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गुरुवार, 5 जून 2025

4410...परवाह की पूंजी लिए जहां पहुंचता है एक केवट-हृदय वही तो तट है विशुद्ध प्रेम का...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

कविता | विशुद्ध प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

निज को छोड़ कर पीछे

समर्पण और

परवाह की पूंजी लिए

जहां पहुंचता है

एक केवट-हृदय

वही तो तट है

विशुद्ध प्रेम का।

*****

अपना सा दर्द

एक खलिश सी भीतर कोई अपना बीमार है

दुआ के सिवा दे न सकें कुछ ये हाथ लाचार हैं

लो एक कार की रफ्तार से पत्तों में हरकत आयी

हिल-हिल के जैसे भेज रहे उसे दवाई

*****

वापसी--

एहसास
फिर भी बना रहता है अरण्य फूल
की ख़ुश्बू की तरह अंदर तक,
न जाने क्या खिंचाव है जो
हर हाल में लौटा लाता
है हमें अपनी धुरी
में,

*****

ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक

भक्ति-शक्ति की रीत अनुपम है

अध्यात्म-धर्म की सीख परम है

उष्ण-तरल का अगाध मिलन है

चिर-मंगल का साध सघन है|

*****

रहस्यमयी प्रतिमा - 38

तुम एक अच्छे इंसान के बिगड़ैल बेटे हो। तुममें सुधार की उम्मीद अभी बाकी है। इसीलिए तुमको जिन्दा तो छोड़ रहा हूं मैं!” - आकाश से थोड़ा नीचे आते हुए बोला कालयोद्धा- लेकिन, तुझ जैसे अपराधी को बिलकुल स्वतंत्र तो किया नहीं जा सकता। तुम्हारा मुकाम जेल की सलाखों के पीछे ही होना चाहिए।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचनाएं। सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  2. सुप्रभात ! पर्यावरण दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ, आइये वृक्ष लगायें, प्लास्टिक मुक्त देश बनायें, सराहनीय रचनाओं से सजे अंक में मन पाये विश्राम जहाँ को शामिल करने हेतु आभार !

    जवाब देंहटाएं

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