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गुरुवार, 28 सितंबर 2023

3894 ..बूँद का अभिशाप मत लो

 सादर अभिवादन

आज गुरुवार है
शायद रवीन्द्र जी भूल गए
कोई बात नहीं
रचनाएं देखें ...

छोटी भाभी को उलाहने और फटकार लगाने वाली अम्मा उनके द्बारा बनाए गए सजावट के सामानों को मुहल्ले की औरतों को दिखा रही थी।उनकी कलाकारी को देख सभी ने दाँतों तले अंँगुली दवा ली। शोकेस में करीने से रखें पेंटिंग्स को देख सभी हतप्रभ रह गई। कहा -"कसीदाकारी के ऐसे नमूने नहीं देखे।"





आँगने का दीप रोया,
चार दिन से मुँह न धोया।
आँख में कीचड़ सजोया,
चुप्पियों का ताप मत लो॥

सुन सको तो ये सुनो न,
जो लिखा है वो पढ़ो न।
या कहा उसको बुनो न,
बिन कहे का चाप मत लो॥





हम सबके प्यारे गूगल बाबा
सारे जग से न्यारे गूगल बाबा

सबको राह दिखाते गूगल बाबा
दुनिया एक सिखाते गूगल बाबा

सबकी खबर लेते गूगल बाबा
सबको खबर देते गूगल बाबा




तब देवर्षि नारद ने उन्हें धन्यवाद तो दिया किन्तु फिर भी उनके मन से वो बात गयी नहीं कि उनके पिता ने उन्हें अकारण ही श्राप दे दिया है। इसी कारण उन्होंने ब्रह्मदेव से कहा - "हे पिताश्री! आपने मुझे अकारण ही श्राप दे दिया है। आपने अपने ही पुत्रों में भेद किया है। मेरे अग्रज (सनत्कुमार) को आपने वन जाकर तप करने की आज्ञा दे दी किन्तु मेरी भी वैसी इच्छा होने पर आपने मुझे अकारण ही श्राप दिया। इसीलिए मैं भी आपको श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक आप पृथ्वी पर अपूज्य बने रहेंगे। तीन कल्पों के पश्चात ही पृथ्वी पर आपकी पूजा पुनः आरम्भ होगी।"

इस प्रकार पिता और पुत्र को एक दूसरे का श्राप भोगना पड़ा। नारद ने अनेक अधम योनियों में जन्म लिया और अंततः ब्रह्माजी के वरदान के कारण पुनः उनके पुत्र के रूप में जन्में और संसार के सभी ज्ञान को प्राप्त किया। ब्रह्मदेव को भी पृथ्वी पर ना पूजे जाने का श्राप भोगना पड़ा और यही कारण है कि आज भी उनकी पूजा बहुत ही कम की जाती है।

आज बस इतना ही
कल आएगी सखी
सादर

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर रचनाओं से सज्जित परिपूर्ण अंक। मेरी रचना की पंक्ति शीर्ष भूमिका में सजा दी आपने। इससे बड़ा पुरस्कार क्या हो सकता है। बहुत आभार और अभिनंदन। सभी साथी रचनाकारों को बहुत बधाई और शुभकामनाएं💐💐

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