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शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

4032...मैं ही क्यों, तुम भी तो अकेले हो...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शनिवारीय अंक में पढ़िए पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

७५६.ओ मेरे आँगन के नीम

ओ मेरे आँगन के नीम,

मैं ही क्यों, तुम भी तो अकेले हो,

फ़र्क़ बस इतना है

कि तुम घर के बाहर हो.

शायरी | ख़्वाब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

नींद के खेत में  करवट  की  फ़सल आई है

और कुछ ख़्वाब नुमायां हैं बिजूका बन कर

जो मेरे अन्दर से गुजरता है

कर्नाटक का प्रसिद्ध पारंपरिक लोकनृत्य ढोलूकुनीथा

इस लोक नृत्य को उत्पत्ति भगवान शिव के भैरव तांडव नृत्य से  जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिव ने जिन राक्षसों को मारा था उनकी खाल से एक ड्रम बनाया था, जिसे उनके मुख्य भक्त राक्षसों के वध के जश्न के रूप में बजाकर खुशी मनाते हैं।

इस लोकनृत्य का प्रदर्शन 12 से 16 ढोल वादकों के समूह में किया जाता है, जिसमें पुरुष और महिला दोनों टीम इसके हिस्से हो सकते हैं।

पुंश्चली .. (३१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)

उसे इस बात का संतोष हो रहा है, कि उसके 'एफ़ एम्' चालू करने भर से .. कुछ देर पहले तक के उसके निजी ऊहापोह से ऊपजी सभी की उदासी व मायूसी .. यूँ चुटकी में ही तिरोहित हो गयी है। ये सोच कर उसके चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान .. अचानक किसी बाग़ में घुस आयी किसी तितली की तरह तारी हो गयी है।

Pitalkhora Buddhist Caves, Maharashtra

This place is also called Brazen Glen. A small stream of clear water flows in to the ravine adding to the beauty of the place. Of course the water was used by the ancient Buddhist monks residing here. Water was beautifully managed by appropriate outlets draining water from and off the caves.

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति
    ऋतु-संधि में सम्हल कर
    रहना उचित होता है
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. इस मंच पर अपनी संकलित प्रस्तुति में हमारी बतकही को भी एक स्थान प्रदान करने के लिए ... 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुति.आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. 'पीतलखोरा' शामिल करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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