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शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

4301 ....जो कभी खिलते थे हंसी में, अब गुम हैं मुस्कानें

 सादर नमस्कार


पर्वकाल समाप्त प्राय है
इक्का-दुक्का बाकी है
वह भी निपट ही जाएगा

आज की पसंंदीदा रचनाएं



जो कभी खिलते थे हंसी में, अब गुम हैं मुस्कानें,
नशे ने छीन ली उनसे, सारी पहचानें।
माँ-बाप की मेहनत, अब बेकार हो गई,
हर उम्मीद, हर चाहत, अंधेरे में खो गई।




तैयार होती है -
कुदरत की अद्भुत,अकल्पनीय
आर्ट-गैलरी ..,
जिसमें समाहित है
अपने आप में विविधताओं से परिपूर्ण
अनेकों लैण्डस्केप..,
प्रकृति में यह प्रक्रिया अनवरत
बिना रूके , बिना गतिरोध
चलती रहती है




दीपोत्सव  फिर आने का वादा कर समय-चक्र पर सवार हो विदा ले गया ! साल की सबसे घनघोर काली रात के भय से उबारने वाला यह त्यौहार सदा याद दिलाता रहता है, अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश की ! चिरकाल से चले आ रहे इस संग्राम में उसी आशा की लौ के स्थापन के लिए अपनी छोटी सी जिंदगी को दांव पर लगा, अपने महाबली शत्रु तमस से जूझती हैं, चिरागों के रूप में, सूर्यदेव की अनुपस्थिति में उनका प्रतिनिधित्व करने वाली रश्मियाँ ! दीपोत्सव के केंद्र में दीपक ही तो होता है !




मूँगफली के साथ मिलने वाली नमक की पुड़िया की भी अपनी ही अहमियत होती है। कुछ जगह मिर्च की चटनी भी मिलती है। छिलके में चटनी लगा के चाटने का आपना ही मज़ा है, इसको बयां कर पाना लगभग असंभव है।

और आख़िर में कितनी भी खा लो, लगता है कि और ले ली होती तो अच्छा होता।

मूँगफली खाते हुए अगर एक दाना हाथ से छूटकर गिर जाये तो ऐसा फील होता है, जैसे पुरखों की संपत्ति हाथ से निकल गयी है…. उस दाने को ढूंढे बिना दूसरी मूंगफली खाने में मन नही लगता,या यह कहे जब तक ना मिल जाये, आंखे चारो तरफ उसे ही दूंढ रही होती है।






जब बो दिया है बीज प्रेम का  
अंतर में उसने ही
तो उसके खिलने में देरी कैसी  ?
जब भीतर उतर आये हैं
शांति के कैलाश
तो गंगा के अवतरण पर
भीगने से संकोच कैसा  ?





टूटे पात, लगे पतझड़ से ये जज्बात,
बहते नैन, इस निर्झर में पलते कब चैन,
निर्झर सी ये जज्बातें, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!




न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखड़ती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है


बस

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचनाओ का समाकलन, सुंदर अंक 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर सूत्रों को समेटे बेहतरीन संकलन । मेरे सृजन को अंक में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचनाओं का संकलन। मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार 💐💐🙏

    ब्लॉग के सभी साथियों को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. "न उखडती हुई सांसों को देखो कि अभी उन्हें कितना चलना है"
    कविता जी की मार्मिक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी ब्लॉग पोस्ट को सम्मिलित करने हेतु आभार,,,

    जवाब देंहटाएं

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