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मंगलवार, 7 नवंबर 2023

3937....हम जैसे मामूली लोग परेशान हैं...

 मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मत कर धर्म के नाम पर,
इंसानियत को शर्मिंदा बंधु।
बन रहा है क्यों भस्मासुर?
कर्मों से क्यों है दरिंदा बंधु..?
राजनैतिक खेल का हिस्सा 
मात्र तू मोहरा शतरंज का,
कोई धर्म नहीं सिखलाता
पाठ ईष्या,द्वेष और रंज का, 
सुन निहार तू प्रेम से धरा को
बन जा स्नेहिल परिंदा बंधु।



पशुओं को मारे,
और पशुता को धारे।
जटिल जिंदगानी,
इंसान हारे।
पियूष प्रकृति बूंद,
बूंद हमने पीया।
संततियों को,
बस जहर हमने दिया।


हालाँकि करता हूँ रफू ... जिस्म पे लगे घाव
फिर भी दिन है की रोज टपक जाता है ज़िन्दगी से

उम्मीद घोल के पीता हूँ हर शाम
कि बेहतर है सपने टूटने से
उम्मीद के हैंग-ओवर में रहना




यह किस तरह की खुदगर्जी 
छाई है मनुज पर,
बेटा पूछता है माँ से, 
तेरे क्या एहसान है मुझ पर?

इस खुदगर्जी में मनुज, तुम 
कितना और गिरोगे?
बुढ़ापे में छत-रोटी देकर
माँ-बाप पर एहसान करोगे ?


दोनों पक्षों की बमबारी में हजारों मासूम बच्चे और निरीह नागरिक मारे जा रहे हैं। बस्तियाँ तबाह हो रही हैं। जिन लोगों ने लाखों रूपये खर्च कर कई मंज़िल ऊँची इमारतों में अपने सपनों का आशियाना ख़रीदा था , वे इमारतें भी ज़मींदोज़ हो रही हैं। लोगों के सपनों का आशियाना उजड़ रहा है। बमों के बारूदी धुएँ से दुनिया का वायुमंडल भी प्रदूषित हो रहा है। मानवता कराह रही है। 
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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति का हृदयतल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. अप्रतिम..
    काश ऐसा होता
    मौसम के अनुरूप देश बदल लेते
    बेहतरीन। अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी हलचल है … आभार मुझे शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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