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गुरुवार, 31 अगस्त 2023

3865...आधुनिकता के दौड़ में भूल गए जिन्दगी...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

आवश्यक सूचना!

दिल्ली इस समय भयंकर रूप से डेंगू बुख़ार की चपेट में हैअफ़सोस कि मीडिया में कोई चर्चा नहीं है। सुबह-शाम पार्क आदि में  घूमना निषेध करें और शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें। ग्लोय, तुलसी,लोंग का सेवन डेंगू में लाभकारी साबित हुआ है। प्रशिक्षित डॉक्टर से परामर्श लें, बुख़ार के दौरान ख़ूब पानी पिएँ।

आज भाई-बहन के पवित्र प्यार का त्योहार रक्षा बंधन है। पाँच लिंकों का आनन्द परिवार की ओर से रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।  

गुरुवारीय प्रस्तुति में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

खीर में नमक

"मठ चाहीं सभन के एही देश में ••• लेकिन वफादारी निभाई लोग परदेश में••• चाकरी के कवनों हद नईखे! गलीयन में पटटवा भी लटकावला के काम बा।"

"लघुकथा को अंग्रेजी में भी लघुकथा ही कहा जाता है"

भाई बहिन का साथ बनाया है 

जन्म जन्मान्तर तक इसे निभाना है 

रक्षा बंधन का त्यौहार है 

बहुत प्यार से इसे मनाने  में 

जो खुशी मिलाती है 

किसी और त्यौहार में नहीं |

रक्षाबंधन

कभी हो जाए जो फिर भाई से कोई प्रतिस्पर्धा,

बिना सोचे कदम अपने वो पीछे मोड़ लेती है.

बड़ी होगी बहन तो खींच लेगी कान भाई के,

मगर माँ बाप  जाएँ तो चुप्पी ओढ़ लेती है.

एक ग़ज़ल -सच का भी किरदार हो


साज, साजिन्दे, सियासत की तरह दिन में अलग

शाम को बैठेंगे सब ठुमरी सुनाने के लिए

आपसी रंजिश में पेड़ों से दहकते ये धुंए

आग का क्या काम है जंगल जलाने के लिए

गुमनाम गाँगुली बनाम वादन की गायकी

पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमेरिका, में किसी कालखण्ड के दरम्यान "जींस और गिटार" युवा विद्रोह, स्वयं की आध्यात्मिक तलाश, व्यक्तिगत जीवन शैली, रोमांच और जीवन को पूर्णता से जीने का प्रतीक बना हुआ था और आज भी कमोबेश है ही .. वो भी .. अपने वैश्विक प्रसार-विस्तार के साथ .. शायद ...युद्ध और निर्वासनअभी विश्वरंग पत्रिका का कथेतर गद्य अंक आया है। उसमें यह प्रस्तुति भी प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए। मैं युद्ध और निर्वासन पर अपनी बात कुछ कवियों, उनकी कविताओं और एक कहानी के हवाले से रखने की कोशिश करूंगा। कवि अलग-अलग काल और अलग-अलग जगहों के हैं। युद्ध पर कवियों ने लिखा है। सैनिकों ने भी लिखा है - कवि जो सेना में गए और सैनिक जो कविता लिखने को विवश हुए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक कविता संग्रह छपा (Poems of This warराखी के धागे....

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    सावन रवाना हुआ
    शरदागमन की शुभकामनाएं
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में चिपकाने के लिए .. केवल डेंगू ही नहीं, 'आई फ्लू' भी और केवल दिल्ली में ही नहीं, वरन् उत्तराखण्ड में भी अपना-अपना प्यार बाँट रहा है .. परिवार का परिवार, मुहल्ला का मुहल्ला इसकी चपेट में है .. शायद ...
    जाने-अंजाने में ही सही आप अपनी प्रस्तुति के शुरुआत में खीर बनाते-बनाते .. अंत में "गिटार" और "युद्ध" की खिचड़ी परोस दिए ..शायद ... 😂😀

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभकामनाएं

    बहुत सुंदर सूत्र संयोजन

    सादर

    जवाब देंहटाएं

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