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मंगलवार, 13 अगस्त 2024

4216...महिमा तो रखते तनिक...

  मंगलवारीय अंक में

आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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एक मासूम दरिंदगी का शिकार हुई
यह चंद पंक्तियों की ख़बर बन जाती है
हैवानियत पर अफ़सोस के कुछ लफ़्ज़

अख़बार की सुर्ख़ी होकर रह जाती है
आख़िर हम कब तक गिनेंगे?
और कितनी अर्थियाँ 
बेटियों की सजेंगी?
कोर्ट,कानूनों और भाषणों 
के मंच पर ही
महिला सशक्तिकरण 
भ्रूण हत्या,बेटी बचाओ
की कहानियाँ बनेंगी
पुरुषत्व पर अकड़ने वाले को
नपुंसक करने की सज़ा 
कब मिलेगी?
मुज़रिमों को
पनाह देता समाज
लगता नहीं 
यह बर्बरता कभी थमेगी
क्यों बचानी है बेटियाँ?
इन दरिन्दों का 
शिकार बनने के लिए?
पीड़िता, बेचारी,अभागी
कहलाने के लिए

बेटियाँ कब तक जन्म लेंगी ?
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आज की रचनाएँ

वहशी


दुष्टों के संहार को 
 बहुत लिए अवतार तुमने ! 
 फिर मौन रहकर क्यों सुने , 
 मासूम के चीत्कार तुमने ? 
 महिमा तो  रखते  तनिक  , 
 चौखट तेरे मंदिर की थी !!




आ गई कैसी घड़ी


कौन है वो दरिंदे
जो थे इतने बेरहम
पंखुड़ियां नोचने से
ना उसे आई शरम 
स्वप्न बिखरे उस कली के
झर गई आंसू लड़ी 


जंगल


किसी ने सोचा कि
मुझ जंगल को लूट लेने से
मैं खाली हो जाऊँगा।
हाँ, खाली हो जाऊँगा कई निराशाओं से।


पंक्ति



पंक्ति
जिसमें गुँथा है विश्व
अदृश्य धागों से
पंक्ति
जो लगती है वर्तुलाकार 
और अक्सर सीधी भी
पंक्ति
जो मिटती जा रही है
और उभरती भी


दीदी घर भर की प्यारी है



संझा   में   वे   दीप  जलाती
अंधकार   को   दूर  भागती
गुड़ में थोड़ा चना मिलाकर
संध्या  का  को भोग लगाती
 
सबकी  हाथ  पाँव हैं दीदी
रौनक  खुशहाली  हैं दीदी
दिन भर जिनका नाम गूँजता
सच  बतलाऊँ   मेरी  दीदी


पापड़ बेलने पड़ते थे


इस नेमत को, जिसके रसास्वादन के लिए कई-कई लोग इंतजार में रहते थे, पाने के लिए अच्छा-खासा उद्यम करना पड़ता था ! मिल के रिहाइशी क्षेत्र से रेलवे स्टेशन, जिसका नाम कांकिनाड़ा था (काकीनाडा नहीं), की दूरी करीब एक किमी होगी, जिसे मौके के अनुसार पैदल या रिक्शे से नापा जाता था ! स्टेशन से कलकत्ते का सियालदह स्टेशन करीब 35 किमी था, बीच में उस समय ग्यारह स्टेशन पड़ते थे ! इस दूरी को पार करने में लोकल ट्रेन तकरीबन घंटे भर का समय ले लेती थी। सियालदह के जन सैलाब को पार कर बाहर आ कर शहर के भवानीपुर इलाके के लिए बस ली जाती थी। फिर बस छोड़ सब्जी बाजार तक जाना पड़ता था। जहां से अपनी इच्छित मात्रा मुताबिक सरसों का साग मिल जाना भी एक उपलब्धि ही होती थी ! फिर उसी क्रम में वापसी होती थी फर्क सिर्फ इतना होता था कि बाजार से सियालदह तक का सफर बस की बजाय टैक्सी पूरा करवाती थी और स्टेशन से मिल के अंदर घर तक रिक्शा !

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आ गई ये कैसी घड़ी
    नायाब अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं

  2. सशक्त भूमिका के साथ
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय श्वेता जी सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय श्चेता, आज की मार्मिक प्रस्तुति को देख- पढ़कर निशब्द हूँ! आज समाज अपेक्षाकृत अशिक्षित है, पहले से कहीं ज्यादा सभ्य और प्रगतिशील है पर बेटियों पर भारी पड़ रही है ये नव सभ्यता! इसे संस्कारों का ह्वास कहें या बेटियों को दुर्भाग्य कि बेटी के पैदा होते हमारा समाज और परिवार उसके विवाह और दहेज की चिंता तो रखता है पर बेटियों को शारीरिक रूप से सक्षम बनाने की ओर कोई ध्यान नही देता!, अगर बेटी शिक्षा के साथ आत्मरक्षा के लिए भी गंभीर और सतर्क रहे तो शायद कठुवा कांड, निर्भया कांड , कलकत्ता की होनहार डॉक्टर बेटी के साथ दरिंदगी के रूप में दोहराया ना जायेगा! वासना के भेड़िये तो इतने निर्भीक हैं कि वे विदेशों से भारत भ्रमण पर आई अतिथि बालाओं को भी अपना शिकार बनाकर राष्ट्र की छवि को दागदार करने से बाज नहीं आते! राष्ट्र की पुरातन संस्कृति में समस्त नारी शक्ति को पूज्या मानकर उसे देवी तुल्य माना गया है पर आज शिक्षित सभ्य समाज के कुटिल दरिंदे उसे भोग्या जानकर उनकी जो दुर्गति कर रहे वो निहायत लज्जाजनक और मानवता के प्रति अक्षम्य अपराध है! चाहे कितने कैंडल मार्च निकाले जाएँ या शोक सभाएँ आयोजित की जाएँ जिन बेटियों ने नारीदेह होने की सजा पाकर अपने जीवन की आहुति दी वे लौट कर नहीं आ पाएंगी और ना ही उनके अपने कभी इस दर्द से उबर पाएंगे t। तुम्हारी भूमिका झझकोर गई!
    **
    क्यो बचानी हैं बेटियाँ?//
    इन दरिन्दों का //शिकार बनने के लिए?//
    पीड़िता, बेचारी,अभागी
    कहलाने के लिए//बेटियाँ कब तक जन्म लेंगी ?//
    ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहे हैं सदा काश समाज और न्यायपालिका इस तरह की घटनाओं के प्रति संवेदनशील हो कर कड़े कानून बनाये और उनकी पालना के लिए कठोर कदम उठाये! और हर बेटी इतनी सक्षम हो कि ख अमानवीयता होने से पहले खुद को बचाने में हर तरह से सक्षम हो! एक मार्मिक और सार्थक प्रस्तुति के लिए साधुवाद! आज के सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक रचनाओं की प्रस्तुति। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, श्वेता दी!

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक भूमिका संग नायाब अंक ...क्यों बचानी हैं बेटियाँ ....उत्तर है नहीं किसी के पास । ..

    जवाब देंहटाएं

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