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सोमवार, 4 मार्च 2024

4055, तुम मुझसे बेहतर करती हो।

 प्रिय यशोदा दीदी जी सादर नमस्कार।

मंच पर सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार। 

समय अभाव के चलते पाँच रचनाओं के साथ उपस्थिति दर्ज हो।

स्नेहाशीष यों ही बना रहे।

अनीता सैनी 

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गूँगी गुड़िया : धोरों का सूखता पानी

उस दिन
उसके घर का दीपक नहीं
सूरज का एक कोर टूटा था
जो ढिबरी वर्षों से 
आले में संभालकर रखी है तुमने 
वह उसी का टुकड़ा है।
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देखो तो!
कविताएँ सलामत हैं?
मरुस्थल मौन है मुद्दोंतों से
अनमनी आँधी  
ताकती है दिशाएँ।
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गूँगी गुड़िया : तुम्हारे पैरों के निशान

उसने कहा-
सिंधु की बहती धारा 
बहुत दिनों से बर्फ़ में तब्दील हो गई है
उसके ठहर जाने से 
विस्मय नहीं
सर्दियों में हर बार
में तब्दील हो जम जाती है 
न जाने क्यों?
इस बार इसे देख! ज़िंदा होने का
भ्रम मिट गया है
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कई-कई बार, कि हर बार 
तू बह जाने से रह गई?
कुछ तो बोल! क्रम भावों का टूटा 
आरोह-अवरोह बिगड़ा भाषा का 
कि कविता सांसें सह गई?
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गूँगी गुड़िया : हूँ

प्रेम फ़िक्र बहुत करता है
लगता है जैसे-
ख़ुद को समझाता रहता है
कहता है-
"डिसीजन अकेले लेना सीखो
राय माँगना बंद करो
तुम मुझसे बेहतर करती हो।"
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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार
    मेरी बातों का मान रक्खा
    आगे भी सहयोग मिलेगा
    ऐसी ही इसी तरह
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात दीदी।
      हार्दिक आभार आपका आपने याद किया।
      मेरा पूरा प्रयास रहेगा।
      सादर स्नेह।

      हटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सादर सखी

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएँ दिल को छूती हैं, सुंदर और श्रम साध्य प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई अनीता जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाएं बेहतरीन हैं
    सुंदर संयोजन
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत सुन्दर व अत्यंत सराहनीय रचनाएँ

    जवाब देंहटाएं

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