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शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

3895....प्राण का दीपक जलाओ

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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संसार में अच्छाई ,सच्चाई, करूणा और मानवता है,
यह सृष्टि में ईश की ही पहचान है।
जो मुझे रोकता,टोकता है गलत करने से,
वो ईश ही है,जो मुझ में प्रेम रूप में विद्यमान है।

ईश्वर का अस्तित्व मनुष्य की चेतना को थामे रखने के लिए बुना गया, जबतक मनुष्य के कर्म बंधे हुए हैं पाप-पुण्य,कर्मफल के तथ्यों को मानते हुए,मनुष्य में दया और प्रेम अंर्तमन की सहज ऊर्जा है जो मनुष्य को संसार के संचालन के लिए संतुलित करती है, किंतु मनुष्य के विचारों एवं व्यवहारों की निरंकुशता असहज करती है ऐसे में एक प्रश्न अक्सर उठता है मन में कि
 ईश्वरविहीन संसार में मनुष्य की नैतिक भूमिका कैसी होगी?
आजकल बौद्धिक समृद्धशाली होने की पहली शर्ते है
ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाना और क्षुद्र विश्लेषण करना...। 


आइये पढ़ते हैं आज की रचनाएँ-



समुद्र की मचलती लहरें
किनारों से मिलने
बेसुध होकर भागती हैं 
और जलतरंग की धुन
सजने संवरने लगती है

इस संधि काल में
सूरज को धकियाते
उगने लगता है चांद

अब भी समय है
आग को अपनी जलाओ।
बाट मत देखो सुबह की
प्राण का दीपक जलाओ।
  
 मत करो परवाह
 कोई क्या कहेगा
 इस तरह तो वक्त का दुश्मन
  सदा निर्भय रहेगा।


रहे साधते वीणा के स्वर

श्वास काँपती ह्रदय डोलता 
हौले-हौले सुधियाँ आतीं,
कितनी बार कदम लौटे थे 
रह-रह वे यादें धड़कातीं !

निज पैरों का लेकर सम्बल
इक ना इक दिन चढ़ना होगा,
छोड़ आश्रय जगत के मोहक 
सूने पथ पर बढ़ना होगा !



उस पल केवल,
वह बच्ची नहीं हुई थी लहूलुहान,
उस पल समस्त,
मनुष्यजाति का हुआ था अपमान।
 
क्या जग में किसी की वेदना,
नहीं जाग पायी थी ?
इसी जग के द्वारा वह लड़की गयी सतायी थी।



प्रकृति का एक अर्थ मनुष्य का स्वभाव भी है  स्वाभाविक लगनेवाला मनुष्य का बरताव एवं अन्य अदृश्य कारक सार्वजनीन जीवन में असंतुलन लाता रहता है। हाँ, यह भी कि मनुष्य का  व्यवहार और अदृश्य कारक इसे संतुलित भी करता रहता है  असंतुलन-संतुलन की मूल द्वंद्वात्मक प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। मनुष्य इस अदृश्य कारक को महसूस करता है, लेकिन इसकी व्याख्या नहीं कर सकता है  इस अदृश्य कारक की अमूर्त्त शक्ति को ईश्वर माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ईश्वर अपना उपादान और निमित्त दोनों है।

इधर मजदूर का पेट भरता, उधर कवि की कविता की भूख जाग जाती! मजदूर पेट भर खा कर चैन की नींद सोना चाहता लेकिन कविता की भूख का मारा कवि उल्लू की तरह जाग कर मजदूर से अपनी नई कविता सुनने और आज के काम का दर्द बयान करने को कहता।


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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

8 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन का सार इन दो पंक्तियों में है
    संसार में अच्छाई ,सच्चाई, करूणा और मानवता है,
    यह सृष्टि में ईश की ही पहचान है।
    सुंदर अंक,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! सुंदर भूमिका और पठनीय लिंक्स का चयन, किसी को माने चाहें न मानें, सत्य, शिव और सुंदर की पूजा सभी करते हैं।

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  3. सभी रचनाएं बहुत ही अच्छी हैं, सभी रचनाकारों को खूब बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. जवाब नहीं, इधर मजदूर का पेट भरता, उधर कवि की कविता की भूख जाग जाती।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर श्रेष्ठ और पठनीय रचनाएं!
    बहुत बधाई और शुभकामनाएं💐💐

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय श्वेता तुम्हारा विचारों में भी तुम्हारी काव्य प्रतिभा समाहित रहती है! एक बहुत ही ज्ञानवर्धक और लाजवाब भूमिका के साथ पठनीय रोचक प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई! सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ!

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