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मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

4112....जल आँखों का सूख गया है..

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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नेता कोई भी हो, उसकी संवेदना लगभग शून्य होती है.. जिनकी भी जीवन को समझने की समझ शून्य होती है, वही नेतागिरी करता है.. कोई भी स्वस्थ मानसिकता का व्यक्ति नेता तो कभी भी नहीं बन सकता है।

और यही हाल राजनीति में बड़ी भारी रुचि रखने वालों का है.. कोई किसी को अंधभक्त कह के कितना भी चिढ़ा ले, वो भी उसी श्रेणी का ही भक्त होता है और उतना ही संज्ञाशून्य होता जितना कि अन्य पार्टी के समर्थक.. इस दौर में राजनीति को ज्यादा ही ग्लोरिफाई किया जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप खूब सारी किताबें पढ़ने वाले काबिल लोग भी राजनैतिक विश्लेषक बन गए हैं। राजनीति की तरफदारी के लिए कोई कितना भी दाएँ-बाएँ से घुमा कर कान पकड़े, वो होता राजनेता ही है.. चाहे वो विश्लेषक हो, नेता हो या पार्ट टाइम ग़ज़ल या कहानी लिखने वाला हो, अगर वो राजनीति में किसी एक विचार धारा या व्यक्ति किसी भी रूप में समर्थक है तो आप कैसे मान सकते हैं कि वो निष्पक्ष और पूर्णतया तटस्थ है?

 मुझे यूँ तो राजनीति का दाँव-पेंच कुछ समझ नहीं आता परंतु राजनेताओं की मानसिकता और व्यवहार से इतनी आहत हो गयी हूँ कि किसी भी राजनीति करने वाले से कोई लगाव नहीं है..ये सब एक ही हैं.. सारे के सारे अवसर की तलाश में हैं..

 मुसलमान और सेक्यूलर, दलितों का झंडा उठाये लोग मात्र अवसर ढूंढ रहे हैं.. स्वयं की प्रसिद्धि का, पावर का और पैसे का.. और दूसरी ओर के लोग भी ऊँचे राजनीतिक ओहदे का।

हम इंसानों की क्षमता और सामर्थ्य इस हिसाब से डिज़ाइन ही नहीं है कि हम लाखों और करोड़ों लोगों के भविष्य और उनके भले के लिए दिन रात एक कर दें बिना किसी लालसा के...। 

इन वाक् वीर तथाकथित देशभक्त, गरीबों के 
मसीहा महान क्रांतिकारियों के झांसे में आकर
कृपया अपनी मानसिक शांति 
भंग न करें।



सब की खुशी में अपनी खुशी है होनी ही चाहिए
सारे खुशी से लिखते हैं खुशी लिखे में है नजर भी आती है
खुदा सब की खैर करे भगवान भी देखें सब ठीक हो
ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है कहीं से भी नहीं आती है





बेच-बेच कर भरी तिजोरी 

जल आँखों का सूख गया है,

पत्थर जैसा दिल कर डाला 

मनुज प्रकृति से दूर गया है !


जगे पुकार भूमि अंतर से 

प्रलय मचा देगा सूरज यह, 

अंश उसी का है यह धरती 

लाखों वर्ष लगे बनने में !



कैसे भूलेंगे
टेनिस का रैकेट 
कैरम की गोटियाँ
वो शरारतें 
वो खिलन्दड़ापन
छोटी लम्बी चोटियाँ 
 
आओ फिर से
महफ़िल सजाएं
हँस लें मुस्कुराएँ
न जाने फिर
ऐसे सुन्दर दिन
कभी आयें न आयें  


कुछ मजेदार मुक्तक


आज के युवाओं में देशप्रेम की लौ जलती ही नहीं,
पॉश एरिया के मतदान केंद्रों में भीड़ दिखती ही नहीं। 
हम बड़े जोश से मतदान करने गए पर कर ना सके,
अधिकारी बोला, शक्ल आधार कार्ड से मिलती ही नही। 

गर्म कपड़ों को जब अलमारी में रख देते हैं धोकर,
मायूस से देखते हैं जब रोज सुबह उठते हैं सोकर। 
कि सर्दी खत्म होते ही गर्म कपड़े ऐसे वेल्ले हो गए हैं,
जैसे सेवानिवृत होने के बाद होते हैं सरकारी नौकर। 


बद्रीनाथ धाम यात्रा -2


मुझे लगता है इतनी भीड़ में ऐसे स्थानों पर जाना केवल मन को समझाना है कि हमने दर्शन कर लिये .साथ चलते लोगों को पीछे धकेलकर ,आगे निकलने की प्रवृत्ति ने आस्था को पीछे छोड़ दिया है .एक ही भाव रहता है कि किसी तरह आगे निकलो भगवाने के सामने जाकर कुछ माँगलो और मिल गया दर्शनों का लाभ .पूरी आत्मीयता और कृतज्ञता के साथ ईश्वर के सामने खुद को रखना तो हो ही नहीं पाता . जब तक हृदय द्रवित न हो डोर वहाँ तक नहीं पहुँचती . भीड़ में धक्का खाते कुचलते आस्था कहीं बिखर जाती है . मेरे विचार से हर रजिस्ट्रेशन करने वाले यात्री को दर्शनों की तारीखें और समय दे दिया जाय तो धक्का मुक्की और दूसरी मुश्किल से बचा जा सकता है . यह सोचनीय है कि हमारे तीर्थस्थलों को भी लोगों ने पिकनिक स्पॉट बना लिया है .यातायात की सुविधा ने जहाँ जीवन को आसान बनाया है वहीं प्रदूषण गन्दगी के साथ जीवन को कृत्रिमता की ओर धकेला है.

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर समझाइस देता अग्रलेख
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. भाव अकेले आपके नहीं हैं बहुत से लोग और भी हैं बस डरे हुए हैं l सुन्दर l आभार श्वेता जी l

    जवाब देंहटाएं
  3. हमें तो किसी भी राजनीतिक पंथ या विचारधारा का अंध समर्थक या अंध विरोधी मानसिक रूप से अपंग और गुलाम लगता है। आपके विचार तार्किक और स्वागतयोग्य हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. संभवत: लोकतंत्र में यह स्वाभाविक है, मनन करने योग्य भूमिका और सुंदर सूत्रों का संयोजन, बहुत बहुत आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार भूमिका श्वेता ...सच कहा आपनें ,बिना लालसा काम करना .....?
    सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप ब्लॉग जगत को जीवंत रखे हुए हैं, इसके लिए बधाई के पात्र हैं। वरना मुस्कराते पलों की तरह बस यादें ही बची थीं। आभार।

    जवाब देंहटाएं

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