---

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

4033 ..मैं उजाले बेचती हूँ

 सादर अभिवादन..

आज फरवरी का दसवां दिन
ठीक चौदहवें दिन वसंत पंचमी है
कमाइए और गवांइए
सोचिए ऐसा क्यों कहा....
पढ़िए कुछ रचनाएं ...
पहले पढ़िए

अज्ञात रचनाकार ..
करतब
काफी पुराने जमाने की बात है, लेकिन लगता जैसे कल की ही बात हो। हुआ यूं कि एक बार एक राजधानी नगर में एक ख़ूबसूरत सी नटी आई। उसके खेल, तमाशे, करतब एक से एक न्यारे थे। वह चुनौतीपूर्ण करतब करती थी। लोग दांतो तले उंगली दबा देते थे। वह अक्सर चैलेंज ठोकती कि उसका करतब सबसे न्यारा है, कोई करके नहीं दिखा सकता।

पूरे नगर में उसकी प्रसिद्धि फैल चुकी थी। नगर के पढ़े, लिखे, हरकारे, दलाल, भांड, मीरासी आदि के साथ साथ सामान्य जन ने भी राजा को इस विस्मयकारी नटी के बारे में बताया। उसके अदभुत करतबों और कलाकारी की प्रशंसा के पुल बाँध दिए। सुनकर राजा की उत्सुकता बढ़ गई उसने नटी के करतब देखने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। उसने सोचा, इतनी प्रशंसा हो रही है तो इसकी विचित्र कला अवश्य अद्वितीय होगी। 

राजा ने उसे राजदरबार में खेल के लिए आमंत्रित किया। नटी भी राजदरबार का आमंत्रण पा हरखगैली होकर पहुँच गई। राजा ने कहा, 
"तुम्हारे बारे में बहुत सुना है, आओ, दिखाओ अपने करतब और कलाकारी।" प्रशंसा के दर्प से चूर नटी ने कहा, "यदि मैंने आपको प्रसन्न कर दिया तो आप क्या देंगे?", "यदि वास्तव में तुमने हमें प्रसन्न कर दिया तो मुंह माँगा ईनाम दूंगा।", राजा ने उत्साह से कहा। नटी त्वरित बोली, "वचन याद रखना राजा!" और उसने करतब प्रदर्शन शुरू किया।

करतब तो वास्तव में अद्भुत थे। अभिन्न, आज तक राजा ने न देखे थे। राजा प्रसन्न हुए। नटी ने खेल का समापन करते हुए राजा को वचन याद दिलाया। राजा ने कहा, "माँग, जो भी मांगे देता हूँ।" नटी छूटते ही बोली, "मुझे आपके राजसिंहासन पर बैठ के हगना है।" 

राजा आवाक! उसने कहा, "सोना, चांदी, हीरे, जवाहर, या भूमि, जो चाहे मांग ले। पर यह क्या मांग रही हो!!" नटी को तो बस राजसिहांसन का अपमान करना था, उसने हठ पकड़ ली। असहाय से राजा ने मायूस नजरों से प्रधानमंत्री की ओर देखा। प्रधानमंत्री ने आँखों से राजा को भरोसा दिलाया और राजा के कान में कुछ कहा। राजा के चहरे पर संतोष उभर आया। 

राजा ने नटी से मुखातिब होकर कहा, "ठीक है तुम्हारी मांग मंजूर। तुम राजसिंहासन पर बैठ के हग सकती हो। किन्तु मांग के अनुसार तुम्हे केवल हगना है, मूतना नहीं। राजसिहांसन पर अगर मूत्र की एक बूँद भी पड़ी तो, तुम्हे सौ कौड़े लगवाकर, फिर फांसी दी जाएगी।
इतना सुनते ही नटी राजदरबार से भाग खड़ी हुई।


जिसको जितना चाहिए ले लो ।
भर लो उजाला अपने घर में
मिटा दो अंधेरा जड़ से ।
आज मिल रहा है सस्ते में
कौन जाने कल मिले न मिले
आज कोई कमी नहीं है ।
अपना घर भी भर लो
उजालों से और अपने
पड़ोसियों का भी ।



यहाँ पर जो सुंकू है वो कहाँ है भव्य महलों में
ये संगम है यहाँ तम्बू लगाकर देखिए साहब

हथेली पर उतर आयेंगे ये संगम की लहरों से
मोहब्बत से परिंदो को बुलाकर देखिए साहब




आज बस
कल फिर कुछ
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. अज्ञात रचनाकार की कहानी शिक्षाप्रद थी, बाकी सभी रचनाएं भी शानदार है, सादर नमस्कार दी🙏

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।