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शुक्रवार, 29 मार्च 2024

4080 ..हिंसा के दौर में चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा

 सादर अभिवादन

आज गुड फ्राइडे
और संकट चतुर्थी  दोनों है
अगले शुक्रवार को मिलेगी सखी श्वेता
आइए देखें कुछ रचनाएं ....




इसीलिये ए अज़ीम इंसानो!
आज की बेटियों को उडने दो
वक़्त के बाज़ से भी लड़ने दो
चांदनी भेड़िये की जंग में
नारा ए इंक़लाब पड़ने दो
कि बेटियों के लहू के छीटे
जब कभी भी ज़मी पे पड़ते हैं
फूल खिलते हैं






अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन, उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आये, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।



उनकी
बेशर्मी
बस
कभी कभी
किसी एक
ईद का
छोटा
सा चाँद



अश्लीलता फूहड़ता और
हिंसा के दौर में
चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा
'टार्चर हो सकने की सहनशक्ति' का है.





कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ

ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ




आर्ट ऑफ़ लिविंग की तरफ़ से कुछ दिनों के लिए ऑन लाइन स्टे फिट कार्यक्रम चलाया जा रहा है। सुबह-सुबह उनके साथ व्यायाम और योगासन करने से शरीर हल्का लग रहा है। अब दो दिन ही शेष हैं। एक सखी ने दुलियाजान में बीहू उत्सव की तस्वीरें फ़ेसबुक पर पोस्ट की हैं। कितनी यादें मन में कौंध गयीं। वहाँ क्लब में बीहू बहुत उत्साह से मनाया जाता है। साज-सज्जा नृत्य-संगीत और पारंपरिक पकवान, सभी की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है। पड़ोस वाले घर में दीवार उठनी शुरू हो गई है।

आज बस. ...
शायद कल विभा दीदी आ सकती है
कोशिश तो है
अग्रिम आभार
सादर वंदन

5 टिप्‍पणियां:

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