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शनिवार, 28 अक्टूबर 2023

3927...भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फ़ी लाल मिश्र जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शनिवारीय अंक में आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

दोहे शरद पूर्णिमा पर

निशि  रुपहली  साड़ी   में, थिरके सारी रात।

निशिपति भी सम्मुख  रहे, होय न कोई बात।।2।।

चाँद केलि करता रहे, रजनी  सारी  रात।

भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात।।3।।

 उसने की भूल

आज तक अपनी भूल पर कायम रही

उसी कार्य  पर अडिग रही

सब का समझाना व्यर्थ गया

जब उनका कहा नहीं माना

आगे से अब भूल नहीं होगी।

कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है..

कोई तारीफ लिखे कोई नाकामियाँ

कोई व्याकुलता कोई संतोष लिखे

कोई अमन शांति का पैगाम दे

कोई उबलते जज्बातों का आक्रोश लिखे

बैंगलुरु

बैंगलुरू की स्थापना 1537 में केम्पे गौड़ा द्वारा की गई थी. केम्पे गौड़ा यहाँ के शासक थे जो विजयनगर साम्राज्य के अधीन थे. अभिहाल की खोज के अनुसार बेगुर क़िले में एक अभिलेख मिला है जिसके अनुसार यह ज़िला 1004 ई. में गंग राजवंश का एक भाग था. इसका प्राचीन नाम बेंगा-वलोरु था. अब इसे बंगलौर, या बैंगलोर या बंगलुरु भी कहा जाता है. बड़ा महानगर है ये जिसकी आबादी लगभग एक करोड़ या उससे ज़्यादा ही होगी. इसकी ऊँचाई 920 मीटर है जिसके कारण मौसम अच्छा बना रहता है.

आसमानी बातें थीं उसकी...

पीठ पर उभरे उस स्याही के गोले का रंग लड़के की हथेलियों पर नीली लकीर बनकर उभरा जब प्रार्थना के वक़्त ड्रेस मॉनिटर ने उसे लाइन से बाहर निकाला और मास्टर जी ने हथेलियाँ आगे करने को कहा। लड़के के हाथ पर उभरी नीली लकीरें लड़की की आँख का नीला दरिया बनकर छलक पड़ी थीं। उसने कब सोचा था कि उसकी जरा सी शरारत का ये असर होगा।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


3 टिप्‍पणियां:

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