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गुरुवार, 6 जुलाई 2023

3810...तुम्हारी याद आती है...

शीर्षक पंक्ति : आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से.

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आज की पसंदीदा रचनाएँ-

बचपन की यादें

कहना ना मानना 

अपनी जिद्द पर अड़े रहना 

आज भी किसी बच्चे को 

जब रोते देखती हूँ 

तुम्हारी याद आती है

कविता | पर हुआ है यही | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पढ़ा था 
प्रेमपत्र भी
सहेली के पर्स से
चुरा कर,
फिर
चिढ़ाया था उसे
पूरे सत्र भर 

बेकरां चाहत--

नुक़ता 
नज़र के 
असूल जो भी हों जहान के, 
उजड़ने नहीं देती, यूँ तेरी
बेकरां चाहत मुझ को,

कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
तिरछी नजर घुमाती वो
अधरों पे  मदिर मुस्कान लिए
कभी निहारे एकटक होकर 
पलकों ज्योँ आराम दिए

चलते-चलते पढ़िए एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्या पर  रोचक प्रस्तुति -
क्लैप्टोमैनिया
एक बार हमारी ये माननीया अपने पतिदेव के साथ विदेश-प्रवास के दौरान एक शाही होटल में ठहराई गईं तो वो वहां भी अपनी उठाईगीरी से बाज़ नहीं आईं.
होटल वालों ने मैडम जी की हाथ की सफ़ाई को ज़ाहिरी तौर पर बिलकुल भी नोटिस नहीं किया, बल्कि उन्होंने मैडम जी को ससम्मान विदा भी किया लेकिन राष्ट्रपति महोदय के स्टाफ़ को मैडम जी द्वारा पार किए गए अपने माल का एक मोटा सा बिल ज़रूर थमा दिया.
इस बिल का भारत सरकार की ओर से बाक़ायदा भुगतान किया गया और इस प्रकार देश की प्रथम महिला के क्लैप्टोमैनिया को भारत की साख पर बट्टा लगाने का कोई मौक़ा नहीं दिया गया.
फिर मिलेंगे.

रवीन्द्र सिंह यादव 


3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    विशेष गोपेश भाई का अनुसंधान अच्छा लगा
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद रंवीन्द्र सिंह जी मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आज के अंक में |

    जवाब देंहटाएं
  3. क्लैप्टोमैनिया ब्लॉग से हट गया है शायद |

    जवाब देंहटाएं

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