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गुरुवार, 31 अगस्त 2023

3865...आधुनिकता के दौड़ में भूल गए जिन्दगी...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

आवश्यक सूचना!

दिल्ली इस समय भयंकर रूप से डेंगू बुख़ार की चपेट में हैअफ़सोस कि मीडिया में कोई चर्चा नहीं है। सुबह-शाम पार्क आदि में  घूमना निषेध करें और शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें। ग्लोय, तुलसी,लोंग का सेवन डेंगू में लाभकारी साबित हुआ है। प्रशिक्षित डॉक्टर से परामर्श लें, बुख़ार के दौरान ख़ूब पानी पिएँ।

आज भाई-बहन के पवित्र प्यार का त्योहार रक्षा बंधन है। पाँच लिंकों का आनन्द परिवार की ओर से रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।  

गुरुवारीय प्रस्तुति में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

खीर में नमक

"मठ चाहीं सभन के एही देश में ••• लेकिन वफादारी निभाई लोग परदेश में••• चाकरी के कवनों हद नईखे! गलीयन में पटटवा भी लटकावला के काम बा।"

"लघुकथा को अंग्रेजी में भी लघुकथा ही कहा जाता है"

भाई बहिन का साथ बनाया है 

जन्म जन्मान्तर तक इसे निभाना है 

रक्षा बंधन का त्यौहार है 

बहुत प्यार से इसे मनाने  में 

जो खुशी मिलाती है 

किसी और त्यौहार में नहीं |

रक्षाबंधन

कभी हो जाए जो फिर भाई से कोई प्रतिस्पर्धा,

बिना सोचे कदम अपने वो पीछे मोड़ लेती है.

बड़ी होगी बहन तो खींच लेगी कान भाई के,

मगर माँ बाप  जाएँ तो चुप्पी ओढ़ लेती है.

एक ग़ज़ल -सच का भी किरदार हो


साज, साजिन्दे, सियासत की तरह दिन में अलग

शाम को बैठेंगे सब ठुमरी सुनाने के लिए

आपसी रंजिश में पेड़ों से दहकते ये धुंए

आग का क्या काम है जंगल जलाने के लिए

गुमनाम गाँगुली बनाम वादन की गायकी

पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमेरिका, में किसी कालखण्ड के दरम्यान "जींस और गिटार" युवा विद्रोह, स्वयं की आध्यात्मिक तलाश, व्यक्तिगत जीवन शैली, रोमांच और जीवन को पूर्णता से जीने का प्रतीक बना हुआ था और आज भी कमोबेश है ही .. वो भी .. अपने वैश्विक प्रसार-विस्तार के साथ .. शायद ...युद्ध और निर्वासनअभी विश्वरंग पत्रिका का कथेतर गद्य अंक आया है। उसमें यह प्रस्तुति भी प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए। मैं युद्ध और निर्वासन पर अपनी बात कुछ कवियों, उनकी कविताओं और एक कहानी के हवाले से रखने की कोशिश करूंगा। कवि अलग-अलग काल और अलग-अलग जगहों के हैं। युद्ध पर कवियों ने लिखा है। सैनिकों ने भी लिखा है - कवि जो सेना में गए और सैनिक जो कविता लिखने को विवश हुए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक कविता संग्रह छपा (Poems of This warराखी के धागे....

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 30 अगस्त 2023

3865.. अनमोल रिश्ते..

 ।। प्रातः वंदन।।


प्राची का तेजस्वी दिनकर

चढ़कर नभ के अरुणिम विमान

पर; भर देगा भूमण्डल में

नव-नव सुन्दर स्वर्णिम विहान !

तब एक बार इस अखिल विश्व

में होगी फिर भीषण हलचल।

पौरुष प्रसुप्त मानव का उठ

जागृत होगा कर कोलाहल !

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार के साथ,एक बार फिर शब्दों के सागर में डूबते हुए ..लिजिए आज की पेशकश में शामिल हैं..✍️

सोशल मीडिया की भेड़चाल से बचने की आवश्यकता

वर्ष 2021 का समय था जबकि खबर आई थी कि दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रसिद्द सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक को Meta (मेटा) के नाम से जाना जाएगा. इस नाम परिवर्तन पर कम्पनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने बताया कि हम इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक ही सीमित नहीं रखना चाहते हैं. अब जो हम करने जा रहे हैं, उसके लिए नए..

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फरमाईश

दरिया, इक ठहरा सा मैं, चंचल हो, उतने ही तुम! है इक, चुप सा पसरा, झंकृत हो उठता, वो सारा पल गुजरा, सन्नाटों से, अब कैसी फरमाईश, शेष कहां, कोई गुंजाइश! समय, कोई

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पुराना नोट

मैं एक फटा-पुराना नोट हूँ, 

किसी को अच्छा नहीं लगता,

पर कोई फेंकता भी नहीं, 

सब जानते हैं मेरी क़ीमत..

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सखी-सहेलियों जैसे रिश्तों के लिये

सइयो नी , सइयो नी

आ दुक्खाँ दे लीड़े धो लइये

कुझ कह लइये , कुझ सुन लइये

तेरे वेहड़े धुप्प ही धुप्प

मेरे वेहड़े छाँ कोई ना ..

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प्यार स्वतः ही उपजता

किसी के प्यार की तुमने

कोई कीमत नहीं समाझी

यह होता अनमोल

किसी से तुलना नहीं उसकी |

जब से सोचा प्यार किसे कहे ..

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️



मंगलवार, 29 अगस्त 2023

3864 ...आज सिक्का पर हमारा चमकता है

 सादर अभिवादन

ये प्रस्तुति सावन की अंतिम प्रस्तुति है मेरी
चांद की चांदनी बिखरी हुई है
आज भी और कल भी बिखरी रहेगी
जब तक कोई नया विषय नहीं मिल जाता
चलिए चलें रचनाओं की ओर....




कितना सच था
बचपन
सब कुछ कितना खरा सा
निक्कर की फटी जेब में
दुनिया समा जाया करती थी
कागजों में कागज लपेट
छुपा ली जाती थी
बचपन की वो मीठी सी गोली।






तुम हो खुशी मनाते पर चाॅंद अनमना है।
जो भी कहे ये दुनिया मैं मानता नहीं हूॅं,
मेरा चाॅंद खुरदुरा है यह बात ही मना है।।
सौन्दर्य का नहीं प्रिय कोई बाॅंट दूसरा है।




चाँद पर इतिहास रच वैज्ञानिकों ने,
कर लिया अधिकार अपना सर्वसम्मत।
बढ़ गई है ज्योति दृग सबके खुले,
देख हिंदुस्तान का चैतन्य अभिमत॥
यान तो जाते रहे जाते रहेंगे,
आज सिक्का पर हमारा चमकता है॥




एक सूर्य है, एक गगन है,
एक ही धरती माता,
दया करो प्रभु, एक बने सब,
सबका एक से नाता,
राधा मोहन शरणम्,
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्



सफल हुआ
मिशन चंद्रयान
गर्वित हम

हासिल हुई
अभूतपूर्व जीत
हर्षित हम


आज बस इतना ही
कल मिलिएगा पम्मी सखी से
सादर

सोमवार, 28 अगस्त 2023

3863 ..कभी पलट कर नहीं देखती नदी

 सादर अभिवादन

सावन जा रहा है और
अगस्त को भी साथ ले जा रहा है
नियति का नियम है..
जो आया है वो जाएगा ही
अब....
जीवन की किताबों पर,
बेशक नया कवर चढ़ाइये;
पर बिखरे पन्नों को,
पहले प्यार से चिपकाइये !!

रचनाएं भी देखें




कभी पलट कर नहीं देखती नदी,
सब कुछ बहा ले जाती नदी ।
फिर हम क्यों पालें मनमुटाव
करें अपनों से ही दुराव-छिपाव ?
क्यों रोकें बहती नदी का बहाव
और खेते रहें टूटी हुई नाव ?
क्योंकि समय नहीं करता लिहाज ।




नवल रूप है प्यारा प्यारा
जब देखो अनोखा दिखता
आकर्षण है गजब का
मन भूल नहीं पाता |



अब दूर हुआ सब गम,
हम हैं न किसी से कम,
भारत का मान बढ़ा
जनता को जगाएं हम;
दीवाली मना कर के
अंधियारी हटानी है,
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।




लकीर की फकीर
चलती चुपचाप,
बिना प्रश्न, सिर झुकाए
एक दायरे में रहती
लक्ष्मण रेखा के भीतर
जीती एक आम सी जिंदगी



वैदिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ एक सामान्य और गुण आधारित संज्ञा थी। जन्मना जातिवाद के आरंभ होने के बाद, जातिगत आधार पर जो ऊंच-नीच का व्यवहार शुरू हुआ, उसके कारण ‘शूद्र’ नाम के अर्थ का अपकर्ष होकर वह हीनार्थ में रूढ़ हो गया। आज भी हीनार्थ में प्रयुक्त होता है। इसी कारण हमें यह भ्रांति होती है कि मनु की प्राचीन वर्ण व्यवस्था में भी यह हीनार्थ में प्रयुक्त होता था, जबकि ऐसा नहीं था। इस तथ्य का निर्णय ‘शूद्र’ शद की व्याकरणिक रचना से हो जाता है। उस पर एक बार पुनः विस्तृत विचार किया जाता है।




"पता नहीं सा'ब। 
आप अख़बार नहीं पढ़ते क्या? 
मुख्यमंत्री जी उन के साथ कोई मीटिंग-वीटिंग तो करते रहते हैं। 
अब आप खाली-पीली में तंग मत करो, वरना हम आप को भी टपका देंगे।"
... और मैंने अपनी कार की रफ़्तार बढ़ा दी।

आज बस इतना ही
सादर

रविवार, 27 अगस्त 2023

3862......चन्द्रमा के बाद सूरज, शुक्र, मंगल यान अब,

जय मां हाटेशवरी......
उपस्थित हूं......
आज के लिये अपनी पसंद लेकर....

चन्द्रयान 3


चन्द्रमा के बाद सूरज, शुक्र, मंगल यान अब,
पथ सकल ब्रह्माण्ड का सुखमय ही सारा हो गया.
कुछ कड़ी मेहनत सफलता लक्ष्य मंगल कामनाएँ,
हो नहीं पाया था जो पहले दुबारा हो गया.

नई इबारतें !
जंग लगी कलमों की
स्याही भी सूखने लगी हैं ।
कुछ नया , नये जमाने का लेकर फिर से 
दस्तूर तो निभा लें हम।

रामटेक, श्रीराम को समर्पित क्षेत्र
विवरण वाल्मीकि रामायण तथा पद्मपुराण में भी उल्लेखित है ! यह जगह श्री राम के वनवास काल से जुड़ी हुई है ! दंडकारण्य से पंचवटी की यात्रा के दौरान प्रभु राम,
सीताजी तथा लक्ष्मण जी ने बरसात के मौसम के चार माह यहीं टिक कर गुजारे थे ! इसीलिए इस जगह का नाम ''रामटेक'' पड़ गया ! उसी दौरान माता सीता ने यहीं अपनी पहली
रसोई बना ऋषि-मुनियों को भोजन करवाया था ! इसके अलावा यही वह जगह है जहां प्रभु राम की भेंट अगस्त्य ऋषि से हुई थी और उन्होंने श्री राम को ब्रह्मास्त्र प्रदान
किया था, जिससे रावण की मृत्यु संभव हो सकी !

हाइकू
कैसे भूलती
जिसे ना भूली कभी
पल भर को

जगत और तन
मन के आकाश में 
बन जाये तन यदि चेतन 
तो एक हो जाता है मन से 
ओए शेष रह जाती है ऊर्जा अपार 
जो  बिखर  जाती है बन आनंद
जगत में !

 

धन्यवाद।

शनिवार, 26 अगस्त 2023

3861... मीरास

मीरास : अरबी [संज्ञा स्त्रीलिंग] शब्द; जिसका अर्थ बपौती, वह धन संपत्ति जो किसी के मरने पर उसके उत्तराधिकारी को मिले वंश-परंपरा के गुजारे के लिए.... प्रयोग के आधार पर ये शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट कर सकते हैं....

निंदोपाख्यान

"राग दरबारी साध रहे हो या भांड दरबारी हो रखा है•••!"

'साहबे मीरास' थे पहले कभी,

आजकल 'भांड' होते जा रहे हैं।

 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो... 

बपौती

नैन साहब - पहले तमाम अखबारों में चित्रों के लिए भरपूर जगह रहती थी लेकिन अब अखबारों में वैसे चित्र नहीं छपते। चित्रों को अधिकाधिक स्थान देने वाली तमाम पत्रिकाएँ कभी की बंद हो गई। मोबाइल में कैमरे आने के बाद कला छायांकन का काम संकट में पड़ गया है। मोबाइल फोटोग्राफी के अनियंत्रित विस्तार ने उत्कृष्ट एवं कलात्मक छायांकन को एक बारगी ही हाशिये पर धकेल दिया है। अब कला मिशन न होकर व्यवसाय बन गई है किंतु मेरी दृष्टि में कला व्यवसाय की वस्तु नहीं है। दरअसल यह हमारी सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आत्मिक सुख के लिए है।

मीरास

वे तल्ख लहजे में कहती हैं कि अगर भाई उनसे रिश्ता खत्म करना चाहते हैं, बेशक खत्म कर लें. ऐसे भाई किस काम के, जो अपनी बहनों का हक छीनकर चैन-सुकून की जिन्दगी बसर करते हैं. बहनों को तिहाई देने के मसले पर इनके भाइयों का कहना है कि वालिद की मौत के बाद उन्होंने अपनी बहनों की शादी की है. इसलिए अब तिहाई देने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. इन चार बहनों जैसी न जाने कितनी ही बहन-बेटियां हैं, जिन्हें उनके हक से महरूम रखा गया है.

मीरास

इतिहासविद् डॉ. रहीस सिंह अपनी पुस्तक मध्यकालीन भारत में लिखते हैं कि “मध्यकालीन दक्कन की मीरासी व्यवस्था भूमि-व्यवस्था में सबसे प्रमुख और प्रथम श्रेणी की थी । यह कृषक स्वामित्व की व्यवस्था थी । भू-व्यवस्था के तहत मीरास का तात्पर्य उस भूमि से है जिस पर व्यक्ति का एकछत्र पुश्तैनी अदिका हो । मराठी दस्तावेजों में इसका प्रयोग ऐसे किसी पुश्तैनी और हस्तान्तरित अधिकार के लिए किया गया है जिसे व्यक्ति ने उत्तराधिकार में खरीदकर या उपहार द्वारा प्राप्त किया हो।”

मीरास

इस लिए मृतक की बेटी मृतक की माँ की तुलना में उसकी विरासत में अधिक भाग पाती है हालांकि दोनों ही स्त्री हैं। इसी तरह मृतक की बेटी मृतक के बाप की तुलना में अधिक हिस्सा पाएगी भले ही लड़की अभी इतनी छोटी हो कि दूध पीती है और अपने बाप को भी पहचानने की आयु को न पहुंची हो यहाँ तक कि अगर मृतक के धनदौलत बनाने में उसके बाप की सहायता भी शामिल रही हो तब भी मृतक के बाप को मृतक की बेटी की तुलना में कम भाग ही मिलेगा। केवल यही नहीं बल्कि उस समय अकेले बेटी आधा धन लेगी।

मीरास

इस बेना पर ज़्यादा तर मरहलों में मर्द ख़र्च करने वाला और औरत इख़राजात लेने वाली होती है, इसी वजह से इस्लाम ने मर्द मर्द के हिस्से को औरत की ब निस्बत दो गुना क़रार दिया है ता कि तआदुल बर क़रार रहे और अगर औरत की मीरास, मर्द की मीरास से आधी हो तो यह ऐने अदालत है और इस मक़ाम पर मुसावी होना मर्द के ह़ुक़ूक़ पर ज़ुल्म हैं। इसी बेना पर हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम ने फ़रमाया:माँ बाप और औलाद के इख़राजात मर्द पर वाजिब हैं।

मीरास



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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

3860.....चंदामामा पास के

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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चाँद बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का एकमात्र ऐसा साथी होता है जो अंधेरे की चादर पर चाँदनी के धागों से  सपनों की ज़रदोज़ी कर नींद और ख़्वाबों को ख़ूबसूरत बनाता है।
रहस्यमयी चाँद की मिट्टी पर पाँव रखना,उसको छू-छूकर,उसके अनदेखी,अनजानी कहानियों को परखना  सचमुच कितना रोमांचकारी एहसास है न।

चाँद मेरी कल्पनाओं का सबसे खूबसूरत एहसास रहा है
सोच रही हूँ मानव की इस उपलब्धि पर चाँद को कैसा महसूस हो रहा होगा...

मानवों की पदचाप की आहट से 
जोर से सिहरा होगा चाँद,
मशीनी शोर , घरघराहट से 
दो पल तो ठहरा होगा चाँद...।
सदियों से शांति से सोया,
मौन भंग से उद्वेलित तो होगा
रहस्यों के उजागर होने के भय से
भीतर ही भीतर आंदोलित तो होगा
अब न कोई कविता या गज़ल बनेगी
 न किसी मिसरा में होगा चाँद
 रूखी सतह के ठंडे, गर्म विश्लेषण में
 आंकड़ों की किताब के हाशिये में
बस संख्याओं में पसरा होगा चाँद...।

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आइये आज की रचनाओं की दुनिया में-
चाँद के मन की बात एक संवेदनशील कोमल
कवि मन समझ सकता है और उसे सुंदर शब्द
देकर ऐतिहासिक पलों को अविस्मरणीय बना सकता है।
अब चंदा मामा दूर के तो रहे नहीं हैं

अपने दुःख को छुपाते हुए 
हल्का सा मुस्कुराते हुए 
बोला था चाँद -
अभी तक दूर से 
मैं कितना चमकता था , 
बच्चे मेरे नाम की लोरियाँ सुन 
माँ के आँचल में सो जाते थे 
मेरी सुंदरता के गीत गाते हुए 
न जाने कितने ही कवि द्वारा
आकाश  पाताल एक किये जाते थे 
युवतियाँ चंद्रमा सा सुंदर दिखने के लिए 
न जाने क्या क्या युक्ति किया करती थीं 
स्त्रियाँ न जाने किस किस रूप में 
मेरी  पूजा किया करतीं थीं ।
सब कुछ आ कर इस चंद्र यान  ने 
कर दिया है छिन्न भिन्न 
इसी लिए बस हो रहा है 
मेरा मन खिन्न । 


महत्वपूर्ण ये नहीं है, कि वास्तविकता क्या है… बल्कि, महत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं….!!


बारह मंजिला खिड़की से गिरा दी गई या नशे में गिर गई, सीढ़ी से पैर फिसला या गला दबाने के बाद फेंक दी गई, कुल्हाड़ी से या हथौड़े से मारी गयी•••!


मिशन चंद्रयान के कामयाबी की खुशी में रक्षा सूत्र लिए भाई की राह ताकती बहन की व्यथा सुनना मत भुलिएगा...

मार्मिक अभिव्यक्ति

गाँव छोड़ शहर तू बसा है
बिन तेरे घर सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का है सपना
नाती-पोतों को जी भरके देखना
लाना संग हसरत पूरी करना
राह ताकती लाड़ली बहना
अबकी राखी में गांव मेरे आना भैया
गांव मेरे आना

नर्म,मुलायम, कोमल भाव जो चाँद और भारतीयों के बीच अनूठा बंधन स्थापित करता है जिसका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया जा सकता।
देश की उम्मीदों का चाँद
वो चाँद जो सपनों का बादशाह बना बैठा था, जो हमारी प्रतीक्षाओं के मजे लिया करता था, वो जिसकी मखमली चाँदनी में बैठ हमने ख्वाबों के अनगिनत महल बनाए और उनमें उसी की दूधिया रोशनी भर कुछ मुस्कानें अपने नाम कर लीं, वो चाँद हमारे विक्रम बाबू और छुटके प्रज्ञान को देख चौंका तो जरूर होगा! उसे कहाँ पता कि जिनकी उम्मीदों की झोली वो सदियों से भरता रहा, आज उसी देश से कोई अपने इस बचपन के साथी के गले लग उसकी तमाम तस्वीरें खींचना चाहता है। वो जानना चाहता है कि "तुम्हारे पास पानी-वानी तो है न! कहो तो हम आ जाएं, तुम्हारा घर संभालने


भावनाओं की लताओं का विस्तार भूमि पर होगा या किसी हरे तने या ठूँठ पर यह पूर्णतया निर्भर  है उन परिस्थितियों पर जिनपर बेहिचक उस समय लताओं की नर्म टहनियाँ पसर सके...
भावपूर्ण गहन अभिव्यक्ति जो मन को स्पर्श करती है-
चंद स्पंदन की 
अनसुनी आहटें,
पनपा जाती हैं
क्षणांश में
हौले से
एक कोमल 
अर्थपूर्ण अंकुरण
अंजाना अपनापन का
मन में,


सच तो किसी से छुपा नहीं रह सकता है पत्थर पर 
चाहे कोई भी अपना नाम लिखना चाहे जरूरी नहीं कि उससे आसमान में सुराख़ हो ही जाए...
कल जब करोड़ों पत्थर आसमान की तरफ जा रहे थे
हर किसी के ख़्वाब में होते हुए छेद महसूस किये जा रहे थे
कोई छेद की ओट में बैठा धुआं बना रहा था
किसी एक पत्थर पर छपा ले जाए खुद का नाम योजना बना रहा था
आसमान मुस्कुरा रहा था


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 आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।


गुरुवार, 24 अगस्त 2023

3859...एक दिन चाँद पर बनेगी मानव बस्ती...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

चित्र साभार: गूगल 

       23 अगस्त 2023 अब भारत के इतिहास की गौरवमयी गाथा कहनेवाली तिथि बन गई है क्योंकि 14 जुलाई 2023 को भारत की धरती से चाँद की ओर चला चन्द्रयान-3 अब चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित उत्तर गया है। भारतीय नागरिकों और भारत के शुभचिंतकों के बीच इस ख़बर ने भारी रोमांच पैदा किया है। इसरो के वैज्ञानिकों व समस्त स्टाफ़ ने अपने अथक परिश्रम से दुनिया में भारतीय प्रतिभा का परचम लहरा दिया है। आज भारतवासी गर्व से गदगद हैं चंद्रयान-3 के ज़रिये कीर्तिमान स्थापित होने पर। रूस,अमेरिका,भारत और चीन अब तक चाँद पर अपनी-अपनी तकनीकी सफलताओं के ज़रिये इतिहास रचने में सफल हुए हैं। इसरो के वैज्ञानिकों व स्टाफ़ के साथ समस्त देशवासियों को इस सफलता पर पाँच लिंकों का आनन्द परिवार की ओर दे ढेर सारी बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ।

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अब गुरुवारीय अंक की पाँच पसंदीदा रचनाएँ पढ़िए-

चन्द्रयान तीन

एक दिन चाँद पर बनेगी मानव बस्ती

उसकी बुनियाद शायद आज ही रखी जाये

पानी है या नहीं वहाँ

इसकी पड़ताल की जाये

विक्रम भारत का है

भारत सबका है

पाती

प्रेम की ही स्याही थी

कलम भी प्रेम की...

शब्दों को प्रेम रस में

डुबो -डुबो कर

बड़े जतन से

उस कागज पर

सजाया था

 बारिश की उम्मीद

मौसम की उमंग हो

ओस की वह बूंद

अब तक

सहेज रखी है मैंने

तुम्हारे भीतर

अपने भीतर

अति आत्मविश्वास

टूट जाते हैं खुद

तोड़ देते हैं औरों को भी।

पर टूटने नहीं देते

इस घमंड को ,

इस अति आत्मविश्वास को!

#चांद पर कदम 

आशाओं की नई किरण,

संभावनाओं की नई जंग,

नया उत्सव और उमंग,

चांद पर कदम।

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव