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सोमवार, 23 सितंबर 2024

4255 ...या मूर्तिकार मूर्ति की मुस्कुराहट गढ़ना भूल गया

 नमस्कार


देखिए कुछ रचनाएं

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सुलगते ख्वाब
कुनमुनाती धूप में लहराता आँचल
तल की गहराइयों में हिलोरें लेती प्रेम की सरगम
सतरंगी मौसम के साथ साँसों में घुलती मोंगरे की गंध






ये सब कहकर जगदीश प्रसाद जी चुप हो गए, और आराम कुर्सी पर बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं !
तीनों बेटे-बहुओं को समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी की इन बातों पर वे अपनी क्या प्रतिक्रिया प्रकट करें?
और सामने पड़ी हलवे की प्लेट को देखकर अलका बहू सोच रही थी कि- एक प्लेट हलवे की कितनी बड़ी कीमत सबको चुकानी पड़ गयी है...






मैडम रीटा कर गयीं,
हिन्दी को कंगाल।
ऋता शब्द का अर्थ तो,
है जी का जंजाल।




“मम्मी इसीलिये मैं भी इस बार घर नहीं आऊंगा ! हम तीन चार दोस्त यही रहेंगे फरहान के साथ मुम्बई में ताकि वह अकेला न हो जाये !”
“नहीं बेटा ! तुम घर ज़रूर आओगे और अकेले नहीं आओगे फरहान को साथ लेकर आओगे ! उससे कहना यह घर भी तुम्हारा ही है और यह परिवार भी !” सविता की आवाज़ में दृढ़ता भी थी और अकथनीय प्यार भी !





एक चौकी पर रामदेवरा जी विराजित थे दर्शन करके अंदर के साफ सुथरे कमरे में बिछात बिछाई गई और भोजन परोसा। सब्जी पूरी सूजी का हलवा दाल चावल। सादा लेकिन स्वादिष्ट भोजन। हलवा खाने के पहले लगा कि खूब मीठा होगा लेकिन बिलकुल नापतौल से डली शक्कर न मीठा न फीका। पता चला कि आज पूरा गांव इस आयोजन में शामिल है। आसपास रहने वाले भी आज गाँव आ गये हैं। भोजन भी सभी ने मिलकर बनाया है।





तीन बीघा का छोटा-सा गलियारा एक बड़े भाई के बहुत बड़े दिल की दास्ताँ है। हिंदुस्तान का बांग्ला देश को दिया गया ज़मीन का यह छोटा -सा टुकड़ा बांग्ला देश के भारतीय भूभाग से परिवृत अंगरपोटा-दहग्राम नामक पश्चिमी इनक्लेव (भू-टापू) को पूरब के पनबारी मौजा से जोड़ता है। १६ मई १९७४ को इंदिरा मुजीब समझौते की कोख से निकली इस भेंट को मोदी सरकार द्वारा  जून २०१५ में १०० वाँ संविधान संशोधन पारित कर क़ानूनी जामा पहना दिया गया। उत्तर-दक्षिण दिशा में लेटी भारतीय सड़क जिस चौराहे पर इस गलियारे के गले मिलती है, वहाँ बांग्ला नागरिकों के लियी बांग्ला देश का क़ानून और हिन्दुस्तानियों के लिए हिंद का क़ानून लागू होता है। दोनों नागरिकों को एक दूसरे के पथ पर भटकने की मनाही है।





क्यों नहीं ज़ाहिर किया अपना प्रेम
अपने सपनों की उड़ान के साथ
क्यों नहीं मेरे भी सपने जोड़े
मुकाम पर क्या तुम्हें
अकेले ही जाना था ?
मिट्टी सान ली तुमने प्रेम की
बस मूर्ति बनाना भूल गए
कोई और गढ़ ले, गया
तुम्हारी मूर्ति को
पर नया मूर्तिकार मूर्ति की
मुस्कुराहट गढ़ना भूल गया


आज बस
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

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