्मी के पास जमा भी करा जाती थी।


ब्लॉग मित्र लेखनी


पाँच की संख्या अनमोल होती है
पाँच बेल के पत्ते पर
राम नाम
ॐ नमः शिवाय
और बोल बम
बस महादेव  खुश
और जग भी निहाल

फिर मिलेंगे तब तक के लिए आखरी सलाम

विभा रानी श्रीवास्तव


9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    आभार
    नहींं कहती मैं
    बस यही कहूँगी
    तू मुझ में पहले भी थी,
    तू मुझ में अब भी है...
    पहले मेरे लफ़्जों में थी,
    अब मेरी खामोशियों में है..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय आंटी बहुत प्रसन्ता हो रही है आप को यहां देखकर और आप की चर्चा पढ़कर...
    इसी प्रकार हलचल होती रहे आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर । आज आ0 विभा जी को यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई । बढ़ते रहे कारवाँ इसी तरह होती रहे पँचों की पंचाहट पाँच के कमाल रोज ही यहाँ :)

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर सूत्र संकलन, अच्छा लगा यहाँ आकर. मेरी रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद. स्नेहाशीष बनाएँ रखें.

    जवाब देंहटाएं

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