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शनिवार, 9 नवंबर 2024

4302 ...ईश्वर के घर में अन्याय का वास नहीं

 सादर नमस्कार


छठ पूजा सम्पन्न
कोई नाच रहा तो
किसी ने ओढ़ी है
उदासी ..
ईश्वर के घर में
अन्याय का वास नहीं
न्याय होगा पर
थोड़ा धीर धरो

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एक बीज से वृक्ष पनपता
एक अणु में नृलोक समाया,
एक कोशिका से जन्मा नर
तन में सारा ज्ञान छिपाया !

सत्य देखना जिस दिन सीखा
शृंग हिमालय के उठ आये,
मन के पार उगे हैं उपवन
कुंज गली में श्याम समाये !



पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा,
वक़्त की धूल ने इसे ऐसा बना दिया।
तुझे मै पागल सा दिखता हूँ
वो तेरी समझ और नज़र है
मैं खुद को जोड़ और तोड़ रहा





मुझे अच्छी लगती हैं
हँसती हुई लड़कियाँ,
पर इन दिनों वे
सहमी-सहमी सी हैं,
बाहर पाँव रखने से
कतराती हैं लड़कियाँ,




हर कोई जूझ रहा ज़िन्दगी में
टेढ़े मुह बात भी करे तुमसे
सहानुभूति रखें सभी से !






प्रेम राधा ने किया, कृष्ण ने, मीरा ने किया
हीर ने तो मजनू ने भी प्रेम ही किया
पात्र बदलते रहे समय के साथ, प्रेम नहीं
वो तो  रह गया अंतरिक्ष में, पुनः आने के लिए  





धरती को फोड़ करके निकलते हैं सारे रंग
सरसों का पीला रंग भी धानी फसल में है

खुशबू के साथ सैकड़ों रंगों के फूल हैं
रिश्ता गज़ब का दोस्तों कीचड़ कमल में है


बस

4 टिप्‍पणियां:

  1. हर कोई जूझ रहा ज़िन्दगी में
    टेढ़े मुह बात भी करे तुमसे
    सहानुभूति रखें सभी से !
    सुप्रीम
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर संकलन। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ! पठनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर हलचल … आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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