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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

4039 ..खोलो कपाट आने को है वसंत

सादर अभिवादन

फरवरी माह के सारे त्यौहार
लगभग निपट गए
एक 29 फरवरी बाकी है
बस सोच बाकी है
काश हमारा जन्म भी 29 फरवरी को हुआ होता
तो विवाह भी 29 फरवरी को भी हो जाए
ऐसा ही वर मांगते ईश्वर से ..बस सोच ही तो सकते है
अब देखिए रचनाएं ...



तब एक-एक कर
सहमतियों-असहमतियों के फुंदने
भावनाओं की महीन सुईयों से
अपने विचारों के ऊपर
सजाकर सिलने लगती हूँ




भास्कर आये
क्षितिज की कोर पे
धरा मुस्काये

खोलो कपाट
आने को है वसंत
करो स्वागत !




गदराई पेड़ों की डाली
हमें सुहाती हैं कानन में।।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।




ये हैं या नहीं?
मैं नहीं जानती
इसलिए ही शायद ये मेरे ख़्वाब है
तुम ऐसे क्यों देख रहे हो?
तुम अपने भी जोड़ोगे क्या इसमें?
तुम्हारे दबे छिपे ख़्वाब!
क्या तुम जानते वो उन्हें




कहीं झालमूढ़ी वाले तार सप्तक में अपना सुर अलाप रहें हैं, कहीं चना जोर गरम वाले अपनी सतही तुकबंदी की धुन से अपने ग्राहक लोगों को लुभाने में लगे हैं .. तो कहीं खोमचे पर मूंगफली की ढेर सजाए .. ताजा-ताजा मसालेदार नमक की पुड़िया बनाता हुआ विक्रेता अलग ही मंद्र सप्तक वाले सुर में "चिनिया बदाम ले लो, टैम पास ले लो" बोल-बोल कर ध्यान आकर्षित कर रहा है।





आज भी लिखा जा रहा है समय
पर कोई कैसे लिखे तेरी तरह का जादू
वीरानी देख रहा समय वीरानी ही लिखेगा
वीरानी को दीवानगी ओढ़ा कर लिखा हुआ भी दिखेगा
पर उसमें तेरे लिखे का इन्द्रधनुष कैसे दिखेगा
जब सोख लिये हों सारे रंग आदमी की भूख ने

कल फिर
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. अपनी आज की रंग बिरंगी फुँदनों वाली प्रस्तुति के पैरहन में हमारी बतकही के पैबंद की तुरपाई करने के लिए ... 🙏

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