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शनिवार, 15 जुलाई 2023

3819... गाँव

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

हरेला बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का उपयोग किया जाता है, इसमें कुछ जगह घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर टोकरी में जमा लेते हैं और फिर अनाज डालकर उसे सींचा जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते है। हरेला को घर या देवस्थान पर भी बोया जाता है। घर में इसे मंदिर के पास रखकर 9 दिन तक देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन घर के बुजुर्ग इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवताओं को समर्पित करते हैं।

उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हरेला पर्व से होती है, इस दिन शिव की पूजा के साथ हरेला काटने की परंपरा है. मान्यता है हरेला को देखकर ये बताया जा सकता है कि इस साल फसल कैसी होगी।

मत मारो गोलियों से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, 

मेरी मौत की वजह यही है कि मैं पेशे से एक किसान हूँ

चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें

चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को

-अदम गोंडवी

नैनों में था रास्ता, हृदय में था गाँव

हुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पाँव

-निदा फ़ाज़ली

एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर हैं,

पसलियों से लग गयी हैं आंतें, खेत अभी भी बंजर हैं

ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमको

गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं

-बेदिल हैदरी

जो मेरे गाँव के खेतों में भूख उगने लगी

मेरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली

-आरिफ़ शफ़ीक़

सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में 

मगर आँगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गाँव लाता है 

-अज्ञात

किसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं,

बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैं

खींच लाता है गाँव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,

लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद

-डॉ सुलक्षणा अहलावत

वो जो पिछले साल सब खेतों को सोना दे गया

अब के वो तूफ़ान किस किस का मकाँ ले जाएगा

-क़मर जलालाबादी

शहरों में कहाँ मिलता है वो सुकून जो गाँव में था,

जो माँ की गोदी और नीम पीपल की छाँव में था

-डॉ सुलक्षणा अहलावत

यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं

ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं

-अदम गोंडवी

आप आएं तो कभी गाँव की चौपालों में

मैं रहूँ या न रहूँ, भूख मेजबां होगी

-अदम गोंडवी 

चीनी नहीं है घर में, लो, मेहमान आ गये

मंहगाई की भट्ठी पे शराफत उबाल दो

-अदम गोंडवी 

घर के ठंडे चूल्हे पर खाली पतीली है

बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है

-अदम गोंडवी 

मेरे ख़तों को जलाने से कुछ नहीं होगा

हवा में राख उड़ाने से कुछ नहीं होगा

- सीमा शर्मा मेरठी

गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा 

एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा 

- असअ'द बदायुनी

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पुनः भेंट होगी...
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5 टिप्‍पणियां:

  1. सदाबहार प्रस्तुति
    आभार
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
  2. जी दी,
    हरेला के विषय में सुने तो हैं पर विस्तार से जानते नहीं थे। आभार।
    इतनी रचनात्मक और शानदार प्रस्तुति बनाने के लिए बधाई । एक से बढ़कर एक शाइरी और उसमें छुपी रचनाएँ।समसामयिक बहुत बढ़िया अंक।
    सस्नेह प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात है प्रिय दीदी।शानदार अंक।गाँव से हूँ तो गाँव शब्द सुनते ही ठिठक जाती हूँ।हालांकि मेरा गाँव हरियाणा के सबसे प्रगतिशील जिले पंचकूला में आता है और एक कस्बे सरीखा है,पर गाँव की सुन्दर संसकृति यहाँ मौजूद हैऔर आपसी भाईचारे की रीत खूब निभती है फिर भी पहले सी बात नहीं।अदम गोंडवी की रचनाओं में भारत के पिछड़े गाँवों की मर्मांतक कथा छिपी है।गाँव पिछड़े थे तब इन्हें संवारने और आगे बढाने का सपना था अब इनकी तरक्की में देहाती संस्कृति दम तोड़ती जा रही है ये बडी विडम्बना है।हरेला के बारे में कुछ भी पता नहीं था अब काफी जान पाई।शुक्रिया और आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार अंक।
    हरेला पर्व और शायरी का गजब संयोजन।
    बहुत परिश्रम से सजाया गया एक पठनीय अंक।
    साहित्य और शायरी का सुंदर संगम।

    जवाब देंहटाएं

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