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रविवार, 1 सितंबर 2024

4233 ..भोर की प्रतीक्षा में

 नमस्कार

आ गया
नवा महीना
इंतेजार था
गिनती बढ़ती है
नौ दस ग्यारह और फिर
बारह
फिर
हैप्पी न्यू इयर

अब देखिए रचनाएँ ...


वक़्त का तक़ाज़ा है
अपनी मुट्ठी बाँध के रखना
खोल कर मुट्ठी
क्यों अपना सामर्थ्य कमजोर करना
अच्छा है खुद पर यक़ीन ..,
जब तक जीयें अपने पर यक़ीन करते जाएँ




विरह की अग्नि में तपे उर को
भोर की प्रतीक्षा में
यह अहसास होने लगा है
एक दिन ऐसी ही होगी
अंतर भोर !




परमात्मा ने कहा इसके पीछे एक गहन कारण है। वैश्या शराब पीती थी, भोग में रहती थी, पर जब तुम मंदिर में बैठकर भजन गाते थे, धूप दीप जलाते थे, घंटियां बजाते थे, तब वह सोचती थी कब मेरे जीवन में यह सौभाग्य होगा? मैं मंदिर में बैठकर भजन कर पाऊंगी कि नहीं। वह ज़ार जार रोती थी और तुम्हारे धूप दीप की सुगंध जब उसके घर में पहुंचती थी, तो वह अपना अहोभाग्य समझती थी। घंटियों की आवाज सुनकर मस्त हो जाती थी।




ओझा ने कहना शुरू किया, घूमते-घूमते मैं गोरों के देश इंग्लैण्ड जा पहुंचा। वहीँ एक दिन देखा कि लोग एक मैदान की ओर जा रहे हैं।  मैं भी उत्सुकतावश वहाँ चला गया, देखा कि मैदान के चारों ओर सैंकड़ों लोग गोल घेरा बना कर बैठे हुए थे। आकाश बिल्कुल साफ था, बादलों का नामोनिशान नहीं था। नीचे सुंदर हरी घास बिछी हुई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इतने लोग किसका इंतजार कर रहे हैं। तभी कहीं से एक आदमी ने आकर मैदान के बीचो-बीच तीन लकड़ियां गाड़ दीं।  फिर उसने कुछ कदम नाप कर उन लकड़ियों के सामने तीन और लकड़ियां गाड़ दीं। इसके तुरंत बाद एक तरफ से दो आदमी जिन्होंने टोपी और सफ़ेद कोट पहन रखे थे, आये और झुक कर उन गड़ी हुई लकड़ियों पर दो-दो छोटे टुकड़े रख दिये। इसके बाद जिधर से कोट वाले आये




घोर घटा श्रावणी स्याह रात्रि आगमनम
जगदीशश्वरम विष्णुबिपुलम् सुंदरम्
मोर मुकुट मुरलीधर चंचल मृदुचपलम्
सहस्र वन्दन हे सारथी यशोदा-नन्द नन्दनम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।




उसने सवाल किया
कौन हैं सच्चे प्रेमी ?
तो! मैंने गिना दिए!
पति-पत्नी
माँ-बेटी
पिता-पुत्र इत्यादि इत्यादि।




शय्या पे मृत पड़े
इंसानों को
कंधा देने के लिए
लोग कतारबद्ध खड़े मिल जाते हैं।
लेकिन
सड़क पे कुचले गये
जानवरों को
लावारिस की तरह छोड़कर
गाड़ियों के चक्के से बार-बार रौंदते हुए
उनके खाक हो जाने तक
हम इस तरह
उनका अंतिम संस्कार क्यूँ करते हैं?


आज बस
सादर वंदन

7 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब सराहनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक । “पाँच लिंकों का आनन्द” के इस अंक मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका सादर आभार ।

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  2. सुप्रभात ! सितंबर के प्रथम दिन की शुभकामनाएँ, उत्सवों का मौसम आ गया है, आज के अंक में पढ़ने के लिए बहुत कुछ है, बधाई इस विशेष प्रस्तुति के लिए !

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  3. अप्रीतम सृजनों का संकलन, सुंदर, सच्चे प्रेमियों को संकलन में जगह देने हेतु आभार 🙏🙏

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  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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  5. नवें महीने के प्रथम दिन की सभी को शुभकामनाएं।
    सुंदर रचनाओं का संकलन। मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

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