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शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

4245...राह बनायी जो तुमने

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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साहित्य में समाज की विविधता, जीवन- दृष्टि और लोककलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन दृष्टिकोण प्रदान करता है जिससे सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है। रचनाएँ समाज की भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं। हिन्दी लिखने पढ़ने वालों के हिन्दी महज एक दिवस नहीं
होती बल्कि आत्मा को उदात्त करने में, मनुष्य के गुणों का परिष्कार करने में, उसे आनंद की अवस्था में पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साहित्य अतीत से जीवन मूल्यों को लेकर आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने में सेतु की तरह है।
मुझे लगता है 
वर्तमान समय में हिंदी अशुद्धियों और संवाद में बढ़ते 'भदेसपन' से जूझ रही है।
साधारण वाक्यों में मात्राओं की त्रुटियाँ ,लिंग और वचन की गलतियों को सहज रूप से स्वीकार किया जाना हिंदी के भविष्य के लिए घातक है। हम सभी की जिम्मेदारी है गलतियों को इंगित करें।
दूसरी बड़ी समस्या है 'भदेसपन' यानि भाषा का
 बिगड़ता स्वरूप । हिंदी फिल्म के संवाद हो, गीत हो या किसी हिंदी राष्ट्रीय समाचार चैनल का खुला बहस मंच सभी जगह धड़ल्ले से अपशब्दों के प्रयोग ने हिंदी भाषा का चेहरा बिगाड़कर रख दिया है।

आज की रचनाएँ-






व्यथा--वेदना विष पीकर भी
सदा सुधा बरसाया
नारी की गरिमा--ममता को
शुचि, ,साकार बनाया ।
राह बनाई जो तुमने
शुभ-संकल्पों से सज्जित है
आज तुम्हारे लिये...।


युद्धों के पीछे पागल है 
दीवाना मानव क्या चाहे, 
शिशुओं की मुस्कानें छीनीं 
 रहीं अनसुनी माँ की आहें !
कहीं सुरक्षित नहीं नारियाँ 
वहशी हुआ समाज आज है, 
अनसूया-गार्गी  की धरती 
भयावहता  का क्यों राज है !

 


तुमने कहा-
मेरा इंतज़ार कब तक?
बर्फ के पिघलने तक
ठंड से ठिठुरते हुए बोली मैं!

तुमने आंच बढ़ाई सूरज की
ग्लेशियर गलने लगे
तमाम पेंगविंस के पैरों में पड़ गए छाले
कुछ छाले मेरी जीभ पर भी हैं
जो बढ़ रहे हैं सूरज की आंच से...


वे वृक्ष नहीं हैं 
उन्हें सदियों से वृक्ष के चित्र दिखाकर 
उनसे 
फल-फूल और लकड़ियाँ प्राप्त की जाती रही हैं 
नाइट्रोजन की अपेक्षा ऑक्सीजन के कीड़े 
उन्हें अधिक तेजी से निगलते रहे हैं 
फिर भी वे नींद से जाग नहीं पाई 
वे नहीं जान पाई कि वे स्त्रियाँ हैं 
उन्होंने स्वयं के लिए अंधेरा चुना 


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और
    सारगर्भित रचनाएं
    आभार
    वंदन, अभिनंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सारगर्भित और बहुत कुछ विचार करने को प्रेरित करती भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का चयन आज के अंक को विशेष बना रहा है, बधाई व आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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