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गुरुवार, 30 मई 2024

4142...इश्क़ का पर्चा लीक हुआ तो...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

 .. —वर्जनाएँ

जो बिहार से जुड़े लोगों के मित्र गण बाहर रहते हैं वे अपने बिहारी दोस्तों से कहना नही बुलते बिहार से वापस आना तो मिठाई जरूर लाना भाई क्योंकि उस स्वाद सोनाहपन को जीभ भूल नही पाती है। बड़ी बहू को खुरमा तो बनाना आता था लेकिन जो अलग तरीक़े का खुरमा उसके ससुराल में बनाया जाता था उसे बनाते कभी देखी नहीं थी! मझली बहू को किसी प्रकार का खुरमा बनाना नहीं आता था। मैदा में मोयन और खाने वाला सोडा और चीनी के घोल से सानकरमोटा गोल बड़ी रोटी बेलकर खुरमे के आकार में काटकर घी में तल लिया जाता है। 

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शायरी इश्क़ का पर्चा डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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वाह रे गर्मी

झुलस रहा है कन-कन

कब बरसोगे घनश्याम

तपन से दरक रही धरती

लगे नहीं शीतल सी शाम

सूरज का पारा बढ़ता जाये

कोमल काया झुलसाये

                                                                    *****

क्या भूलूं क्या याद करूं!!

सूना जग सूना मन

तुमसे पाया जीवन धन

छाया बनकर साथ रहे

पीर कहे अब किससे मन।

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बहोत दूर - -

दवा के नाम पर झूठी तस्सली ही

सहीकिसे ख़बर कौन सी

दुआ हो जाए असरदार,

हर कोई चाहता है

पाना जिस्मानी

ख़ुशी,

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फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


3 टिप्‍पणियां:

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