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बुधवार, 18 सितंबर 2024

4250..छोटी खिड़की..

 ।।प्रातःवंदन।।

चाहे जो भी फसल उगा ले,
तू जलधार बहाता चल।
जिसका भी घर चमक उठे,
तू मुक्त प्रकाश लुटाता चल।

रोक नहीं अपने अन्तर का
वेग किसी आशंका से,
मन में उठें भाव जो, उनको
गीत बना कर गाता चल..!!
दिनकर
विशाल मनोभाव लिए पंक्तिया और हमारी छोटी सी बात में आज शामिल है..

चटपटी जी और मैं

सुबह-सुबह मोबाइल पर यूँ ही उँगली फिरा रहा था कि स्क्रीन पर सहसा एक छोटी खिड़की खुल गई।‘मैं आपकी सहायिका हूँ।कहिए आपके लिए क्या कर सकती हूँ ?’ यह बात उसने बोली नहीं बल्कि मुझे लिखकर बताई।

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अन्याय कब नहीं था ?

 अन्याय कब नहीं था ?

मुंह पर ताले कब नहीं थे ?

हादसों का रुप कब नहीं बदला गया ?!!!

तब तो किसी ने इतना ज्ञान नहीं दिखाया !

और आज ..

✨️

सियाह हाशिए' का समर्पण पृष्ठ

             उस आदमी के नाम जिसने 

                अपनी खूंरेज़ियों

            का जिक्र करते हुए कहा : 

            जब मैंने एक बुढ़िया को मारा 

             तो मुझे ऐसा लगा--

            'मुझसे क़त्ल हो गया...

✨️

शिवा बाबा

बहुत दिनों से विचार चल रहा था शिवा बाबा जाना है लेकिन दो घंटे का रास्ता गर्मी उमस के चलते मैं ही जाना टालती रही। शुक्रवार फिर मन बना लेकिन शनिवार लोक अदालत है इसलिए नहीं जा पाये फिर तय हुआ रविवार को चलेंगे।

आज सुबह निकलना तो जल्दी था लेकिन कुछ रविवार का आलस कुछ काम निपटा लेने का लालच दस साढ़े दस बज ही गये। अच्छा यह था कि आज धूप नहीं थी। खरगोन से 

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

3 टिप्‍पणियां:

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