नमस्कार
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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शनिवार, 31 अगस्त 2024
4233 ...सुगम है काशी जाना शिव को पाना
शुक्रवार, 30 अगस्त 2024
4232...सोचा न था....
कुछ शब्द लिखेंगे
कुछ नमन, विनम्र श्रद्धांजलि
लिखकर अपनी
औपचारिकता पूर्ण करेंगे
कुछ अपने रो-धो लेंगे
कुछ दिन
सोचता हूं
क्या कोई मेरे लिए उदास होगा
कोई मुझे, मेरे बाद
मुझे याद करेगा
गुरुवार, 29 अगस्त 2024
4231...तुम निकरे खौलत भये पानी...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
मीत हमारा था अति मेधावी,
अति प्रिय था संदीपनि गुरु का।
आज हम हैँ दोनों अलग अलग,
पर दोनों का नाता आश्रम का।।
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बुंदेली ग़ज़ल | रामधई | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जो तुम हमरो भलो चात हो
हमरे कांटा चुनो, रामधई!
हम समझे गुनगुनो, रामधई!
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जब क्लास ले
ली सब्जी वाली अम्मा ने! किस्सा-ए-रायपुर
तो बात हो रही थी
हमारे विस्थापन की ! हमारा ठिकाना बना था, न्यू शांति नगर !
तो एक बार ठंड के दिनों में ऐसे ही विभिन्न खाद्य पदार्थों की रायपुर में उपलब्धि
पर चर्चा में मकई का आटा भी आ फंसा ! उन दिनों किराने की सबसे नामी दूकान घनश्याम
प्रोविजन स्टोर हुआ करती थी, जो मोती बाग के पास चौराहे पर, मालवीय रोड़ से
फर्लांग भर दूर स्थित थी। बताया गया कि और कहीं मिले ना मिले वहाँ जरूर मिल
जाएगा!मैंने अपना स्कूटर उठाया और पहुँच गए घनश्याम किराना भंडार ! दस मिनट भी तो
नहीं लगते थे ! *****
बाढ़ को "मौसमी हत्यारा" कहा जाता है। क्योंकि इससे हजारों लोगो को
जिंदगियां प्रभावित होती है। कुछ तो बाढ़ की बिभीषिका के बलि चढ़ जाते हैं और कुछ
बाढ़ के गुजरने के बाद जिन्दा होते हुए भी मरे से भी बतर जीवन गुजारने को मजबूर
होते हैं। क्योंकि बाढ़ के बाद की तबाही का मंजर बहुत भयानक होता है जिसका असर महीनो चलता है।
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बुधवार, 28 अगस्त 2024
4230..लफ्ज़ नज़रबंद हैं..
।।प्रातःवंदन।।
" पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,
आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,
फाड़ देते हैं सफ्हे, जो नागावर गुजरे,
तहरीर के नुमाइंदे ऐसे, मौजूद यहाँ चंद हैं।"
सजीव सारथी
छोटी सी बात विशाल मनोभाव लिए तैयार कर इक पैगाम ... आज शामिल है..✍️
सुबह-सुबह मोबाइल पर यूँ ही उँगली फिरा रहा था कि स्क्रीन पर सहसा एक छोटी खिड़की खुल गई।‘मैं आपकी सहायिका हूँ।कहिए आपके लिए क्या कर सकती हूँ ?’ यह बात उसने बोली नहीं बल्कि मुझे लिखकर बताई।मैं मूलतः भावुक किस्म का व्यक्ति हूँ।व्यक्तिगत क्षणों में यह संदेश पाकर एकदम से भाव-विह्वल हो उठा।..
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प्यारे नीम के पेड़
मैं खुश हूँ कि
देख पा रही हूँ तुम्हें
फिर से हरा भरा .
बीत गया बुरे सपने जैसा
वह समय..
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लोचनों का नीर लेकर,
पीर की जागीर लेकर,
सुप्त सब सुधियाँ जगाने,
अन्तर के नन्दन वन में ।
मेघ घिर आये गगन में
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सोच रही हूं...
कृष्ण के हिस्से,
उनके जीवन में क्या नहीं था !
दहशत भरा अतीत,
वहां से निकलने का रास्ता,
माता पिता से दूर जाने का विकल्प,
घनघोर अंधेरा,
मूसलाधार बारिश,
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
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मंगलवार, 27 अगस्त 2024
4229...मन कहानियों का प्रेमी है
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥
अर्थात्
मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, अग्नि में उष्मा हूँ, समस्त प्राणियों में वायु रूप में प्राण हूँ और तपस्वियों में तपस्या भी मैं ही हूँ।
गीता में कृष्ण ने स्वयं कहा है कि
संसार के समस्त प्राणियों में उनका अंश है फिर
जीवन में कर्म ही प्रधान है,सर्वोपरि है।
श्री कृष्ण एक ऐसा चरित्र है जो बाल,युवा,वृद्ध,स्त्री पुरुष सभी के लिए आनंदकारक हैं।
कृष्ण का अवतरण अंतःकरण के ज्ञान चक्षुओं को खोलकर प्रकाश फैलाने के लिए हुआ है।
भगवत गीता में निहित उपदेश ज्ञान,भक्ति,अध्यात्म,सामाजिक,वैज्ञानिक,राजनीति और दर्शन का निचोड़ है जो जीवन में निराशा और नकारात्मकता को दूर कर सद्कर्म और सकारात्मकता की ज्योति जगाता है।
*बिना फल की इच्छा किये कर्म किये जा।
*मानव तन एक वस्त्र मात्र है आत्मा अजर-अमर है।
*क्रोध सही गलत सब भुलाकर बस भ्रम पैदा करता है। हमें क्रोध से बचना चाहिए।
*जीवन में किसी भी प्रकार की अति से बचना चाहिए।
*स्वार्थ शीशे में पड़ी धूल की तरह जिसमें व्यक्ति अपना प्रतिबिंब नहीं देख पाता।
*आज या कल की चिंता किये बिना परमात्मा पर को सर्वस्व समर्पित कर चिंता मुक्त हो जायें।
*मृत्यु का भय न करें।
और भी ऐसे अनगिनत प्रेरक और सार्थक संदेश है
कर्म के संबंध में श्रीकृष्ण के बेजोड़ विचार अनुकरणीय है। भटकों को राह दिखाता उनका जीवन चरित्र उस दीपक के समान है जिसकी रोशनी से सामाजिक चरित्र के दशा और दिशा में कल्याणकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
एकमात्र सत्य यही है कि
कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है।
आज की रचनाएँ-
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पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम्
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम्
काली नागनथनम कंसकाल कवलितकम्
धरा शुचि संकल्पम प्रभुदहन पापनाशकम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
मन कहानियों का प्रेमी है
गढ़ लेता है नायक स्वयं ही
खलनायक भी चुनता है
फिर क्या हुआ ?
यही चलाता है उसे
सच से घबराता है !
लेकिन कृष्ण जैसा सखा है उसके साथ - क्षीण होता मनोबल साधने को ,विश्वास दिलाने को कि तुम मन-वचन-कर्म से अपने कर्तव्य-पथ पर डटी रहो तो कोई बाधा सामने नहीं टिकेगी .तुम उन सबसे बीस ही रहोगी क्योंकि तुम्हारी बुद्धि, बँधी नहीं है ,विवेक जाग्रत है, निस्स्वार्थ भावनायें और निर्द्वंद्व मन है . पाञ्चाली के विषम जीवन की सांत्वना बने कृष्ण, उसे प्रेरित करते हुए आश्वस्त करते हैं कि दुख और मनस्ताप कितना ही झेलना पड़े , अंततः गरिमा और यश की भागिनी तुम होगी.और कृष्ण-सखी के जीवन में कृष्ण के महार्घ शब्द अपनी संपूर्ण अर्थवत्ता के साथ चरितार्थ होते हैं।
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