नमक छिड़कते हैं कुछ लोग घाव पर अक्सर,
कहीं वो खुद से न पट्टी उतार बैठा हो.
यकीं नहीं तो यकीनन भरम रहेगा उसे,
भले ही पास में परवर-दिगार बैठा हो,
गरीब हो के कहीं माल-दार बैठा हो.
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
नमक छिड़कते हैं कुछ लोग घाव पर अक्सर,
कहीं वो खुद से न पट्टी उतार बैठा हो.
यकीं नहीं तो यकीनन भरम रहेगा उसे,
भले ही पास में परवर-दिगार बैठा हो,
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. किसी गम्भीर विषय वाली अपनी भूमिका और तदनुसार प्रतिष्ठित रचनाकारों के मध्य हमारी बतकही को स्थान प्रदान करने के लिए .. आज भूमिका के अंतर्गत उठाए गये प्रश्न या विषय कोई नया तो नहीं है वैसे .. इस तरह की सोशल मीडिया पर चिपकी तमाम प्रतिक्रियाएँ ठीक श्मशान या क़ब्रिस्तान से तत्काल बाहर आयी बोझिल मन लिए भीड़-सी ही है, जो तदोपरान्त अपनी दिनचर्या की हड़बौंग में गुम हो जाता है .. इन प्रकार की घटनाओं से हर राज्य, शहर, गाँव, मुहल्ला, कॉलोनियां, देश, विदेश .. कमोबेश समस्त विश्व जूझता आया है, जूझ रहा और .. शायद ... आगे भी ... तमाम तथाकथित पौराणिक कथाओं, महाभारत, रामायण में नारी शोषण आम है। लोगबाग पक्षपात वाली मानसिकता लिए एक राज्य विशेष की घटना पर हायतौबा मचाए हुए दिख रहे हैं, पर अन्य कई राज्यों में इससे भी घृणित कुकर्म पर मुँह पर 'सेलोटेप' साट कर मूक-बहरे और धृतराष्ट्र बने बैठे अपनी दिनचर्या में मशगूल हुए दिखते हैं .. वाह री !!! महान और दोहरी मानसिकता ... इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के समाज की ...
जवाब देंहटाएंप्रसंगवश .. चार-पाँच दशक पहले जिन दिनों समाज में गर्भपात आज की तरह आसान नहीं था, तब शहर-गाँव की दीवारों पर इसके लिए एक विज्ञापन पृष्टभूमि के गहरे-हल्के रंगानुसार गेरुए या सफ़ेद रंग से लिखे हुए आम नज़र आते थे - "वरदान जब बन जाए अभिशाप" .. ठीक इसी विज्ञापन की तरह हम प्रकृति प्रदत महिलाओं को मिली सौगातों को वर्षों से अभिशाप बनाते आ रहे हैं .. इसके विरोध में चंद पंक्तियाँ लिख कर हम स्वयं कलंक मुक्त होने की ढोंग नहीं रचा सकते .. क्योंकि हम भी इसी कलुषित समाज के एक लिजलिजे अंश- अंग हैं .. शायद ... हम ही तथाकथित कर्ण जैसे उपजे पात्रों को महिमामंडन करने में नहीं चूकते हैं .. और नाज़ायज होने पर बिदकते भी हैं .. शर्मिन्दा तो हमें अपने आप पर होना चाहिए कि आज युगों बाद भी हमारी बुद्धिमता बस .. और बस सोशल मीडिया की दीवारों में क़ैद हो कर सिसक रही है और आज युगों बाद भी सूरज और भी मुखर हो कर अनगिनत कुन्तियों को रौंद रहा है .. बस देर किस बात की .. आइये नए कर्णों के स्वागत की तैयारी करें .. बस यूँ ही ...
गौरवशाली देश हमारा,
जवाब देंहटाएंझूठ यह हर दिन दोहराता है।
नारी जननी ,पूजनीय देवी,
कह-कहकर बरगलाता है।
शानदार अंक
आभार
सादर
वीडियो प्रसारित नहीं होता तो कितनों का खून उबलता•••
जवाब देंहटाएंघटना तीन महीने पुरानी है•••
ज्वलंत प्रश्न है पुलिस की भूमिका क्यों ऐसी रही•••
बहुत सारे सवाल हैं•••
महिलाओं की स्थिति दयनीय ही है आरंभ से..... आलेख को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर
जवाब देंहटाएंघृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर,
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर। //
हैरानी और परेशानी से कहीं ज्यादा है भुगतभोगी स्त्रियों का दर्द।नर पिशाचों के हाथों नुचती स्त्री देह और मौन भीड तंत्र! लानत है उन आँखों पर जो ये दृश्य देख कर झुकी नहीं और धिक्कार है उन बाहों पर जो भीड़ से नोची जा रही इन निरीह औरतों की रक्षा ना कर पाई।
सभी रचनाएँ अच्छी लगी पर भूमिका ने निशब्द कर
दिया 😔😔😔
सार्थक और सामयिक भूमिका के साथ सशक्त प्रस्तुति🙏
जवाब देंहटाएंइस दरिंदगी इस कृत्य पर भाव स्तब्ध, हृदय दुखी तथा शर्मसार हैं , क्या हमारी सभ्यता संस्कृति इतनी नीचे गिर चुकी है
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