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गुरुवार, 20 जुलाई 2023

3824...पाने मोटा माल,दिखाते फिर से एका...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता सुधीर 'आख्या' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

आत्मा का फूल

जिसे पकड़ा है 

वह छूट जाता है 

जिसे छोड़ना चाहा 

वह बना रहता है मन में 

इन असुरों का अंत किए बिना 

प्रेम का राज्य नहीं मिलता 

और प्रेम के बिना

आत्मा का फूल नहीं खिलता! 

एकता

रँगते अपनी खाल,लिए भारत का ठेका।

पाने मोटा माल,दिखाते फिर से एका।।

पुरानी यादें 

पढ़िए एक पूर्व प्रकाशित रचना-

"संविदा कर्मियों का दर्द" @"गरिमा लखनवी


परमानेंट मौज ले रहे, 
काम अपना थोप कर
संविदा कर्मी पिस रहे 
परमानेंट की धौंस पर

उधेड़बुन

खेत-गड्ढे-ताल फूलकर गुप्पा हो रहे थे। उनके पपड़ी पड़े होठों पर प्रसाधन के लेप चढ़ गये थे तो नदी के शरीर में कुछ ज्यादा ही चिकनाहट दिखने लगी थी। एक दूसरे को कनखियों से देखकर मुस्करा रहे थे। मेघ के परिग्रह में उतावलापन को देख मेड़-तट चिन्ताग्रस्त हो रहे थे। उनके किनारे-किनारे बसे घरों के बुजुर्ग-बच्चे मस्ती कर रहे थे। 


ज्ञान तीन तरह से प्राप्त किया जा सकता है

ज्ञान तीन तरह से प्राप्त किया जा सकता है,
पहला मनन से जो सर्वश्रेष्ठ है,
दूसरा अनुसरण से जो सबसे आसान है,
तीसरा अनुभव से जो कि कड़वा हैं.
*****
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 



 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! एक नया दिन और कुछ नयी सराहनीय रचनाएँ, बहुत बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं

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