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बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

4050..नायाब हो तुम..

 ।।उषा स्वस्ति।।

स्वागत आगत ऊषा

स्वागत अनुराग अरुण प्रात!

खिला-खिला विहँसा नभ प्राची का

आँचल से झाँक उठा

मोती सा दिनमणि गुलाब आभ!

प्रकृति मुग्ध, रूप निज निहार

अँगड़ाई, शरमाई, अंग-अंग

भरा इन्द्रधनुष

जगती चैतन्य ज्योति स्नात सुप्रभात..!!

 रामकृपाल गुप्ता

बदलते परिवेश,मौसम,मिजाज और कुछ पल...खास रचनाओं के संग..✍️

हवाओं पे एतबार मत करना

दिल होता है कांच का

हर किसी से प्यार मत करना

बड़ी हसरतों से बुनी है इश्क़ की ओढ़नी

तुम इसको तार तार मत करना..

 ✨️

इक नगीने की तरह नायाब हो तुम 

एक नगीने की तरह नायाब हो तुम 

ज़िंदगी एक सहरा, शादाब हो तुम

दिलकश भी तुम दिलनाज़ भी तुम 

हरदिल हो अजीज़, सरताज हो तुम..

✨️

अदृश्य कारागृह 



खुले पिंजरे की अपनी अलग है मुग्धता,

मोह का पंछी चाह कर भी उड़ना

नहीं चाहता, स्पृहा प्रणय न

जाने क्या है उस अदृश्य

कारागृह के चुम्बक

✨️

निशा के पल



निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,

निशांत पलों को, आराम जरा!

चहक कर, बहकेगी निशिगंधा,

और, जागेंगे निशाचर,..

✨️

अलविदा पंकज उधास.. भुला ना पाएँगे आपकी लोकप्रियता का वो दशक...

अस्सी का दशक मेरे लिए हमेशा नोस्टाल्जिया जगाता रहा है। फिल्म संगीत के उस पराभव काल ने ग़ज़लों को जिस तरह लोकप्रिय संगीत का हिस्सा बना दिया ..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️ 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! उषा का स्वागत करती मनोहर भूमिका और बेहतरीन रचनाओं से सजी प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं

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