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रविवार, 30 जून 2024

4172..लोगन के जम्मो मन के मइल धोवा जावय

 सादर अभिवादन

माह-ए-जून विदा
कल से जुलाई
पुराने जमाने में
इस्कूल 1 जुलाई से ही
चालू हुआ करता था
बच्चों को परेशान करने
के चोंचले है...वजह
नई फीस व किताबें 
व इसकूल ड्रेस की बिक्री

रचनाएँ कुछ मिली जुली ....



यादें उमड़ते बादलों सी
देती हैं सौगातें
दिलाती हैं हर पल याद
ये जो पल तुमने जिए
यही है तुम्हारी असली धरोहर
खट्टी-मीठी इमली सी
सौंधी मिट्टी की गंध सी
महकती बयार सी
इठलाती नवयौवना सी





आदमी  लगा  है  रात-दिन
कुछ  न  कुछ  करने  के  लिए
नन्ही  चिड़िया  सोने चली है
सपनों  में  बिचरने  के  लिए।





चुनांचे मुहरत को रोक लिया गया , नए नामों पर हरकत हुई और समन्दरों की लहर से लिबास को देख मेरे दिल ने कहा , समन्दरों की बेटी का नाम क्यों न “ओशीन” हो! अपनी पतली बाहों से रज़ामंदी का इशारा दे चीकू ने नाम कुबूल किया और सभी गुड़ियों के बीच मानों खुशी की लहर दौड़ आई. मन्त्रों की आवाज़ और अगर की खुशबू के बीच नाम रखाई का काम अंजाम दिया गया. और प्रसाद बाँट दिया गया. सबने खूब  तालियाँ पीटी और दुल्हे भाई ने सारे रस्मों रिवाज़ को कैमरे में क़ैद कर उसे यादगार बना दिया





एसो अइसे झुमर के
बरसबे रे बादर,
लोगन के जम्मो
मन के मइल
धोवा जावय।

छल, कपट, इरखा के
चिखला
बने चिक्कन के
खलखल ले
बोहा जावय।





बैठ फ़ुर्सत में आमने-सामने
कभी एक-दूसरे की बाँहों में
बतिआया करेंगे हम-दोनों
पोपले मुँह से तोतली बोली
अपने बचपन-सी
और ढूँढ़ा करेंगे अक़्सर
चाँदी-से सफ़ेद बालों में
बर्फ़ीले पहाड़ों के
बर्फ़ की सफ़ेदी तो कभी ..
चमक पूर्णमासी की रात वाली
टहपोर चाँदनी की
आओ ना सखी !?





दिसंबर 2018 की एक रात ! दिल्ली हवाई अड्डा ! समय दस बजकर चालीस मिनट ! इस कोने की हवाई पट्टी पर सघन सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक विशेष विमान आ कर रुकता है ! कुछ समय पश्चात उसमें से सेना के दो जवान एक तीसरे शख्स को ले कर बाहर आते हैं ! उस शख्स के हाथों में हथकड़ी और आँखों पर पट्टी बंधी होती है ! उतरते ही उसे हिरासत में ले लिया जाता है ! यह शख्स था क्रिश्चियन मिशेल, जिसकी भारत सरकार को 2004 के अगस्ता हेलीकॉप्टर घोटाले में वर्षों से तलाश थी ! इसे दुबई से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था !

आज बस
कल फिर
सादर वंदन

शनिवार, 29 जून 2024

4171.."बचपन बचाओ" के नारों से बेख़बर

 सादर अभिवादन

बस बस कहते कहते
छः रचनाएं हो गई
अभी शुक्रवार की सांझ भी नहीं हुई है
और शनिवार की प्रस्तुति भी बन गई
रचनाएँ कुछ मिली जुली ....



 लंच के समय सब लोग जब हाल में इकट्ठे हुए तो सब अपने-अपने तरीके से विचार व्यक्त कर रहे थे।

      "यार लोग तो मिलने से कतराते हैं और ऑफिस में भी आकर मुँह छिपाते हैं और ये तो पार्टी देने का प्लान बनाये बैठे हैं। "




इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो




ऐसा ज़रूर हो कि उन्हें रख के खा सकूँ
पुख़्ता अगरचे बीस तो दस ख़ाम भेजिए
माना जाता है कि यह सबसे पहले आसाम में जंगली प्रजाति के रूप में उगा और चौथी से पांचवी सदी ईसा पूर्व ही एशिया के दक्षिण पूर्व तक पहुंच गया। भारत कभी भी आम का आयात नहीं करता और यहां पन्द्रह सौ से अधिक किस्म के आम उगाए जाते हैं। वाकई, आम आम नहीं खास है, क्योंकि यह फलों का राजा है। मंजर से लेकर पत्तों तक, कच्चीअंबिया से लेकर पके आम तक , हमारे जीवन में रचा - बसा है, समझिए कि एक पूरी संस्कृति है आम।





बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से
गंदगी की परत चढ़ी
इनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
काश! किसी दिन बना पाऊँ मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर



दक्ष थी लाडली उनकी हर कार्य में
उतार लाती वो स्वर्ग घरा पर
बना देती घर को जन्नत
लेकिन मिली ससुराल में रुसवाई
उसकी सर्वगुण सम्पन्नता
किसी को रास नहीं आई





जाने कितनी पीर भरी है ,
मन कि वीणा के तारों में ।
जो भी गाये  मन भर आये,
आकुल - व्याकुल झंकारों में
मेरे गीत न गाओ तुम्हारा स्वर दर्दीला हो जायेगा ।



आज बस
कल फिर
सादर वंदन

शुक्रवार, 28 जून 2024

4170...तुमसे कहना है कुछ...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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नशा मुक्त भारत अभियान एक प्रमुख राष्ट्र निर्माण पहल है क्योंकि यह स्वस्थ और अनुशासित युवाओं पर केंद्रित है।

प्रति वर्ष २६ जून को मनाया जाने वाला एक विशेष दिवस

जिसमें  एनएमबीए नारकोटिक्स ब्यूरो, राज्य और जिला सरकार, पुलिस, गैर सरकारी संगठनों, अस्पतालों आदि जैसी नियामक एजेंसियाँ  एक साथ मिलकर भारत को नशा मुक्त बनाने के लिए समन्वित तरीके से काम करती हैं।

सबसे दुखद और.दुर्भाग्य पूर्ण है नशा के मोहपाश में उलझते किशोर और युवाओं की बढ़ती संख्या। 


एक चिंतन-


फुटपाथ, मंदिर की सीढ़ियों,

गंदे नालों के किनारे

फटे,मैले टाट ओढ़े निढाल

सिकुड़े बेसुध सो जाते हैं 

डेंडराइट के नशे में चूर।

किसी भी फोटोग्राफी प्रतियोगिता के लिए

सर्वश्रेष्ठ चेहरे बनते 

अखबार और टेलीविजन पर

दिए जाने वाले 

"बचपन बचाओ" के नारों से बेख़बर,

कचरे में अपनी ज़िंदगी तलाशते

मासूमों को देखकर,

बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से

गंदगी की परत चढ़ी

इनके कोमल जीवन के कैनवास पर

मिटाकर मैले रंगों को

भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग

काश! किसी दिन बना पाऊँ मैं

इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर।



आज की रचनाएँ-

इतिहास सा लगता है
कि,कभी चूल्हे में सिंकी थी रोटियां
कांसे की बटलोई में बनी थी
राहर की दाल
बस याद है
आया था रंगीन टीवी जिस दिन
करधन,टोडर,हंसली
बिकी थी उस दिन




रंग फूलों में, तितली में तुमसे ही हैं,
रंग मेरी ख़ुशी के भी तुमसे खिलें। 
खिल उठेंगे के आकाश  में सात रंग,
जिस लम्हें, जिस घडी में, के हम तुम मिलें। 
'देव' तुमसे ही गीतों के स्वर जुड़ गए,
तुमसे ही मेरी कविता का, उन्वान है। 
रूपये पैसे तो बस बढ़े हैसियत ,
प्यार के धन से इंसान धनवान है। 




बच्चों की हंसी नहीं रुकती: 
"पार लग गए ! अब कोई चिंता नहीं! 
बारिश ने सब काम कर दिया!"
माई बाप खुश हैं 
"सबके लिए, 
कितना कुछ लाती हैं , 
जब भी आती हैं ।"



प्राकृतिक बिम्ब (दोहे)

मिट्टी
माथे पर मिट्टी लगा,पूज रहे हैं लोग।
वीरों के लहु से सनी,सहती वीर वियोग॥

पाषाण
छैनी ले पाषाण में,गढते दिव्य स्वरूप।
देख उसे फिर पूजते,सभी रंक अरु भूप॥



खूँटे की रस्सी


ऐसी ही सोचों वाली हेलेन एडम्स केलर हमेशा इस बात को प्रमुखता देती रहीं, कि इस महान दुनिया में हर जगह घर जैसा महसूस करने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए। उन्होंने महिलाओं और विकलांगों के यथोचित अधिकारों के लिए कई-कई बार विश्व भ्रमण किया था। विश्व भ्रमण के दौरान विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के बीच एक सहानुभूतिपूर्ण या .. यूँ कहें कि .. समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण बनाने के प्रयास के साथ ही दानस्वरूप मिले एकत्रित करोड़ों रुपयों से विकलांगो के लिए, विशेष कर नेत्रहीनों के लिए अनेक संस्थानों का निर्माण भी करवाया था। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 27 जून 2024

4169...किंतु वह प्रेम तो निकला रेगिस्तानी

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. मिस शरद सिंह की रचना से।  

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

पहली प्रांजल प्रस्तुति

प्यारी प्रियतमा

पहने पीत परिधान

पहुँचे पवित्र प्रकोष्ठ

पूजे परम पूज्य

प्राण प्रतिष्ठित पावन प्रतिमा

*****

कविता प्रेम का पुण्य-स्मरण डॉ (सुश्री) शरद सिंह

किंतु वह प्रेम

तो निकला

रेगिस्तानी

रेत के टीले

की तरह

एक आंधी में

बदल गया

उसका ठिया

प्रेम

प्रेम श्रद्धा और विश्वास है

किसी को कुछ देने की आस है

हज़ार ख़ुशियों के फूल उगाने वाली बेल है

प्रेम बना देता हर आपद को खेल है

इसकी एक किरण भी उतर जाये मन में

बिखेर देना किसी महादानी की तरह

प्रेम में होना ही तो होना है

यही बीज दिन-रात मनु को बोना है!

*****

पीर मन की ये सुनाएं...

रुष्ट हो जलता है भानु

मेघ भी अब तिलमिलाए

पीर मन की ये सुनाएं ...!

*****

सर्वगुण सम्पन्न लाडली

पढ़ाया लिखाया उसे

निपुण बनाया घर के काम काज में

छोटे बड़ों का आदर भी

करना सिखाया उसे

सिखाया जिंदगी जीने का हुनर भी

बना दिया लाडली को सर्वगुण सम्पन्न

*****

 फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


बुधवार, 26 जून 2024

4168..न तुम जीते,न हम हारे

 ।।प्रातःवंदन।।


''विपदा से मेरी रक्षा करना
मेरी यह प्रार्थना नहीं,
विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।

दुख-ताप से व्यथित चित्त को
भले न दे सको सान्त्वना
मैं दुख पर पा सकूँ जय.."
रवीन्द्रनाथ टैगोर
भावनाओ को समझने के लिए  शब्दों का भी साथ लिजिए...कि..✍️


चुनाव परिणाम आने के बाद से कइयों की गर्मी निकल चुकी है ,पर देश के कई हिस्से अभी भी उबल रहे हैं।इस गर्मी के चलते दूध और दाल के दामों में भी उबाल आया है।विशेषज्ञों ने इसका कारण उत्तर दिशा से..

✨️

सुरमई

अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l

अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान l

युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l

नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय l

✨️

मन रे कुहूक

 अच्छा, कहिए बात कहीं से

सच्चा करिए साथ यहीं से

व्योम भ्रमण नहीं भाता है

नात गाछ हरबात जमीं से..
✨️


एक दिन हम गुम हो जायेंगे धरा से
आप के कॉन्टैक्ट लिस्ट 
में पडा़ नबर हमारा
बिना मोल के सिक्के जैसा
पडा़ रहेगा..
✨️



प्रकृति पर मलकियत जताने 

वाले वे सभी उसके मोहताज थे 

यह उन्हें नहीं पता था 

क्योंकि उन दिनों..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 25 जून 2024

4167 ...मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ

 सादर अभिवादन

कुछ ही मिनट पहले
सखी श्वेता ने सूचित किया
हम अचानक ही व्यस्त हो गए हैं

 रचनाएँ कुछ मिली जुली ....



"मेरी बेटी तो पूजा के फूल समान पवित्र है।" शादी के बाद शिल्पा लगातार कई बार अपनी सास के मूंह से ये शब्द सुनती रहती थी। उसे समझ में ही नहीं आता था कि सास ऐसा क्यों कहती है। उसने सोचा कि शायद बेटी के प्यार में ऐसा कहती होगी। पर दो तीन महीनों बाद उसे लगा कि ये बात उसे सुनाकर ही कही जाती है।




उसी दिन शाम को मधु से रसोई में कुछ बनवाकर रस्म करवाई जानी थी, 
बुआजी ने बड़े चाव से पूछा ..."मधु ! क्या बना रही हो बेटा?"

"सब तो मम्मी जी ने बनवा ही लिया है ,मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ। 
दोनों के ऊपर  आपको सजा दूँगी...।"





सभी का हक़ है जंगल पे कहा खरगोश ने जब से
तभी से शेर, चीते, लोमड़ी, बैठे मचनों पर

जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगे
झील, सागर, ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे

हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश में
पांच सौ के नोट पे बापू नज़र आने लगे




आजकल फल मंडी सब्जी मंडी सड़क किनारे ठेलों पर बस आम ही आम नज़र आ रहे। कहीं अचार का कच्चा आम है तो कही पके। भइया ये डाल का आम है या पाल का। डाल का तो समझ आता अब ये पाल का आम क्या होता?पूछा तो पता लगा जो बिना कार्बाइड पके हैं वो डाल के और जो कार्बाइड डाल के जबरन पकाये गए हैं वो पाल के। हम इसके डिटेल में ज्यादा नहीं जायेंगे, हाँ इतना जरूर कहेंगे कि जहाँ तक हो सके डाल का आम खाएँ, पाल का आम खाने से बचें, पाल के आम फायदा की जगह नुकसान करेंगे। अब जहाँ डाल का आम उपलब्ध ना हो, वहाँ आम लाकर पानी में डाल दें, कुछ घंटों बाद उसका सेवन करें।




आती है जब दुबारा आवाज कौन हो बे।
किसी ने पूछ लिया हो जाति - धर्म या नस्ल
पूछा हो जैसे किसी ने श्रेष्ठता के बोध से
नहीं बताना चाहता है मन कौन हूं मैं
हिंदुस्तान हूं,संविधान हूं
मानव जाति का इंसान हूं मैं।



आज बस
कल मिलिएगा पम्मी सखी से
सादर वंदन

सोमवार, 24 जून 2024

4166 पत्नी से बड़ा कोई आलोचक नहीं होता

 सादर अभिवादन

मजबूर है तू भी
आदत से अपनी
अच्छी बातों में भी
तुझे छेद हजारों
नजर आ जायेंगे
 रचनाएँ कुछ मिली जुली ....



जेठ की तपती दोपहर में
बादलों का आना ही
राहत और सुकून देता है
और उनका बरस जाना
ज्यों तन-मन को भिगोता देता है
तुम आना तो वैसे ही आना
रूह में बस जाने को आना



अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने
जब तेरे मिल गये सब धाम l

अंतस फासले सिरहाने पाकीजा
अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll

युग युगांतर साधना महकी जिस
सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l

नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय
जैसे इनके रूहों बीच समाय ll




तन-मन झुलसाकर ख़ाक करती गर्मियों में
बादलों की अठखेलियाँ गिनते है
फूल काँटों संग झूमते हैं
भँवरे तितलियों संग ताल मिलाते हैं
गेहूँ और धान की बालियों से
हरे-भरे लहलहाते खेत
गाते किसान,





निष्पक्ष और सख़्त आलोचक
पत्नी जैसा हो  
आपके साथ हो  
तो निस्संदेह
कविता नज़र आयेगी





आना जाना,रस्म रिवाज रोज रोज की
रिवायतें औ बहाने सरेआम....बस करों,

मलंग मन,कस्तूरी सांसों मे घुल रही
जाते-जाते आँखों के इशारे..बस करों।





यूं तो हिंदी साहित्य में कविता लिखने वाले अनगिनत सितारे रहे हैं जिनकी कलम ने हर दौर में हिंदी को एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएं दीं। कविता हिंदी साहित्य की वो विधा है जो खूबसूरत से खूबसूरत विचार को कम शब्दों में कहना जानती है। 'गांव कनेक्शन' की साथी अनुलता राज नायर ने कोशिश की है ऐसी ही 10 बेहतरीन शख्सियतों को याद करने की, जिनकी कविताओं को साहित्य संसार सदियों तक याद रखेगा।




विदाई की बेला है
दुख तो स्वाभाविक है
नम होंगे नयन
जार-जार अश्रु भी बहेंगे
पर याद रखना होगा
हर अंत एक नयी शुरुआत है
हर रात का होता प्रभात है !




आज बस
कल मिलिएगा सखी से
सादर वंदन