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मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

4052....टेढी उंगली और घी..

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आप जबतक दूसरों के लिए तन,मन या धन से उपलब्ध हैं, अपने सुखों से समझौता कर, दूसरों के चेहरे की मुस्कान देखने के लिए आप जबतक स्वयं को अनदेखा करेंगे,दूसरों के आगे सर झुकाकर जी-हाँ,हाँ-जी,हाँ-जी करते हैं तबतक आप अच्छे है जिसदिन आप
 ने न कहना सीख लिया अपने लिए चंद पल जीने की कोशिश करने लगते है
लोग आपमें बुराइयाँ ढूँढना शुरू कर देते हैं और आप की की गयी सारी अच्छाई एक पल में गाएब हो जाती है।
हमें यही पढ़ाया,सिखाया और सुनाया जाता  है बचपन से ही कि जीना या जीवन उसी का सार्थक है
जो दूसरों के काम आ सके तो फिर स्वयं के लिए
जीना क्या निरर्थक है?

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आज की रचनाएँ


राजपथ के दोनों तरफ़ हैं विस्मित चेहरे,
आँखों में फिर कोई ख़्वाब भर रहा हूँ मैं,

न कोई जुलूस है, न ही विप्लवी शोरगुल,
जनारण्य के मध्य, एक खंडहर रहा हूँ मैं,

धुँधली साया मां की आवाज़ से बुलाए है,
घर लौट जाऊं, मुद्दतों दर ब दर रहा हूँ मैं,


चरणन की धूलि हम मांग भर लीन्ह,
खुद को तोरी अर्धभागीनी कर लीन्ह।
तो बिनु नाहीं हमारो कोऊ ठाम रे।
जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं।





यहीं   पर   चारों  धामों    का   दर्शन   होता  है ।
सप्त   कमल   सुसज्जित   सरोवर   भी
इस   पथ   पर   मिलता   है ,
जिसका   वर्णन   शब्दों   में   नहीं   बँधता  है  ,
वहाँ   अनुभूति   की   सरिता   बहती   है ।
गंगा  जमुना  सरस्वती   का   संगम
मन   को   निर्मल   करता  
दर्पण   सम   अंतस्तल   में   उतरता   है ।



  मैं अपने घर से घूमने के लिए निकला तो देखा कि एक लकड़हारा लकड़ियां काट रहा है। मैंने कहा कि आपको लकड़ी काटने की जगह हातिमताई के यहां जाकर खा लेना चाहिए। तब उस लकड़हारे ने कहा कि मैं अपने परिश्रम का ही खाता हूं। मैं रोज मेहनत करता हूं और उसी कमाई को परिवार पर खर्च करता हूं। जो लोग हातिमताई के यहां भोजन की आस में बैठे रहते हैं, वह मेहनत करके भी खा सकते हैं।



वैसे इस घी वाली बात का अभिप्राय भले ही कुछ भी हो पर शाब्दिक अर्थ तो पूरी तरह भ्रामक है ! घी एक बहुत ही पवित्र और बहु-उपयोगी पदार्थ है, उसे पूजा-पाठ तथा अन्य धार्मिक कार्यों के अलावा कभी-कभी दवा के रूप में भी काम में लाया जाता है, ऐसी वस्तु को उंगली से निकालना उसे दुषित करना है, इस बात का उन महानुभाव को ध्यान रखना चाहिए था ! वैसे उनका तेल वगैरह के बारे में क्या विचार था, इसका पता नहीं चल पाया है ! यदि किसी मित्र, सखा, साथी को इस बारे में कुछ भी ज्ञात हो, तो साझा जरूर करें ! धन्यवाद !
★★★★


आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जो दूसरों के काम आ सके पर
    स्वयं के लिए
    जीना क्या हे?
    सुंदक अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर अंक ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं की खबर देता शानदार अंक !

    जवाब देंहटाएं
  4. अनुपम रचनाएं, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार नमन सह ।

    जवाब देंहटाएं
  5. श्वेता जी,
    सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपके ब्लाग की सामग्री अच्छी लगी। सादर,

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

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