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सोमवार, 12 अगस्त 2024

4215 ..आज बारिश से मोबाइल बचाना सीख गये!!

 नमस्कार

इस माह का मुख्य उत्सव
बस तीन दिन बाद


सीधे चलें रचनाओं की ओर



नदिया दौड़ी जाती देखो
सागर से मिलने को आतुर,
उर मतवाला मिटना चाहे
एक पुकार लगाये कोई !




शब्दों में सामर्थ्य नहीं है
जो परिभाषित कर सकें उन्हें,
सम्मान और स्नेह लुटाकर
उर स्मरण आज कर रहा जिन्हें !




कल हम भी
बारिश में छपाके
लगाया करते थे...
आज इसी बारिश में
कीटाणु देखना सीख गये!!

कल बेफिक्र थे कि
माँ क्या कहेगी
आज बारिश से
मोबाइल बचाना सीख गये!!





कृपया तुम उस गुप्त कमरे की जानकारी किसी को मत देना " और यह कहते हुए उस सेठ ने अपनी जेब से 5,000 रुपए निकाले और उस चोर की तरफ बढ़ा दिए और चोर ने मुस्कराते हुए वह पैसे अपनी जेब में रख लिए थे और सेठ को हक्का बक्का वहीं पर छोड़ कर , वो चोर अपनी राह पर आगे बढ़ गया था। पर अब तक वह सेठ समझ चुका था कि उसके घर पर पड़ा गुप्त खजाना अब सुरक्षित नहीं रहा था और उस पल वह चोर , मन ही मन में यह फैसला कर चुका था कि उसका अगला निशाना उस सेठ का घर ही होगा।





बिजली की चमक और गर्जन की तेज आवाज से डरकर हम दादा जी के पास दुबक जाते। बोरसी की आग में दादी मकई पकाती और उसकी सोंधी खुशबू और नींबू, नमक,मिर्च के साथ स्वाद लेते हुए खाते और दादा जी के किस्से सुनते रहते।

आज  बस
सादर

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    सुंदर प्रस्तुति,
    हार्दिक आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर रचनाओं का संकलन।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. सराहनीय प्रस्तुति। बधाई एवं शुभकामना।

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