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गुरुवार, 27 मार्च 2025

4440...हम जल्दी अइबे तेरी नगरी...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

विप्र सुदामा - 69

हर कोई  बचन था माँग रहा,

फिर कब अइहौ  मोरी नगरी।

प्रेमाश्रु  टपक रहे अंखियन से,

हम  जल्दी  अइबे  तेरी नगरी।।

***** 

बेमुरव्वत है ज़िंदगी

ख़्वाब इश्क़ के जब भी देखना चाहो

दिल को धप्पा, दुनिया कम-ज़र्फ़ देती है।

सीले मन के आहातों में अंधेरा कर;

बे-वफ़ाई मोहब्बत का रंग ज़र्द देती है।

*****

नव प्रकाश से आलोकित हो जगती सारी । नव संवत्सर।

गढ़े संवारे नवराष्ट्र

आप सुखमय हो

यह समाज सुखमय हो

यही शुभेच्छा हमारी

नव प्रकाश से आलोकित

हो जगती सारी

*****

मनोकामिनी सा मन

हवाओं में एक खुनक थी

और तुमने मेरी देह पर

ख़ामोशी की चादर लपेट थी

तुम्हारी आँखों से सारा अनकहा

मनोकामिनी की ख़ुशबू सा झर उठा था

*****

पर्दा

मुझमें क्या है मेरे जैसा

और क्या लोगों को दिखता है

झूठ के परदे पर आखिर

एक अदाकार ही टिकता है

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


5 टिप्‍पणियां:

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