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रविवार, 21 अप्रैल 2024

4103 ..कल शाम तुम्हारे पानी में जो सूरज डूबा था

 सादर अभिवादन

आज महावीर स्वामी जी का जन्म कल्याणक महोत्सव है


भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में भारत के बिहार नामक राज्य में एक श्रेष्ठ परिवार में हुआ था। अपने जीवनकाल के दौरान, भगवान महावीर को वर्धमान के रूप में जाना जाता था। वर्धमान, कई तरीकों से, बौद्ध धर्म के सिद्धार्थ गौतम के समान हैं। सिद्धार्थ के समान, वर्धमान ने भी सांसारिक कष्टों को देखने के बाद सत्य की खोज करने के लिए अपना आरामदायक घर छोड़ दिया था। विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों के लोगों से मिलने के बाद, वर्धमान को संसार और पीड़ा के स्त्रोतों का काफी ज्ञान हुआ। अंत में, वर्धमान ने अपने प्रयासों को उपवास और ध्यान पर केंद्रित कर दिया।

इस प्रक्रिया के माध्यम से, वर्धमान को मोक्ष की प्राप्ति हुई। उन्होंने पाया कि अपनी असीमित इच्छाओं को समाप्त करने के लिए मनुष्यों के लिए लालच और सांसारिक चीजों से अपना संबंध तोड़ना जरुरी होता है। इस ज्ञान के साथ, जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए वर्धमान ने भारत और एशिया के अन्य क्षेत्रों की यात्रा की। इस समय के दौरान, वर्धमान का साम्राज्य बहुत अधिक समृद्ध हो गया था। कई लोगों ने इस आशा के साथ जैन धर्म अपना लिया कि उन्हें भी प्रसन्नता की समान स्थिति का अनुभव हो जायेगा। मोक्ष पाने के पश्चात वर्धमान की मृत्यु हो गयी। 425 ईसा पूर्व में वर्धमान को भगवान महावीर, धर्म के अंतिम तीर्थंकर और सर्वज्ञ गुरु के रूप में जाना जाने लगा। कई लोग अपने कर्मों और भगवान महावीर की शिक्षाओं पर विचार करने के लिए महावीर जयंती मनाते हैं।

आज की चुनिंदा रचनाएं




सींचनें से पेड में फल आये जरूरी तो नही
हम चाहें जिसे, वो हमें चाहे जरूरी तो नही

चमन से गुजरे तो खुशबू भी जरूर आयेंगी
महके हर फूल बागीचे का जरूरी तो नही





मुझे तुम ख़ुद से बाहर निकाल देना,
उस बरस जैसे निकाल फेंका था वह पूरा महीना;
जो हमने एक दूसरे से दूर गुजारा था,
याद तो जरूर होगा तुम्हे!






शायद कभी
आये कोई ,
मन की पाती
बांचे कोई ,
बात अनकही
समझ जाये कोई.
अपनाये,
नयी ज़िन्दगी दे जाये .
अपने आंसुओं से
मुरझाई
मन की मिटटी
सींच जाये कोई .




हमारी ज़िन्दगी में
“शब्द”
बहुत मायने रखते हैं।
दोनों ही दिन चीता तो वही था,
उसमें वही फूर्ति और वही ताकत थी
पर जिस दिन
उसे हतोत्साहित किया गया
वो असफल हो गया
और जिस दिन प्रोत्साहित किया गया
वो सफल हो गया।





ब्रह्मपुत्र,
कभी ध्यान से देखो,
डूबते हुए सूरज से
कहीं ज़्यादा अच्छा लगता है
उगता हुआ सूरज.


आज बस. ...
कल फिर से मैं
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

  1. पांचों रचनाएं सुन्दर. आपका हार्दिक आभार

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  2. सुंदर रचनाओं का संकलन। इसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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