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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

4028....ढूँढता हूँ पहचान अपनी...

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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रद्दी में बिकते पुस्तकों के ढेर,
पायदान होते बुद्धिजीवी;
विचारों के अवमूल्यन के
इस दौर में 
सोचती हूँ...
पात्र हूँ या दर्शक 
मैं किस भूमिका में हूँ?
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मुझे नहीं पता
क्या लिखना चाहिए
रंग-बिरंगे,विविधता पूर्ण 
क़लम की जीभ से
टपकी कल्पनाओं और यथार्थ के
मिश्रण से बनी
पाठकों के भोग लिए परोसी गयी
 मिठाइयों की
भूमिका में...।
अक़्सर सोचती हूँ
प्रकृति,प्रेम,शृंगार 
जीवन के विविध भाव एवं व्यवहार
आखिर कौन पढ़ता है?
मन के मंथन से निकले
उलझे-सुलझे विचार
जिन शोषित,वंचित की दुर्दशा पर
छाती है, पीटकर बहाते हैं, 
आँसू जार-ज़ार
उनकी दशा बदलना तो स्वप्न है मात्र
पर क्या सचमुच 
उन्हें क्या कभी छू भी पाती है
 हमारी लेखनी की पैनी धार?
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 आज की रचनाएँ-

मन का बंधन झूठ है


किसका बंधन झूठ है, किसका बंधन सांच
कौन मोह में तप रहा, किसका नाता कांच?

कौन यहां मजदूर है, कौन यहां मलिकार
कौन बिराजे राजघर, कौन सहे फटकार?

"आदमी"


तैरना मैं जानता नहीं 

भंवर में पैर रोपता हूँ मैं


ढूँढता हूँ पहचान अपनी

अनचीन्हें बोझ ढोता हूँ मैं



राम एक संविधान



सिया राम परिवार,
सुखप्रद घरबार,
नयनाभिराम अति,
आसन सजाये हैं !

राम राज अभिषेक,
प्राण-प्रतिष्ठा को देख,
शिशिर में भी भक्तों के,
जोश गरमाये हैं ।


परागकण ज्यों भंवर चूसे, मधु पिए पीनेवाला।
और और का करे क्रंदन,रिक्त होते ही प्याला।
क्षण भर विलंब भी बन जाए जहां पर ज्वाला। 
अविरत वहां मधु छलकाए देखो मेरी मधुशाला ।

व्यतीथ हृदय का एक उपाय हाला हाला हाला।
उमंग में भी मदिरालय की राह पकड़े पीनेवाला।
पूर्णिमा हो जीवन में या फिर हो चाहे अंधियारा 

पीनेवाले का हर क्षण साथ निभाए मधुशाला ।


नारी जिसके संग नहीं


मिले तरक्की रात-दिन, बने लला धनवान।
चहुंदिशि फैले कीर्ति नित, क्षण क्षण हो सम्मान।
गोरू हाॅंकति गुरु बने, चेला बेंचति तेल।
कलियुग मा सम्बन्ध की, लगी चतुर्दिक सेल।। 
जिसको दें सन्देश हम, उसे समझ में आय।
वरना दल कविता मित्रवर, उसके प्रति अन्याय।। 



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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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5 टिप्‍पणियां:

  1. रद्दी में बिकते पुस्तकों के ढेर,
    पायदान होते बुद्धिजीवी;
    बेहतरीन अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन भूमिका के लाजवाब सूत्रों का संयोजन श्वेता जी ! आभार संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु ।सस्नेह वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं
  4. लाजवाब प्रस्तुति ..सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय...
    मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु दिल से आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता !

    पर क्या सचमुच
    उन्हें क्या कभी छू भी पाती है
    हमारी लेखनी की पैनी धार?
    लिखने वाले भी पात्र या दर्शक हो सकते हैं..जिनकी कुण्ठा इन पन्नों पर उतरती हो..
    चिंतनपरक सारगर्भित भूमिका आपकी प्रस्तुति की खासियत है ।

    जवाब देंहटाएं

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