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मंगलवार, 5 नवंबर 2024

4298...कहने भर का घर-संसार है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कविता रावत जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

मंगलवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। 

आइए पढ़ते हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

घर को तेरा इंतजार है, सारा घर बीमार है।

झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां

कहने भर का घर-संसार है

घर को तेरा इंतजार है

घर सारा बीमार है

*****

दीवाली, नए रूप में ...

ना कार्ड ना ई मेल ना एस एम एस करके

बस वॉट्सएप ग्रुप्स में आती हैं भर भर के।

ग्रुप में पांच दस हों या मेंबर हों सौ पचास कहीं,

बधाई देते हैं सब, पर लेता कोई एक भी नहीं।

जब कोई नहीं इसको लेता है,

फिर जाने क्यों कौन किसको देता है।

 *****

अंतिम थपकी

एकाकीपन नहीं है न किसी के पास

कोई कैसे पढ़ें और सुनें?

तुम उन्हें पढ़ना और सुनना

उसे पढ़ना-सुनना शांति को स्पर्श करने जैसा है।

सुना है इलेक्शन बस एक खेल है !!

पहले ये नहीं तो वो पार्टी जीतेगी बस

सब कुछ तो अच्छा ही चल रहा है

एक साल इसे तो दूजे में उसका राज

माहौल तो वोही है जैसे थे वैसे हैं

सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है !

*****

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पावन पर्व है। हम भारतवासियों का दृढ विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है, झूठ का नाश होता है ! दीपावली भी यही चरितार्थ करती हैअसतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय ! अंधकार कितना भी गहरा क्यों ना हो, ये छोटे-छोटे दीपक रौशनी के सिपाही बन, अपनी सीमित शक्तियों के बावजूद, एक मायाजाल रचविभिन्न रूप धर, अंधकार को मात देने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं। ताकि समस्त जगत को खुशी और आनंद मिल सके। 

*****

फिर मिलेंगे।

 रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:

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